नया भू अधिग्रहण अधिनियम (भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनव्य र्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) के प्रभावी हो जाने के बावजूद छ.ग.शासन के द्वारा पुराने अधिनियम (भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894) के तहत् की जा रही भू अधिग्रहण कार्यवाही उद्योगपतियों एवं नौकरशाहों के गठजोड़ का नायाब नमूना है. भारत गणराज्य के चौंसठवें वर्ष में संसद के द्वारा नया भू अधिग्रहण अधिनियम अधिनियमित कर दिया गया है जिसका प्रकाशन भारत का राजपत्र (असाधारण) में दिनांक 27 सितम्बकर 2013 को किया गया है.
नया भू अधिग्रहण अधिनियम के प्रवृत्त होने की तिथि के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 1 (3) में कहा गया है कि ‘यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे’ इसी तरह पुराने अधिनियम के व्यपगत होने के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 24 में स्पष्टत किया गया है कि जहॉं पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के द्वारा जारी कार्यवाही में यदि धारा 11 के अधीन कोई अधिनिर्णय नहीं लिया गया है वहॉं नये अधिनियम के प्रतिकर का अवधारण किये जाने से संबंधित सभी उपबंध लागू होंगे. यदि किसी मामले में पांच वर्ष पूर्व भी कोई अधिनिर्णय लिया गया हो किन्तु भूमि का वास्तविक कब्जा नहीं लिया गया हो या प्रतिकर का संदाय नहीं किया गया हो तो वहॉं पुरानी कार्यवाही को व्यपगत करते हुए, नये अधिनियम के उपबंधों के तहत अर्जन कार्यवाही नये सिरे से आरंभ की जावेगी.

नये अधिनियम के प्रवृत्त हो जाने की तिथि 1 जनवरी 2014 के बाद भी छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा हजारों एकड़ भूमि के अधिग्रहण के लिए पुराने अधिनियम के तहत् धारा 4, 6, 11 आदि का निरंतर प्रकाशन किया जा रहा है. जो मौजूदा अधिनियम के अनुसार व्यपगत कार्यवाहियॉं है. छत्तीसगढ़ शासन के नौकरशाह इसके लिए प्रशासनिक बौद्धिकता, कार्यालयीन श्रम, राज्य वित्त व समय का बेवजह व्यय करवा रहे है जो उचित नहीं है. इसके साथ ही यह भारतीय कानून एवं संविधान के प्रति जनता की आस्था पर भी कुठाराधात है. इस संबंध में सरकार एवं न्यायालय को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए एवं पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत् व्यवहरित अधिग्रहण कार्यवाहियों पर रोक लगाया जाना चाहिए.
संजीव तिवारी
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