'मीराबाई' ममता अहार द्वारा एक पात्रीय संगीत नाटक का मंचन माउन्‍ट आबू में

'नाटय विधा बहुत ही सरल माध्यम है अपनी बात को जन जन तक पहुंचने का । चाहे वह किसी समस्या की बात हो या सामाजिक जन जागरण की बात हो। सामाजिक विसंगतियां लोगों की पीड़ा को लेखन में ढ़ाल कर हास्य व्यंग्य के माध्यम से अपनी बातों को सहजता से लोगों में हास्य रस का संचार करते हुये विषयों के प्रति हृदय में सुप्त उन संवेदनाओं को जागृत करती है जो समाज को एक अच्छी दिशा दे सकते हों। 'यह विचार ममता आहार का है जो एक पात्रीय संगीतमय नाटिका 'मीराबाई' की सफल प्रस्‍तुतियों से क्षेत्र में चर्चित हैं। रायपुर की ममता बच्चों में छिपी प्रतिभा को सामने लाने उन्हें नृत्य अभिनय की बारीकिया सिखाने का कार्य कर उन्हें मंच प्रदान कर रही हैंममता की संस्‍था श्रीया आर्ट हर साल नये प्रयोग कर किसी न किसी समस्या पर केंन्द्रित नाटय लेखन कर बच्चों को अभिनय के साथ सामाजिक संचेतना सिखाती है जिसमें बच्चे केवल अभिनय व नृत्य ही नहीं सीखते बल्कि उनमें आपसी भाईचारे की भावना का विकास होता है। शिविर में आंगिक, वाचिक नाटय सिद्वांत, रंगमंच का सौन्दर्यशास्त्र, स्वर का उपयोग, नाट्य सामग्री का निर्माण, उनका उपयोग आदि का अभ्यास कराया जाता है किसी विषय पर चर्चा तथा अभिनय करने की क्षमता का विकास कराया जाता है जिससे बच्चों में वैचारिक क्षमता, तर्क शक्ति, आत्मविश्वास पैदा होता है और व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

ममता अहार के इस सराहनीय कार्य के साथ ही उनकी एक पात्रीय संगीत नाटिका  'मीरा बाई' को क्षेत्र में बहुत अच्‍छी सराहना मिली है इस कार्यक्रम की लोकप्रियता को देखते हुए छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न नगरों में इसके कई प्रदर्शन हो चुके हैं। डेढ़ घंटे की इस प्रस्‍तुति में राजवंशीय परिवार की मीराबाई, उसकी मॉं, पिता व मीरा के तीन अहम रूपों की भूमिका को स्‍वयं ममता के द्वारा निभाना चुनौतीभरा काम रहा है जिसे ममता नें बखूबी निभाया है। अकेले अदाकारी के बूते लगभग दो घंटे दर्शकों को बांधे रखने की क्षमता इस नाटिका में है,  एकल पात्रीय इस नाटिका में बचपन की मीरा श्रीकृष्‍ण की मूर्ति से प्रेम करती है बालसुलभ बातें भी करती है। दुनिया के रीतिरिवाजों से अनजान मीरा को उनके बड़े जो बताते हैं उसे ही सत्‍य मानकर भक्ति के मार्ग में बढ़ चलती है। इस नाटक में मीरा का प्रभु प्रेम, जीवन संघर्ष, कृष्‍ण भक्ति में लीन नर्तन व सामाजिक रूढि़वाद के विरूद्ध बाह्य आडंबर, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हुए मीरा के संर्घष को प्रस्‍तुत किया गया है। मीराबाई के जीवन के पहलुओं को जीवंत प्रस्‍तुत करती इस नाटिका की प्रस्‍तुति दर्शकों में गहरा प्रभाव छोड़ती है। इस नाटिका में संगीत गुणवंत व्‍यास नें दिया है, एवं नाटिका को स्‍वयं ममता नें लिखा है और निर्देशित किया है।

 
कल 30 दिसम्‍बर को माउन्‍ट आबू के शरद महोत्‍सव में ममता का एकल अभिनय 'मीरा बाई' का प्रदर्शन होने जा रहा है समय है संध्‍या 7 से 9. यदि आप माउंट आबू में हैं तो अवश्‍य देखें.

प्रादेशिक फिल्‍मों की कहानियॉं : अनाम ब्‍लॉगर की प्रस्‍तुति


प्रादेशिक भाषाओं के फिल्‍मों का अपना एक अलग महत्‍व होता है, क्‍योंकि प्रादेशिक भाषा के फिल्‍मों में क्षेत्रीय संस्‍कृति व परम्‍पराओं का समावेश होता है इस कारण क्षेत्रीय फिल्‍में क्षेत्रीय जन-मन को लुभाती है। छत्‍तीसगढ़ प्रदेश की भाषा छत्‍तीसगढ़ी में बने फिल्‍मों की संख्‍या अभी ज्‍यादा नहीं है किन्‍तु दक्षिण भारत के प्रादेशिक फिल्‍मों की प्रगति को देखते हुए लगता है कि छत्‍तीसगढ़ में भी प्रादेशिक भाषा छत्‍तीसगढ़ी की फिल्‍मों के निर्माण में अब गति आयेगी। छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍मों के इतिहास पर विहंगावलोकन आदरणीय राहुल सिंह जी नें अपने ब्‍लॉग सिंहावलोकन में किया है जो अब तक के उपलब्‍ध स्‍त्रोतों का एकमात्र प्रामाणिक दस्‍तावेज है। राहुल भईया के इस पोस्‍ट के बाद एवं छत्‍तीसगढ़ी गीतों पर आधारित ब्‍लॉग 'छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी' के अनाम ब्‍लॉगर ने छत्‍तीसगढ़ी की दूसरी फिल्‍म 'घर द्वार' के सभी गीतों को प्रस्‍तुत किया जिसके लिये श्री राहुल सिंह जी एवं श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी का विशेष सहयोग रहा। 'छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी' के ताजा पोस्‍ट में श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी के द्वारा एतिहासिक फिल्‍म 'घर द्वार' के निर्माण की कहानी रोचक शैली में प्रस्‍तुत की गई है। छत्‍तीसगढ़ में रूचि रखने वाले साथियों से अनुरोध है कि 'छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी' के इन पोस्‍टों को अवश्‍य पढ़ें, भाई जाकिर से हुई चर्चा के अनुसार इस ब्‍लॉग के आगामी पोस्‍टों में एक और लोकप्रिय छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म के गानों के साथ निर्माण की कहानी प्रस्‍तुत होगी।
'छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी' के इस सराहनीय कार्यों को देखकर हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत के हमारे संगी इसके माडरेटर के संबंध में जानना चाहते हैं, सभी की उत्‍सुकता है कि 'छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी' ब्‍लॉग के ब्‍लॉगर कौन हैं। स्‍वाभाविक रूप से इसमें मेरी भी उत्‍सुकता है किन्‍तु इसके ब्‍लॉगर महोदय अनाम रहकर छत्‍तीसगढ़ महतारी की सेवा करना चाहते हैं यह बहुत सराहनीय व अनुकरणीय कार्य है। हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत में समय-बेसमय होते जूतामपैजार, लोकप्रिय-अतिलोकप्रिय-महालोकप्रिय व वरिष्‍ठ-कनिष्‍ट-गरिष्‍ठ ब्‍लॉगर बनने की आकांक्षाओं से परे हमारा यह अनाम भाई चुपके से दस्‍तावेजी पन्‍ने लिख रहा है इसे मेरा सलाम-प्रणाम।

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...