छत्तीसगढ इतिहास के आईने में - 1
कोसल नरेश हैहयवंशी प्रजापालक कल्याण साय मुगल सम्राट जहांगीर के सानिध्य में आठ वर्ष तक अपने राजनीतिज्ञान एवं युद्धकला को परिष्कृत करने के बाद सरयू क्षेत्र से ब्राह्मणों की टोली को साथ लेकर अपनी राजधानी रत्नपुर पहुंचे ।
कोसल की प्रजा आठ वर्ष उपरांत अपने राजा के आगमन से हर्षोल्लास में डूब गई । प्रजा राजा के आगमन की सूचना पाकर निजी संसाधनों से एवं पैदल ही रत्नपुर की ओर दौड पडी । सभी 36 गढ के नरेश भी राजा के स्वागत में रत्नपुर पहुच गए । सभी आंनंदातिरेक में झूम रहे थे, पारंपरिक नृत्य और वाद्यों के मधुर स्वर लहरियों के साथ नाचता जन समुह कल्याण साय का जय जयकार कर रहा था ।
महल के द्वार को प्रजा राजा के दर्शन की आश लिये ताकती रही मन में नजराने की आश भी थी । आठ वर्ष तक राजकाज सम्हालने वाली रानी को पति के प्रेम के समक्ष अपनी प्रजा के प्रति दायित्व का ख्याल किंचित देर से आया, रानी फुलकैना दौड पडी प्रजा की ओर और दोनो हांथ से सोने चांदी के सिक्के प्रजा पर लुटाने लगी ।
कोसल की उर्वरा धरती नें प्रत्येक वर्ष की भंति इस वर्ष भी धान की भरपूर पैदावार हई थी प्रजा के धरों के साथ ही राजखजाने छलक रहे थे । प्रजा को धन की लालसा नहीं थी, उनके लिए तो यह आनंदोत्सव था ।
राजा कल्याणसाय ने प्रजा के इस प्रेम को देखकर सभी 36 गढपतियों को परमान जारी किया कि आगामी वर्षों से पौष शुक्लपूर्णिमा के दिन, अपने राजा के घर वापसी को अक्षुण बनाए रखने के लिए संपूर्ण कोशल में त्यौहार के रूप में मनाया जायेगा ।
कालांतर में यही उत्सव छत्तीसगढ में छेरछेरा पुन्नी के रूप में मनाया जाने लगा एवं नजराना लुटाये जाने की परंपरा के प्रतीक स्वरूप घर के द्वार पर आये नाचते गाते समूह को धान का दान स्वेच्छा से दिया जाने लगा । समय के साथ ही इस परम्परा को बडों के बाद छोटे बच्चों नें सम्हाला ।
पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन धान की मिसाई से निवृत छत्तीसगढ के गांवों में बच्चों की टोली घर घर जाती है और -
छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा !
का संयुक्त स्वर में आवाज लगाती है, प्रत्येक घर से धान का दान दिया जाता है जिसे इकत्रित कर ये बच्चे गांव के सार्वजनिक स्थल पर इस धान को कूट-पीस कर छत्तीसगढ का प्रिय व्यंजन दुधफरा व फरा बनाते हैं और मिल जुल कर खाते हैं एवं नाचते गाते हैं –
चाउंर के फरा बनायेंव, थारी म गुडी गुडी
धनी मोर पुन्नी म, फरा नाचे डुआ डुआ
तीर तीर मोटियारी, माझा म डुरी डुरी
चाउंर के फरा बनायेंव, थारी म गुडी गुडी !
000 000 000
तारा रे तारा लोहार घर तारा …….
लउहा लउहा बिदा करव, जाबो अपन पारा !
छेर छेरा ! छेर छेरा !
माई कोठी के धान ला हेर हेरा !
(कुछ इतिहासकार जहांगीर के स्थान पर अकबर का उल्लेख करते हैं)
संजीव तिवारी