छत्तीसगढ़ राज्य के भव्य स्थापना समारोह की तैयारियों के बीच समाचार पत्रों के द्वारा राज्य के थीम सांग के संबंध में समाचार जब प्रकाशित हुए तो छत्तीसगढ़ के संस्कृतिधर्मी मनीषियों को खुशी के साथ ही बेहद आश्चर्य हुआ। कतिपय समाचार पत्रों के स्थानीय पत्रकारों ने प्रदेश के प्रसिद्ध गीत 'अरपा पैरी के धार ...' के गीतकार के रूप में लक्ष्मण मस्तूरिहा का नाम छापा। यह भूल कैसे समाचार पत्रों में छपा यह पता ही नहीं चला, एक समाचार पत्र को देखकर दूसरे समाचार पत्र भी यही छापते रहे और अपने प्रादेशिक ज्ञान (अ) का झंडा फहराते रहे, किसी ने भी प्रदेश के संस्कृति विभाग या किसी साहित्य-संस्कृति से जुडे व्यक्ति से पूछने की भी जहमत नहीं उठाई।
हम इन दिनों कुछ व्यस्त रहे इस कारण अखबारों को भी पलटकर नहीं देख पाये, हमें इसकी संक्षिप्त जानकारी भाई श्याम उदय 'कोरी' से दो लाईना चेटियाते हुए हुई और उसके दूसरे दिन व्यंग्यकार व कवि राजाराम रसिक जी से ज्ञात हुआ कि डॉ.परदेशीराम वर्मा जी नें इस पर अपना विरोध जताते हुए सभी समाचार पत्रों के संपादकों से संपर्क भी किया। कुरमी समाज नें भी इसका जोरदार विरोध किया किन्तु इसके बावजूद लगातार इस गीत के गीतकार के रूप में लक्ष्मण मस्तुरिहा का नाम छापा गया, बाद में जब प्रदेश के बुद्धिजिवियों नें सामूहिक रूप से इसका विरोध किया तो करेले में नीम चढा टाईप हेडिंग से समाचार छपने लगे कि 'नहीं छंटा कुहासा अरपा पैरी के धार के गीतकार का' या 'अरपा पैरी के धार के गीतकार के संबंध में विवाद'। अभी कल ही एक समाचार पत्र में इस तरह के हेडिंग लगे थे।
दुख है कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता करने के बावजूद इस लोकप्रिय गीत के गीतकार के नाम को कतिपय पत्रकारों नें न केवल गलत लिखा बल्कि अब भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। प्रदेश की कला-संस्कृति व साहित्य का सामान्य ज्ञान तो प्रदेश में पत्रकारिता करने वाले हर पत्रकार को होना चाहिए यदि नहीं है तो अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए। उन सभी समाचार पत्रों नें व उसके पत्रकारों नें ऐसा लिखकर संपूर्ण प्रदेश की जनता का दिल दुखाया है। यदि वे पत्रकार अपनी इस भूल को सुधारना चाहते हैं तो इस गीत के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा जी को 8 सितम्बर को उनकी पुण्यतिथि पर हृदय से श्रद्धांजली अर्पित करें।
यदि आप भी 'अरपा पैरी के धार ...' के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा के संबंध जानना चाहते हैं तो पढ़ें :-
हम इन दिनों कुछ व्यस्त रहे इस कारण अखबारों को भी पलटकर नहीं देख पाये, हमें इसकी संक्षिप्त जानकारी भाई श्याम उदय 'कोरी' से दो लाईना चेटियाते हुए हुई और उसके दूसरे दिन व्यंग्यकार व कवि राजाराम रसिक जी से ज्ञात हुआ कि डॉ.परदेशीराम वर्मा जी नें इस पर अपना विरोध जताते हुए सभी समाचार पत्रों के संपादकों से संपर्क भी किया। कुरमी समाज नें भी इसका जोरदार विरोध किया किन्तु इसके बावजूद लगातार इस गीत के गीतकार के रूप में लक्ष्मण मस्तुरिहा का नाम छापा गया, बाद में जब प्रदेश के बुद्धिजिवियों नें सामूहिक रूप से इसका विरोध किया तो करेले में नीम चढा टाईप हेडिंग से समाचार छपने लगे कि 'नहीं छंटा कुहासा अरपा पैरी के धार के गीतकार का' या 'अरपा पैरी के धार के गीतकार के संबंध में विवाद'। अभी कल ही एक समाचार पत्र में इस तरह के हेडिंग लगे थे।
दुख है कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता करने के बावजूद इस लोकप्रिय गीत के गीतकार के नाम को कतिपय पत्रकारों नें न केवल गलत लिखा बल्कि अब भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। प्रदेश की कला-संस्कृति व साहित्य का सामान्य ज्ञान तो प्रदेश में पत्रकारिता करने वाले हर पत्रकार को होना चाहिए यदि नहीं है तो अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए। उन सभी समाचार पत्रों नें व उसके पत्रकारों नें ऐसा लिखकर संपूर्ण प्रदेश की जनता का दिल दुखाया है। यदि वे पत्रकार अपनी इस भूल को सुधारना चाहते हैं तो इस गीत के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा जी को 8 सितम्बर को उनकी पुण्यतिथि पर हृदय से श्रद्धांजली अर्पित करें।
यदि आप भी 'अरपा पैरी के धार ...' के गीतकार आचार्य डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा के संबंध जानना चाहते हैं तो पढ़ें :-

- डॉ. सत्यभामा आड़िल
"मुंशी प्रेमचंद और रेणु के कथा संसार से जुड़कर हर संवेदनशील छत्तीसगढ़ी पाठक को यह महसूस होता था कि छत्तीसगढ़ में बैठकर कलम चलाने वालों के साहित्य में हमारा अंचल क्यों नहीं झांकता । छत्तीसगढ़ी में लिखित साहित्य में तो छत्तीसगढ़ अंचल पूरे प्रभाव के साथ उपस्थित होता है लेकिन हिन्दी में नहीं । इस बड़ी कमी को कोई छत्तीसगढ़ महतारी का सपूत ही पूरा कर सकता था । साप्ताहिक हिन्दुस्तान में तीस वर्ष पूर्व जब सुबह की तलाश उपन्यास जब धारावाहिक रूप से छपा तब हिन्दी के पाठकों को लगा कि छत्तीसगढ़ में भी रेणु की परंपरा का पोषण अब शुरू हो चुका है । ....... ‘सुबह की तलाश’ एक विशिष्ट उपन्यास है जिस पर पर्याप्त चर्चा नहीं हुई । छत्तीसगढ़ी लेखकों पर यूं भी देश के प्रतिष्ठित समीक्षक केवल चलते-चलते कुछ टिप्पणी भर करने की कृपा करते हैं । जिन्हें छत्तीसगढ़ की विशेषताओं की जानकारी है वे राष्ट्रीय स्तर के समीक्षक नहीं हैं । और जो राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी समीक्षा दृष्टि के लिए जाने जाते रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ की आंतरिक विलक्षणता कभी उल्लेखनीय नहीं लगी । संभवत: वे इसे सही ढ़ंग से जान भी नहीं पाये । फिर भी डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने अपनी ताकत का अहसास करवाया । वे हार कर चुप बैठ जाने वाले छत्तीसगढ़ी नहीं थे । राह बनाने के लिए प्रतिबद्ध माटीपुत्र थे । उन्होंने महसूस किया कि सुबह की तलाश को कुछ लोगों ने ही पढ़ा । लेकिन उसकी अंतर्वस्तु ऐसी है कि कम से कम समग्र छत्तीसगढ़ उसे जाने समझे ।"
- डॉ. परदेशीराम वर्मा
स्वामी आत्मानंद ने अपने अनुज डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के बारे में मरणोपरांत लेख लिखा है । वे लिखते हैं कि सोनहा बिहान की चतुर्दिक ख्याति की खबरें सुनकर वे भी इसकी प्रस्तुति देखने के लिए लालायित हो उठे १९७८ के अंत में महासमुंद में एक प्रदर्शन तय हुआ । स्वामी जी को डाक्टर साहब ने बताया कि आप चाहें तो उस दिन प्रदर्शन देख सकतें हैं । महासमुंद में विराट दर्शक वृंद को देखकर स्वामी जी रोमांचित हो उठे । उनके भक्तों ने उन्हें विशिष्ट स्थान में बिठाने का प्रयत्न किया लेकिन डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने स्वामी जी को दर्शकों के बीच जमीन पर बैठकर देखने का आग्रह किया । स्वामी जी उनकी इस व्यवस्था से अभिभूत हो उठे । उन्होंने उस घटना को याद करते हुए लिखा है – ‘नरेन्द्र तुम सचमुच मेरे अनुज थे ।‘
प्रकाशित रचनांए :- प्रयोगवाद, हिन्दी स्वच्छन्दतावाद पुनमूल्यांकन, आधुनिक पाश्चात्य काव्य और समीक्षा के उपादान, नयी कविता सिध्दांत और सृजन, हिन्दी नव स्वच्छन्दतावाद, अज्ञेय और समकालीन , मुक्तिबोध का काव्य, प्रगीतकार अंचल और बच्चन, छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास।
प्रकाशित उपन्यास :- सुबह की तलाश ' साप्ताहिक हिन्दुस्तान में धारावाहिक रुप से प्रकाशित तदपश्चात राजपाल एण्ड संस प्रकाशन दिल्ली द्वारा पुस्तकाकार प्रकाशित व कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित. इसका दूसरा संस्करण रचना प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हुआ।
प्रकाशित काव्य संग्रह :- अपूर्वा
अनुदित ग्रन्थ :- मोंगरा, श्री माँ की वाणी, श्री कृष्ण की वाणी, श्री राम की वाणी, बुध्द की वाणी, ईसा मसीह की वाणी, मुहम्मद पैगम्बर की वाणी, आधुनिक काव्य संकलन, छायावादोत्तर काव्य संकलन
अप्रकाशित ग्रन्थ :- हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण की समस्याएँ और समाधान (डी. लिट की उपाधि के लिए प्रस्तावित शोध प्रबंध लगभग पूर्ण है।)
प्रकाशित साहित्यिक शोधपत्र :- प्रयोगवादी समीक्षा, नयी कविता और नये स्वर, नन्ददुलारे बाजपेयी और रामचन्द्र शुक्ल के समीक्षा सिध्दांत, आचार्य बाजपेयी, प्रयोगवाद : नये निबंध में प्रकाशित, मुक्तिबोध का आलोचना दर्शन, अतर्विरोधों के कवि मुक्तिबोध : ज्ञानोदय, मानव वैशिष्टय और आत्मविश्वास, अर्थ की लय, मुक्बिोध का आत्मान्वेषण, आधुनिक भावबोध और अंचल का काव्य, आधुनिकता बात तत्वबोध की, हीनता का बोध : एडलर, मानसिक उर्जा, फायर्ड की कलाचिंतन, कला का माक्र्सवादी विवेचन, कला कुछ आरंभिक जिज्ञासाएं, मुक्तिबोध के काव्य की सृजन प्रकिया, आधुनिक राष्ट्रीय चेतना और साहित्य, व्यक्ति, समाज और जगत, छत्तीसगढ़ी साहित्य अतीत से वर्तमान, मनोवैज्ञानिक कथाकार जैनेन्द्र और अज्ञेय, छत्तीसगढ़ी हाना, छत्तीसगढ़ी का गद्य साहित्य, आधूनिकता कुरो तत्वबोध को, छैगो सांगलो, नेपाली भाषा में मुद्रित।
प्रकाशित भाषा वैज्ञानिक शोधपत्र :- हिन्दी और बघेली का भाषा कालक्रम वैज्ञानिक अध्ययन, हिन्दी और अवधी का शब्दसाख्यिकीय अध्ययन आदि.
आचार्य डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा जी के संबंध में जानकारी यहां भी है।