
पाठक जी का जन्म 11 जून 1946 को बिलासपुर में हुआ और अध्ययन भी बिलासपुर में ही हुआ, डॉ. विनयकुमार पाठक जी नें एम.ए., हिन्दी एवं भाषा विज्ञान में दो अलग अलग पी.एच.डी. व हिन्दी एवं भाषा विज्ञान में दो अलग अलग डीलिट की उपाधि प्राप्त की है. इनके निर्देशन में कई पीएचडी अब तक हो चुके हैं. इनको लेखन के लिए प्रेरणा इनके बड़े भाई डॉ. विमल पाठक से मिली है । डॉ. विनय कुमार को इनके पी.एच.डी. एवं डी. लिट प्राप्त करने से साहित्यजगत में राष्ट्रव्यापी ख्याति प्राप्त हुई।
पाठक जी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी, दोनों में लिखते हैं। इनकी कृतियां हैं - छत्तीसगढ़ी में कविता व लोक कथा, छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यकार, बृजलाल शुक्ल व कपिलनाथ कश्यप - व्यक्तित्व एवं कृतित्व(दोनो अलग अलग ग्रंथ), स्केच शाखा (जीवनी), खण्डकाव्य - सीता के दुख तथा छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यकार संस्मरण जीवनी, आदि लगभग 70 ग्रंथ के अलावा इन्होंनें अनेक निबंध लिखे हैं। इनकी छत्तीसगढ़ी लोक कथा (1970 ) छत्तीसगढ़ के स्थान-नामों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन (2000 ) बहुत ही महत्वपूर्ण है। पाठक जी ने राष्ट्रीय एवं अतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों शोध पत्र पढें हैं. छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य एवं संस्कृति को अकादमिक ढंग से स्थापित करने के परिपेक्ष्य में शताधिक साहित्तिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओं से उन्हें लोकभाषा शिखर सम्मान सहित सम्मान और पुरस्कार मिले है।
पाठक जी प्रदेश के शिखर शोध निदेशक हैं, इन्होंनें दो दर्जन शोधार्थियों को छत्तीसगढ़ी भाषा/साहित्य की विभिन्न विधाओं में पी.एच.डी. करवाया है. रांची विश्वविद्यालय से इनके स्वयं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में शोधार्थियों द्वारा डी.लिट. किया जा चुका है.
पाठक जी प्रदेश के शिखर शोध निदेशक हैं, इन्होंनें दो दर्जन शोधार्थियों को छत्तीसगढ़ी भाषा/साहित्य की विभिन्न विधाओं में पी.एच.डी. करवाया है. रांची विश्वविद्यालय से इनके स्वयं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में शोधार्थियों द्वारा डी.लिट. किया जा चुका है.
संप्रति - शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष.
संपर्क : डॉ. विनय कुमार पाठक
निदेशक प्रयास प्रकाशन
सी 62, अज्ञेय नगर
बिलासपुर
मेरे ध्यान में आदरणीय डॉ. विनय कुमार पाठक की अधिकतम समीक्षात्मक लंबी हिन्दी गद्य रचनांए ही हैं जिनके अंशों को अवसर मिलने पर यहां प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा. आज उनके जन्म दिन पर उन्हें शुभकामना देते हुए उनके द्वारा रचित यह छत्तीसगढ़ी गीत प्रस्तुत कर रहा हूं -
जिहॉं जाबे पाबे, बिपत के छांव रेहिरदे जुडा ले आजा मोर गॉंव रे .
खेत म बसे हवै करा के तान
झुमरत हावै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान.
हिरदे ल चीरथे रे मया के बान
जिनगी के आस हे रामे भगवान .
पिपर कस सुख के परथे छांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
इंहा के मनखे मन करथे बड़ बूता
दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता.
किसान अउ गौंटिया, हावय रे पोठ
घी-दही-दूध पावत, सब्बे रे रोठ.
लेबना ला खांव के ओमा नहांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
हवा हर उछाह के महमहई बगराथे
नदिया हर गाना के धुन ला सुनाथे.
सुरूज हर देथे, गियान के अंजोर
दुख ला भगाथे, सुघ्घर वंदा मोर.
तरई कस भाग चमकय, का बतावौं रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
मेहनत अउ जांगर जिहां हे बिसवास
उघरा तन, उघरा मन, हावै जिहां आस.
खेत म चूहत पछीना के किरिया
सीता कस हावै, इंहां के तिरिया.
ऐंच-पेंच जानै ना, जानैं कुछ दांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.