
कार्यक्रम में पुरस्कृत रामाधार साहू ने कहा कि जिस तरह से इंसान अपने कर्मो से पहचाना जाता है।इसी तरह यह पुरस्कार कला से पहचाना जाता है। यह कला के प्रति कलाकार का सम्मान है। कार्यक्रम में आए वक्ताओं ने कहा कि सकारात्मक रूप को लेकर कार्य करने वाले बहुत कम ही आयोजन होते है। इनमें से यह सम्मान भी है, जो पिछले १४ सालों से दिया जा रहा है। परम्पराओं और मर्यादाओं को समझकर कार्य करने वाले ऐसे सभी आयोजनों के परिणाम हमेशा दूरगामी रहे हैं।
इस कार्यक्रम में बहुमत कला विशेषांक २०१४ के ४५ वे अंक का विमोचन किया गया। इसमें विदेश भर की प्रसिद्व कहानियां सम्मिलित की गई। इन सभी चर्चित कहानियों का विदेशी भाषाओं से हिन्दी भाषा में अनुवाद किया गया। इसमें अक्षर और देह, मंगलवार का दिन, फांसिस कोचवान, चांद के उजाले में जैसी कहानियां को सम्मिलित किया गया है। कार्यक्रम में रंगकर्मी आनंद अतृप्त के नाट्य संग्रह न अटक का विमोचन किया गया है।
लोरिक चंदा प्रेम गाथा गायन अपने अलग अलग स्वरूप में बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वाचिक परम्परा के रूप में गाया जाता है। चंदैनी का पारंपरिक गायक अहीर जाति के गायकों के द्वारा किया जाता हैं। मैथिली और मगही क्षेत्र में चदैनी को लोरिकायन, भोजपुरी क्षेत्र में लोरिकी या लोरिकायन एवं अवधी और छत्तीसगढ़ मे चनैनी या चंदैनी कहते हैं।
कथा गायन के अनुसार आरंग के राजा का नाम महर था। एक समय पनागर राज्य के बोड़र साव अपनी पत्नी और भाई कठायत के साथ आरंग आए। बोड़र साय नें आरंग के राजा महर को एक सोन पड़वा अर्थात सुनहरे रंग के भैंस का बच्चा भेंट किया। भेंट से राजा प्रसन्न हुए एवं उन्होंनें बोड़रसाव को रीवां का राज्य दे दिया। बो़ड़र साव रीवां में राज्य करने लगा, कालांतर में बोड़र साव का पुत्र बावन और भाई कठायत का बेटा लोरिक हुआ।
राजा महर की खूबसूरत बेटी चंदा का विवाह राजकुमार बावन से हुआ। विवाह के बाद राजकुमार बावन किशोरावस्था में ही, गृहस्थ जीवन त्यागकर तपस्या करने महानदी के तट पर चला गया। बाद में जब गौना का समय आया तो बोड़र साय ने अपने भाई के बेटे लोरिक से विनती करके गौना लाने के लिए दूल्हा के रूप में भेज दिया। गौना करके आते समय घने जंगल में जब चंदा ने डोली के भीतर घूंघट उठाकर अपने दूल्हे को देखा तो वह आश्चर्य चकित हो गई। चंदा अपने पति बावन को डोली में ना देखकर, डोली से कूदकर जंगल की ओर भाग गई। लोरिक भी असमंजस में उसके पीछे भाग, यहॉं जंगल में दोनों की बातें हुई और चंदा लोरिक से मोहित हो गई। चंदा डोली में राजमहल आ गई। इधर लोरिक और चंदा का प्रेम परवान चढ़ने लगा, लोरिक और चंदा राजमहल में चोरी छिपे मिलने लगे। इस बात की जानकारी राजा महर को लगी तो उसने चंदा पर सिपाहियों का पहरा लगा दिया। प्रेम से तड़फते दोनों नें भाग जाने का फैसला किया और भागकर दूर जंगल के बीच में महल बनाकर रहने। इधर जब राजा बावन को इस बात की जानकारी हुई तो वह नाराज होकर रीवां राज्य में आक्रमण कर दिया और बोड़र साव से राज्य छीन लिया। लोरिक बारा साल तक चंदा के साथ रहा और अपनी सेना का निर्माण करता रहा, बारा साल बाद अपने राज्य रींवा में राजा महर के सेना के उपर आक्रमण कर दिया जिसमें उसकी जीत हुई।
इस कथा के विविध रूपों में बावन के साधु होने या बावन को कोढ़ रोग होने के कारण लोरिक को गौना हेतु भेजने का उल्लेख आता है। इसी तरह लोरिक को राजा का भतीजा ना बताकर सामान्य गाय चराने वाला, आकर्षक व सुदर्शन युवक बताया जाता है। इस छत्तीसगढ़ी लोक गाथा के संबंध में विस्तृत विवरण आप डा. सोमनाथ यादव जी के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं।