विदेशों में है हिन्दी का भरपूर सम्मान : राज हीरामन


पदुमलाल पन्नालाल बख्शी सृजनपीठ भिलाई में 30 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ राट्रभाषा प्रचार समिति की ओर से आयोजित ‘वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया था, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप से बोलते हुए महात्मा गांधी संस्थान के प्राध्यापक एवं लेखक-पत्रकार राज हीरामन नें कहा कि पूरे विश्व में हिन्दी भाषा तेजी से फैल रही है एवं वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी का सम्मान निरंतर बढ़ता जा रहा है. उन्होंनें बतलाया कि आज विश्व के प्रत्येक देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है. अमरीका, मलेशिया सहित विश्व के विभिन्न देशों में वहां की सरकारें हिन्दी में पत्र-परिपत्र निकाल रही है. उन्होंनें अपने देश मारिशस का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां तो सरकार का आधार हिन्दी है, वहां की पहली लोकतांत्रिक सरकार से लेकर अब तक के 90 प्रतिशत मंत्री एवं सदस्य हिन्दी भाषी हैं. मारिशस के लोग भारत की संस्कृति, परम्परा एवं भाषा का आज भी पूर्ण सम्मान करते हैं. मारिशस के हिन्दी के प्रति प्रेम के कारण ही विश्व हिन्दी सचिवालय का कार्यालय मारिशस में खोला गया है एवं दो बार विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया जा चुका है. राज हीरामन नें आगे बताया कि मारीशस में हिन्दी भाषी लोगों की बहुतायत है. वर्षों पूर्व गिरमिटिया मजदूर के रूप में भारत से रामायण एवं हनुमान चालिसा लेकर मारिशस गए लोगों की अब की पीढ़ी अब अच्छे ओहदे पर एवं आर्थिक व सामाजिक रूप से सम्पन्न है. उनके दिलों में आज भी गांधी एवं हिन्दी की परम्परा कायम हैं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक सिंघई नें कहा कि संपर्क भाषा से लेकर साहित्य व तकनीकि के क्षेत्र में हिन्दी की लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई है. मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यंग्यकार व कवि रवि श्रीवास्तव नें कहा कि हमारी हिन्दी समृद्ध है एवं विश्व के अनेकों देशों में सम्मानित है. कार्यक्रम का आरंभ कमलेश जगनायक व सरिता मार्गिया नें स्वागत गीत गाकर किया. कामिनी निर्मल नें छत्तीसगढ़ी पारंपरिक गीत एवं एस.विजया नें कृष्ण वंदना प्रस्तुत की, चंद्रकुमार पटेल नें हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में कविता पढ़ी. मारिशस से आये अतिथि का परिचय डॉ.सुधीर शर्मा नें दिया एवं आभार प्रदर्शन मैंनें किया.

इस कार्यक्रम में सूर्यकांत गुप्ता, अरूण कुमार निगम, ओमप्रकाश जायसवाल, सरला शर्मा, नवीन तिवारी, दुर्गा प्रसाद पारकर, दीन दयाल साहू, नीता काम्बोज, डॉ. मणिमेखला शुक्ला, वीरेन्द्र पटनायक, इन्द्रजीत दादर ‘निशाचार’, एवं माधुरी सिंह, किरण रजक, रश्मि जगत, मनीषा सिंह, माधुरी टोपले आदि साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

तुरते ताही : कविता का सौंदर्य


पिछले दिनों भिलाई की बहुचर्चित कवियत्री व समाज सेविका नीता काम्बोज ‘सिरी’ के पहले कविता संग्रह का विमोचन हुआ जिसमें शामिल होने का सौभाग्यी प्राप्त हुआ. खुशी हुई कि कवियत्री का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हो रहा है. इसके पूर्व मैं कवियत्री नीता काम्बोकज ‘सिरी’ के गीतों को कवि सम्मेलन और गोष्ठियों में सुनते रहा हूं. जहॉं उनके कुछ गीतों में व्याक्तिगत तौर पर मुझे उथली तुकबंदी एवं कविता की अकादमिक कसौटी की कमी नजर आती थी. उनका व्यक्तित्व‍ बेहद सहल है और उनमें बच्चों सी निश्छलता है. इस संग्रह के प्रकाशन के बाद मैं आशान्वित था कि कवियत्री नें अपनी कविताओं को प्रकाशन एवं मंच के अनुरूप अलग अलग छांटा होगा एवं अपनी श्रेष्ठ कविताओं को प्रकाशित करवाया होगा जिसमें उनकी कविताई का उचित मूल्यांकन हो पायेगा, क्योंकि उनमें कविता की पूरी समझ नजर आती है. इसके अतिरिक्त दूसरा तथ्य यह भी था कि यह कविता संग्रह ‘दृष्टिकोण’ डॉ.सुधीर शर्मा के वैभव प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है तो निश्चित है डॉ.सुधीर शर्मा नें कविताओं की वर्तनीगत व्याकरणिक भूलों को अकादमिक स्वरूप अवश्य प्रदान किया होगा. तीसरे तथ्य के रूप में अशोक सिंघई का भूमिका लेखन अहम रहा है क्योंकि अशोक सिंघई छत्तीसगढ़ के ऐसे कवि हैं जो पूरे भारत में हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि के रूप में जाने जाते हैं, यहॉं मैं यह स्पष्ट कर दूं कि डॉ. विमल कुमार पाठक नें भी इस किताब पर अपनी लेखनी बिखेरी है किन्तु मैं व्यक्तिगत तौर पर उन्हें हिन्दी कविता के संबंध में योग्य टिप्पणीकर्ता स्वीकार नहीं करता, इस पर बातें कभी और.

विमोचन कार्यक्रम में संकलन के संबंध में आमंत्रित वक्ताओं में अशोक सिंघई, डॉ.निरूपमा शर्मा, डॉ.रमेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ.नलिनी श्रीवास्तव नें विस्तार से अपनी समीक्षात्मक टिप्प्णियॉं दी एवं आधार वक्तव्य सरला शर्मा नें दिया. सभी नें नीता काम्बोज ‘सिरी’ की कविताओं को मुक्त‍ कंठ से सराहा. सरला शर्मा नें पूरे संग्रह में नारी अस्मिता का ध्वज फहराते नीता काम्बोज ‘सिरी’ की उस कविता का जिक्र किया जिसमें उसने पति की दूसरी पत्नी सौत पर कविता लिखी है. सरला शर्मा नें अपनी जानकारी के अनुसार इस कविता को किसी नारी के द्वारा लिखी गई अपने ढ़ंग की निराली कविता माना और कहा कि यह अकेली कविता इस संग्रह की जान है यह कविता कवियत्री को दीर्घजीवी बनायेगी. हिन्दी के वरिष्ठ कवि अशोक सिंघई नें अपने वक्तव्यव में बहुत सहज रूप से बतलाया कि अनुभवजन्य अतीत व जीवन की विसंगतिपूर्ण घटनाओं से उत्प‍न्न‍ भावों में कविता सृजित हो जाती है. उन्होंनें कविता को साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित होने में लगने वाले समय एवं कविता की श्रेष्ठता पर विस्तार से प्रकाश डाला. मैं स्पष्ट‍ कर दूं कि अशोक सिंघई यह बातें नीता काम्बोज ‘सिरी’ की कविताओं के संबंध में ही बोल रहे थे, उन्होंनें लक्षित रूप से नीता काम्बोज ‘सिरी’ को मंचीय कविता से परे साहित्य के द्वार में प्रवेश का राह बता रहे थे. नीता काम्बोज ‘सिरी’ नें अशोक सिंघई के इन गूढ़ बातों को कहॉं तक अमल में लाया यह तो उनकी दूसरी किताब में नजर आयेगी. बहरहाल इस कार्यक्रम नें सिद्ध किया कि नीता काम्बोज ‘सिरी’ को अपनी कविताओं के प्रति और भी गंभीर होने की जरूरत है.

कविता बहुत ही गंभीर विधा है इसे रचने वाले एवं पढ़ने वाले दोनों की गंभीरता से ही कविता अपने सामाजिक स्वरूप को व्यापक तौर पर व्यक्त कर पाती है, कविता का सौंदर्य तब और निखरता है. मंचीय कविता को साधना है साथ ही राजनैतिक व्यक्तित्व निखारना है तो स्थानीय मीडिया एवं स्थानीय चाटुकारों का सामंजस्य आवश्यक है. किन्तु जब हम जिसे कविता कह रहे हैं उसे साधना है तो इन सबको एक तरफ रख कर मुक्तिबोधों, पाशों, धूमिलों, नार्गाजुनों से लेकर विनोद कुमार शुक्लों, कमलेश्वरों, नरेश सक्सेनाओं, निशांतों, वर्तिका नंदाओं, आदि इत्यादि की कविताओं से भी गलबंहियां लेना पडेंगा. तभी डॉ.ओम निश्चल जैसे कविता के निर्मम आलोचकों की नजरों में उतरते हुए साहित्य जगत में स्थान मिल पायेगा. तब निश्चित है कि उनकी कविताओं को बिना नमस्कार चमत्कार के स्था‍नीय मीडिया ही नहीं राष्ट्रीय मीडिया भी तवज्जों देगी.

विमोचन कार्यक्रम में नीता आमंत्रित विशिष्‍ठ अतिथियों को दृष्टिकोण की प्रति हस्‍ताक्षर कर कर के प्रदान कर रही थी, हम इंतजार कर रहे थे कि हमें भी अब मिली कि तब पर जब प्रति नहीं मिली तब पता चला कि हमारी औकात क्‍या है. :) डॉ.सुधीर शर्मा नें कार्यक्रम में मेरे पहुचते ही मंच से मेरा स्‍वागत किया था और मेरे तथाकथित सम्‍मान में दो शब्‍दों के कसीदे भी पढ़े थे तो लगने लगा था कि विशिष्‍ठ भले ना सहीं शिष्‍ठ तो बने रहूं. (दो ठो स्‍माईली); विमोचन कार्यक्रम  के उपरांत बख्शी सृजन पीठ के द्वारा ‘दृष्टिकोण’ की एक प्रति नीलम चंद जी सांखला, दंतेवाड़ा को पहुचाने के लिए मुझे डकहार के रूप में प्रदान किया गया. यह मेरे लिए बहुत ही बड़े सौभाग्य की बात थी कि एक नजर कविताओं पर डाल सकूं किन्तु आपाधापी में मैं इस संग्रह की कविताओं को पढ़ नहीं पाया. संग्रह पढ़ने के बाद कोशिस करूंगा कि कुछ और लिखूं. अभी कवियत्री नीता काम्बोज ‘सिरी’ को इस संग्रह के लिए अनेकानेक शुभकामनायें.

तमंचा रायपुरी

तुरते ताही : कोदो दे के पढ़ई

रविशंकर विश्वविद्यालय के द्वारा अमहाविद्यालयीन छात्रों के लिए स्नातक एवं स्नातकोत्तर के परीक्षाओं के लिए परीक्षा फार्म इन दिनों महाविद्यालयों में आने वाले है. हम इसी का पता लगाने पिछले दिनों शासकीय विज्ञान महाविद्यालय दुर्ग गए वहॉं हमारे सहपाठी नरेश दीवान क्रीड़ा अधिकारी हैं वे मिल गए. आने का कारण पूछा तो हमने बतलाया कि एम.ए. का फार्म भरना है तो पता करने आए थे. उन्होंनें तपाक से कहा कि पिछले साल भी तो तुमने एम.ए.हिन्दी की परीक्षा दी थी ना और तुम्हारा परसेंट भी अच्छा आया था, तो अब फिर क्यों.

नरेश नें प्रतिवाद किया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं, बेकार में लोग अपना समय गवांते हैं. उन्होंनें किसी स्कूल शिक्षक का उदाहरण देते हुए बताया कि वह आठ विषयों में एम.ए. किया है, किन्तु स्कूल शिक्षक ही है. उसने अपने घर के सामने नाम पट्टिका में आठ एम.ए.का उल्लेख बड़े शान से किया है. नरेश का कहने का मतलब था कि उस स्कूल शिक्षक ने किसी विशेष विषय में विशेषज्ञता हासिल नहीं की इसलिए नौकरी के क्षेत्र में उसका विकास नहीं हो पाया. नरेश नें आगे यह भी बताया कि उन आठो एम.ए. में स्कूल शिक्षक का प्राप्तांक प्रतिशत 45 पार नहीं कर पाया जिसके कारण वे आठो डिग्रियॉं उसके पदोन्नति या दूसरी नौकरी में काम नहीं आ पाए. नरेश मुझे ज्यादा महाविद्यालयीन डिग्री लेने में समय बर्बाद करने के बजाए विषय विशेषज्ञता की सलाह दे रहा था.

तुरते ताही : छत्तीसगढ़ी में एम.ए. का श्रेय

जब से रविशंकर विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी में एम.ए. पाठ्यक्रम आरंभ करने की घोषणा आम हुई है बहुत सारे छत्तीसगढ़ के खास साहित्यकार इसका श्रेय स्वयं लेने की होड़ करते नजर आ रहे है. कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही दुर्ग के एक युवा साहित्यकार को इस बात की खुशफहमी है कि स्वयं डॉ.दुबे नें इसका श्रेय उन्हें दे दिया है वहीं राजभाषा आयोग भी मुफ्त में इसे भुनाने का अवसर नहीं गवांना चाहता. मैं स्वयं अपने आप को इसका श्रेय देता हूं क्योंकि मैंनें भी छत्तीसगढ़ी में एम.ए. पाठ्यक्रम होना चाहिए यह बात एक बार अपने दोस्तों से की थी. जो भी हो विश्वविद्यालय नें इसे आरंभ किया यह सराहनीय पहल है. इसके लिए विश्वविद्यालय के डॉ.व्यासनारायण दुबे एवं कुलपति डॉ.शिवकुमार पाण्डेय को ही असल श्रेय जाता है.

तुरते ताही 2 : राजभाषा आयोग के मंच में डॉ.पालेश्वर शर्मा जी के उद्बोधन पर मेरी असहमति एवं प्रतिरोध


पिछले 28 नवम्बर को छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर रायपुर में दो प्रमुख कार्यक्रम आयोजित हुए, एक सरकारी एवं दूसरी असरकारी. सौभाग्य से असरकारी कार्यक्रम की रिपोर्टिंग लगभग सभी संचार माध्यमों नें प्रस्तुत किया.

सरकारी कार्यक्रम छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के द्वारा संस्कृति विभाग के सभागार में आयोजित था. हम यहॉं लगभग अनामंत्रित थे किन्तु सरला शर्मा जी नें हमें इस कार्यक्रम में आने का अनुरोध किया था तो हम उनके स्नेह के कारण वहॉं पहुच गए थे. वैसे राहुल सिंह जी के रहते संस्कृति विभाग में हमारी जबरै घुसपैठ होती रही है तो हम साधिकार कार्यक्रम में सम्मिलित हो गए. कुर्सी में बैठते ही लगा कि मंचस्थ आयोग के सचिव पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे नें एक उड़ती नजर हम पे मारी है, निमंत्रण नहीं दिया फिर भी आ गया. छत्तीसगढ़ी भाषा के कार्यक्रमों में पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे की मुख मुद्रा कुछ इस तरह की होती है कि सामने जो आडियंस बैठी है वो रियाया है, और वे अभी अभी व्यक्तित्व विकास के रिफ्रेशर कोर्स से होकर आए हैं. इसलिए हम एक पल को सहम गए कि इन्होंनें देख लिया, पहचान गए कि नास्ते का डिब्बा डकारने वाला आ गया. इसी उहापोह में थे कि सचमुच में नास्ते का डिब्बा आ गया, हमने ना कही तो डिब्बा बांटने वाले नें जबरदस्ती हाथ में पकड़ा दिया. हम चाह रहे थे कि इस घटना को भी पद्म श्री देखें किन्तु बांटने वाला कुछ ऐसे खड़ा था कि डॉक्टर साहब देख नहीं पाये. बहुत देर तक डिब्बा हाथ में लिए बैठे रहे फिर ज्यादा सोंचने के बजाए सभी आमंत्रित अतिथियों की भांति रसमलाई का लुफ्त उठाने लगे.

यह कार्यक्रम चुनाव आचार संहिता की अवधि में हो रहा था इस कारण आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे. कार्यक्रम में जब हम पहुंचे थे तब डॉ.विनय कुमार पाठक जी का उद्बोधन चल रहा था जो राजभाषा आयोग के शब्दकोश एवं प्रयोजनामूलक छत्तीसगढ़ी के विकास में भावी योजनाओं के संबंध में था. इसके बाद कार्यक्रम का संचालन डॉ.सुधीर शर्मा नें आरंभ किया और रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति शिवकुमार पाण्डेय जी नें अपना उद्बोधन दिया.

इसके बाद प्रमुख वक्ता के रूप में पालेश्वर शर्मा जी नें अपना उद्बोधन आरंभ किया. पालेश्वर शर्मा जी छत्तीसगढ़ी भाषा के वरिष्ठ विद्वान हैं, छत्तीसगढ़ की संस्कृति, साहित्य और परम्परा के वे जीते जागते महा कोश हैं. हम उनसे छत्तीसगढ़ के संबंध में सदैव नई जानकारी प्राप्त करते रहे हैं किन्तु राजभाषा आयोग के इस कार्यक्रम में पालेश्वर शर्मा जी के लम्बे एवं उबाउ उद्बोधन में मोती छांटने की सी स्थिति रही. मैं हतप्रभ था कि यह पालेश्वर शर्मा जी पर वय का असर था या तात्कालिक मन: स्थिति, कुछ समझ में नहीं आया. संचालक को उनके उद्बोधन के बीच में ही पर्ची देना पड़ा पर पालेश्वर जी अपने रव में बोलते ही रहे. मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं किन्तु उन्होंनें जो 28 नवम्बर को छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के मंच से अपना वक्तव्य दिया उसमें से अधिकतम बातें उस मंच एवं स्वयं पालेश्वर जी की गरिमा के अनुकूल नहीं थी, मेरी असहमति एवं प्रतिरोध दर्ज किया जाए.

तमंचा रायपुरी

तुरते ताही 1 : नये छत्तीसगढ़ी वेब ठिकानों का स्वागत

इस बात को स्वीकारने में मुझे कोई गुरेज नहीं कि लोक भाषा छत्तीसगढ़ी के वेब पोर्टल गुरतुर गोठ डॉट कॉम के संपादन से मुझे बहुत कम समय में लोक साहित्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठा मिली. यह प्रतिष्ठा मुझे मेरे लगातार संवेदनशील और लीक से हटकर छत्तीसगढ़ी लेखन के बावजूद भी नहीं प्राप्त हो पाती जो मुझे इस पोर्टल के संपादन से प्राप्त हुई. हालांकि इसके पीछे मेरी जुनूनी लगन और अपनी भाषा के प्रति प्रेम का जजबा साथ रहा. मुझे इसे निरंतर रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी, वेब इथिक व कानूनी पेंचों को ध्यान में रखते हुए वेब आरकाईव में पड़े एवं पीडीएफ फारमेट की रचनाओं को नया वेब रूप प्रदान करना पड़ा. सैकड़ों पेजों की रचनाओं को परिवार के तानों के बावजूद टाईप करना पड़ा. जो भी हो मेरी तपस्या का फल मुझे मेरे पोर्टल के हजारों पाठकों के रूप में मिला.

मेरी नेट सक्रियता के शुरूआती समय से ही इच्छा रही कि छत्तीसगढ़ी भाषा और दूसरी लोक भाषाओं के वेब साईट भी नेट में अधिकाधिक संख्या में उपस्थित हो और लोक भाषा के साहित्य भी नेट में अपना स्थान बनायें. स्वप्न धीरे धीरे आकार लेती गई, इसी कड़ी में पिछले कुछ दिनों से लगातार उत्साहजनक व स्वागतेय सूचना प्राप्त हो रहा है कि छत्तीसगढ़ी में कुछ और वेब साईट आने वाले हैं. हम इंतजार कर रहे हैं किन्तु अभी तक कोई ठोस कार्य सामने नहीं आ पा रहा है. कुछ तकनीकि सक्षम साथियों नें अपने ब्लॉग तो बना लिये हैं किन्तु वे पाठकों के कम आवक के कारण उसे अपडेट नहीं कर पा रहे हैं. यह समस्या प्रत्येक नये वेब साईट में आम होता है, हम नेट में डाटा इसलिए नहीं डालते कि उसको तात्कालिक प्रतिसाद मिलेगा किन्तु हम उसे इसलिए डालते हैं कि भविष्य में उससे लोग लाभान्वित होंगें. नये आने वाले सभी वेबसाईटों के माडरेटरों से मेरा अनुरोध है कि उसे वे निरंतर रखें, निश्चित ही यदि हमारे साईट में लोगों के काम की चीज होगी तो वे उसे खोजते हुए आयेंगें ही. इस संबंध में अहम बात यह ध्यान रखें कि इसके लिए किसी डोमेन और होस्टिंग की आवश्यकता नहीं. मुफ्त के ब्लॉग से भी आप भाषा और साहित्य की सेवा कर स​कते हैं, 500 रू. के डोमेन से ब्लॉग मैपिंग कर स्वयं के वेब साईट का भ्रम भी पाल सकते हैं या डोमेन व न्यूनतम 1200 से 7000 रू. के सालाना होस्टिंग के खर्च पर स्वतंत्र वेब पोर्टल संचालित कर सकते हैं.

इस संबंध में यह बात भी ध्यान रखें कि रेहड़ी चलाने वाले के बच्चे पहले शौक में रेहड़ी पेलते हैं, उत्साह में मस्ती करते हैं और जब यही रेहड़ी जब बड़े होने पर दायित्व बन जाती है तो उन्हें उस रेहड़ी के ठेलने में लगने वाले असल बल का भान होता है. किसी वेब साईट या ब्लॉग को आरंभ करना, शुरूआती दौर में उसे लगातार अपडेट करना, टिप्पणियों व क्लिकों से उत्साहित होना इसके बाद में उसे निरंतर रखना भी रेहड़ी चलाने जैसा दायित्व बोध है. नये वेब साईट के माडरेटरों के इस बोध का स्वागत है.
तमंचा रायपुरी
चित्र गो इंडिया डॉट काम से साभार

छत्तीसगढ़ी ब्लॉग की दुनिया

छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों के सफर की शुरूआत के कई दावे हो सकते हैं लेकिन साहित्यकार जय प्रकाश मानस ने जब छत्तीसगढ़ी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘लोकाक्षर’ को आनलाईन किया तब लोगों को पहली बार अपनी मातृभाषा के साहित्य को, आनलाईन पाकर अत्यंत प्रसन्नता हुई. इसी समय में मानस ने छत्तीसगढ़ी के पहली उपन्यास और शिवशंकर शुक्ल जी की कृति दियना के अँजोर व जे.आर.सोनी की कृति चन्द्रकलामोंगरा के फूल (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह) आदि को ब्लॉग प्लेटफार्म पर प्रस्तुत किया और छत्तीसगढ़ी साहित्य एक क्लिक में जन सुलभ हो गया. इसी तरह साहित्यकार परदेसी राम वर्मा का उपन्यास आवा भी ब्लॉग के माध्यम से नेट के पाठकों तक पहुंचा.

इस समय तक हिन्दी ब्लॉगों में छुटपुट छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग जारी था. गूगल का सोसल नेटवर्किंग साईट ‘आरकुट’ तब अपने चरम पर था. अमरीका में शोध कर रहे धमतरी के युवा युवराज गजपाल ने इस सशक्त माध्यम में छत्तीसगढ़ी ग्रुप बनाकर छत्तीसगढ़ी रचनाओं को सहेजा. युवराज गजपाल ने सीजी नेट में भी कई लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी गानों का संग्रह किया जो याहू के सीजी नेट समूह के द्वारा लाखों लोगों तक पहुचा और बहुत सराहा गया. यह समय इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी भाषा का बोलबाला वाला समय रहा, जिसका श्रेय युवराज गजपाल को जाता है.

आरकुट के अवसान एवं फेसबुक के उत्स के बीच के समय में हिन्दी ब्लॉगों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई. हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटर नारदचिट्ठाजगत, ब्‍लॉगवाणी आदि के सहारे ब्लॉगों के फीड धड़ा धड़ लोगों तक पहुचने लगे और पाठकों की संख्या में भी वृद्धि हुई. इस आलेख के लेखक ने पहले अपने ब्लॉग आरंभ में एवं फिर संजीत त्रिपाठी ने अपने ब्लॉग आवारा बंजारा में कुछ छत्तीसगढ़ी पोस्ट लिखे, इन पोस्टों को काफी सराहा गया. इस समय तक हिन्दी ब्लॉग जगत में छत्तीसगढ़ का दबदबा ब्लॉगरगढ़ के रूप में स्थापित हो चुका था.

‘लोकाक्षर’ का आनलाईन प्रकाशन एक वर्ष के बाद बंद हो गया था और इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी रचनाओं की निरंतरता कायम नहीं रह पाई थी. इसी समय में नियमित रूप से छत्तीसगढ़ी रचनाओं को प्रस्तुत करने की आकांक्षा इस आलेख के लेखक के मन में जागी. साथियों की मंशा थी कि छत्तीसगगढ़ी रचनायें इंटरनेट में नियमित उपलब्ध हो और 2007 में गुरतुर गोठ का स्वरूप तय हुआ.

अक्टूबर 2008 से गुरतुर गोठ में नियमित रूप से प्रतिष्ठित रचनाकारों की छत्ती़सगढ़ी रचनांए प्रकाशित होने लगी. देखते ही देखते इस ब्लॉग के छत्तीसगढ़िया मूल के विदेशी पाठकों की संख्या में वृद्धि होती गई, उनके नियमित मेल आने लगे. नियमित रूप से छत्तीसगढ़ी के विभिन्न रचनाकारों को प्रकाशित करने वाला यह पहला ब्लॉग था.

शुरूआती दौर में अन्य छत्तीसगढ़िया ब्लॉगरों ने सामूहिक ब्लॉग के रूप में रचनाएं डालने में सहयोग किया किन्तु दो चार पोस्टों के बाद ही इस क्रम का अंत हो गया, रचनाओं को टाईप करने में सभी कतराते रहे. छत्तीसगढ़ी के प्रति पाठकों की रूचि और इसे निरंतर रखने के अनुरोध के कारण इस आलेख का लेखक स्वयं इसके लिए प्रतिबद्ध हो गया और इसे आज तक अनवरत रखा हुआ है.

इस बीच कुछ और छत्तीसगढ़ी ब्लॉग बनाए गए जिसमें रचनांए आई किन्तु नियमित नहीं रहीं. कनाडा से डा.युवराज गजपाल ने पिरोहिल एवं ललित शर्मा ने अपने स्वयं की छत्तीसगढ़ी रचनाओं के लिए ‘अड़हा के गोठ’ नाम से ब्लॉग बनाया किन्तु इसमें रचनायें नियमित नहीं रहीं. हालांकि ललित शर्मा अपने हिन्दी ब्लॉगों में छत्तीसगढ़ पर केन्द्रित विषयों में प्रचुर मात्रा में निरंतर लिख रहे हैं.

गुण्डरदेही के संतोष चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ी भाषा में दो ब्लॉग बनाये और जब छत्तीसगढ़ी में विभिन्न रचनाकारों की छत्तीसगढ़ी रचनायें प्रकाशित करना आरंभ किया तो सभी की आशा जाग उठी कि वृहद छत्तीसगढ़ी शब्दकोश के लेखक चंद्रकुमार चंद्राकर जी की रचनायें, शब्दकोश व मुहावरे इसमें पढ़ने को मिलेंगी एवं इंटरनेट में इनका दस्तावेजीकरण भी होगा, ये जनसुलभ हो पायेंगे किन्तु संतोष चंद्राकर इसे अपनी व्यस्तता के कारण निरंतर नहीं रख पाये.

गुरतुर गोठ के संपर्क में आने के बाद भाठापारा के मथुरा प्रसाद वर्मा ने मोर छत्तीसगढ़ी गीत, रायपुर के अनुभव शर्मा ने घुरूवा ग्राम बंधी, दाढ़ी के ईश्वर कुमार साहू मया के गोठ आदि ने भी अपने छत्तीसगढ़ी ब्लॉग बनाये, जिसमें अपनी रचनाओं को प्रकाशित किया. हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के मिश्रित ब्लॉग में बिलासपुर के डॉ. सोमनाथ यदु का ब्लॉग सुहई, जांजगीर के राजेश सिंह क्षत्री का ब्लॉग मुस्कान आदि में रचनायें गाहे बगाहे आती रही. भोपाल से रविशंकर श्रीवास्तव जी ने अपने प्रसिद्ध ब्लॉग रचनाकार में भी छत्तीसगढ़ी की रचनायें एवं संपूर्ण किताब अपलोड किया है.

छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों में जगदलपुर के राजेश चंद्राकर का ब्लॉग सीजीगीत संगी का अवदान उल्लेखनीय है. ऐसे समय में जब इंटरनेट में सक्रिय लोगों ने छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों को भरपूर उपेक्षित किया, उस समय में सीजी गीत संगी ने अभिनव प्रयोग करते हुए छत्तीसगढ़ी गीतों को लिपिबद्ध रूप में प्रस्तुत करते हुए उनके ऑडियो भी प्रस्तुत किए. सीजीगीत संगी के माडरेटर ने अपने तकनीकि ज्ञान का भरपूर उपयोग करते हुए इस ब्लॉग को सीओ तकनीक में सक्षम बनाया. जिसके कारण इसमें सर्च इंजन से भी पाठक आने लगे और आज भी यह छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लॉग बना हुआ है.

निरंतरता के क्रम में कोदूराम दलित की रचनाओं को इंटरनेट प्लेटफार्म देने के लिए उनके पुत्र अरूण कुमार निगम ने सियानी गोठ के नाम से ब्लॉग आरंभ किया उसे उन्होंने नियमित रखा है. छत्तीसगढ़ी के स्थापित युवा साहित्यकार जयंत साहू ने चारी चुगली के नाम से अपना छत्तीसगढ़ी ब्लॉग बनाया है और वे इसमें अंतरालों में अपनी रचनायें प्रकाशित करते रहते हैं.

इन सबके बावजूद उंगलियों में गिने जा सकने वाले इन छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों को आज प्रोत्साहन व पहचान की आवश्यकता है. इंटरनेट में भोजपुरी, अवधी एवं मैथिली ब्लॉगों में जिस तरह से उनके भाषा प्रेमियों का प्रेम व सम्मान झलकता है, ऐसा छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों में नहीं है. उम्मीद की जानी चाहिये कि इनकी संख्या में वृद्धि होगी और अंतरजाल में छत्तीसगढ़ी भाषा भी समृद्ध होगी.

(संभव है, कुछ ब्लॉगों का नाम उल्लेख नहीं हो पाया हो, पाठक इस बारे में अपनी राय हमें देंगे)

.

.
छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...