स्वाधीनता संग्राम सेनानी स्‍व.श्री मोतीलाल त्रिपाठी

छत्तीसगढ के अग्रणी स्वतंत्रता सग्राम सेनानियों में स्व . श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का नाम सम्मान से लिया जाता है, इन्होंनें जहां स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में गांधीवादी विचारधारा को जन जन तक पहुचाया वहीं स्व्तंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक क्रांति लाने बेहतर समाज के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया आज कृतज्ञ छत्तीसगढ श्री त्रिपाठी जी के 85वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है


स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का जन्म 24 जुलाई 1923 को छत्ती‍सगढ के एक छोटे से ग्राम धमनी में हुआ । इनके पिता स्व . श्री प्यारेलाल त्रिपाठी सन् 1930 के स्वतंत्रता आंन्दोलन में पं.सुन्दरलाल शर्मा व नंदकुमार दानी जी के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । बालक मोतीलाल उस अवधि में अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम पलारी में ले रहे थे तभी गांधी जी के स्वागत का अवसर इन्हें प्राप्त हो गया था । प्राथमिक शिक्षा के बाद माता श्रीमति जामाबाई त्रिपाठी एवं स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ सिपाही पिता प्यारेलाल का संस्कार लिये बालक मोतीलाल हाईस्कूल की शिक्षा लेने सेंटपाल हाईस्कूल रायपुर आ गए । इस अवधि में इनके पिता छत्तीसगढ के स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे जिसके कारण किशोर मोतीलाल के मन में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जजबा धीरे धीरे जागृत होने लगा था


पिता के राहों में चलते हुए मोतीलाल जी के हृदय में गांधी जी के दर्शन के बाद से सुसुप्त देश प्रेम की चिंगारी 1936 में फूट कर बाहर आ निकली जब 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आहवान पं.नेहरू और सरदार पटेल नें किया और युवा छात्रों के दल का नेतृत्व् करते हुए युवा मातीलाल नें रायपुर के गलियों में शानदार जुलूस लिकाला । अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता से श्री त्रिपाठी जी युवाओं के दिलों पर छा गए । इसके बाद से गांधी जी के सत्याग्रह का झंडा इन्होंनें थाम लिया । सन् 1939 के प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों द्वारा युद्ध में सहयोग करने के आहवान को गांधी जी नें ठुकरा दिया और मोतीलाल जी नें गांधी जी के इस विरोध को पूरे छत्तीगसगढ में फैलाने के लिए पैदल यात्रायें की और उनका संदेश जन जन में पहुचाया इस पदयात्रा के कारण छत्तीसगढ में आंदोलन को संगठनात्मक स्वरूप प्राप्त हुआ ।


देश में 11 फरवरी 1941 को गांधी जी द्वारा सत्याग्रह आंदोलन आरंभ कर दिया गया, इस आंदोलन के छत्तीसगढ में नेतृत्व के लिए एकमात्र कर्मठ सत्यायग्रही युवा मोतीलाल को चुना गया । सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व सम्हालने के बाद मोतीलाल जी नें अपने नेटवर्क को फैलाते हुए छत्तीसगढ में इस आंदोलन का अलख गांव गांव में जगा दिया । हजारों की संख्या में सत्याग्रहियों का हुजूम अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ मौन प्रदर्शन करने लगे, फलत: इनके साथियों के साथ इन्हें अंग्रेजी सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 2 अप्रैल 1941 को नागपुर जेल भेज दिया गया । 5 दिसम्बर 1941 को गांधी जी एवं अंग्रेजों के मध्य हुए एक समझौते के तहत् राजनैतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया तब मोतीलाल जी भी नागपुर से रायपुर वापस आकर सत्याग्रह एवं स्वदेशी आंदोलन व खादी के प्रचार प्रसार में जुट गए । कुछ दिन रायपुर में रह कर वे खादी वस्त्र भंडार नरसिंहपुर चले गए और खादी की सेवा देश सेवा की भांति करने लगे

9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की रण भेरी बजने लगी, स्वातंत्रता संग्राम सेनानी अंग्रेजों को भारत से उखाड फेंकने के लिए जगह जगह रैली व सत्याग्रह करने लगे । स्वाभाविक तौर पर त्रिपाठी जी का देश प्रेम नरसिंहपुर में भी अंग्रेजों के आंखों में खटकने लगा और उन्हें गिरफ्तार करने का फरमान जारी कर दिया गया । इस गिरफ्तारी से बचने एवं भारत छोडो आंदोलन को हवा देने के उद्देश्य से वे फरारी में रायपुर आ गए । रायपुर में रह कर वे देश प्रेम, खादी प्रसार व भारत छोडो आंदोलन संबंधी अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति को परचा लिख लिख कर परचे के माध्याम से जनता तक पहुचाने लगे । 26 जनवरी सन् 1943 को वे रायपुर में परचा बांटते हुए पकड लिये गये और इन्हें छ: माह की सजा हुई, इन्हें बिलासपुर जेल भेज दिया गया जहां से वे 14 जुलाई 1943 को छूटे


खादी एवं गांधी को अपना सर्वस्वा मान चुके श्री त्रिपाठी जी स्वतंत्रता प्राप्ति तक एवं उसके बाद भी रायपुर के विचारकों के अग्र पंक्ति में रहकर गांधी जी की विचारधारा को पुष्पित व पल्ल्वित करते रहे । स्वतंत्रता प्राप्त के बाद इनकी नेतृत्व क्षमता व सहृदयता के कारण ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नेतृत्व छत्तीसगढ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के महामंत्री के रूप में करते रहे और उनके सुख दुख में सदैव साथ रहे । साहित्तिक प्रतिभा इनमें आरंभ से ही थी जिसके कारण वे प्रदेश के साहित्तिक आयोजनों में जीवन पर्यन्तत सहभागी बनते रहे । इनकी लेखन क्षमता नें तत्कालीन प्रदेश के एकमात्र समाचार पत्र ‘महाकोशल’ के सह संपादक के पद को गरिमामय रूप में सुशोभित भी किया और इन्होंनें पत्रकारिता के माध्यम से जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया । गांधी जी की सत्य, अहिंसा, कुष्ठ सेवा व खादी के ध्वज वाहक व सच्चे् अर्थों में मानवतावादी स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी को हमारा प्रणाम ।


(स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी हमारे हिन्दी ब्लागर साथी संजीत त्रिपाठी, आवारा बंजारा के पिता थे । संजीत जी नें स्‍वयं अपने एक पोस्ट में उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया है देखें - यहां)


संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...