पदुमलाल पन्नालाल बख्शी सृजनपीठ भिलाई में 30 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ राट्रभाषा प्रचार समिति की ओर से आयोजित ‘वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया था, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप से बोलते हुए महात्मा गांधी संस्थान के प्राध्यापक एवं लेखक-पत्रकार राज हीरामन नें कहा कि पूरे विश्व में हिन्दी भाषा तेजी से फैल रही है एवं वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी का सम्मान निरंतर बढ़ता जा रहा है. उन्होंनें बतलाया कि आज विश्व के प्रत्येक देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है. अमरीका, मलेशिया सहित विश्व के विभिन्न देशों में वहां की सरकारें हिन्दी में पत्र-परिपत्र निकाल रही है. उन्होंनें अपने देश मारिशस का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां तो सरकार का आधार हिन्दी है, वहां की पहली लोकतांत्रिक सरकार से लेकर अब तक के 90 प्रतिशत मंत्री एवं सदस्य हिन्दी भाषी हैं. मारिशस के लोग भारत की संस्कृति, परम्परा एवं भाषा का आज भी पूर्ण सम्मान करते हैं. मारिशस के हिन्दी के प्रति प्रेम के कारण ही विश्व हिन्दी सचिवालय का कार्यालय मारिशस में खोला गया है एवं दो बार विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया जा चुका है. राज हीरामन नें आगे बताया कि मारीशस में हिन्दी भाषी लोगों की बहुतायत है. वर्षों पूर्व गिरमिटिया मजदूर के रूप में भारत से रामायण एवं हनुमान चालिसा लेकर मारिशस गए लोगों की अब की पीढ़ी अब अच्छे ओहदे पर एवं आर्थिक व सामाजिक रूप से सम्पन्न है. उनके दिलों में आज भी गांधी एवं हिन्दी की परम्परा कायम हैं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक सिंघई नें कहा कि संपर्क भाषा से लेकर साहित्य व तकनीकि के क्षेत्र में हिन्दी की लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई है. मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यंग्यकार व कवि रवि श्रीवास्तव नें कहा कि हमारी हिन्दी समृद्ध है एवं विश्व के अनेकों देशों में सम्मानित है. कार्यक्रम का आरंभ कमलेश जगनायक व सरिता मार्गिया नें स्वागत गीत गाकर किया. कामिनी निर्मल नें छत्तीसगढ़ी पारंपरिक गीत एवं एस.विजया नें कृष्ण वंदना प्रस्तुत की, चंद्रकुमार पटेल नें हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में कविता पढ़ी. मारिशस से आये अतिथि का परिचय डॉ.सुधीर शर्मा नें दिया एवं आभार प्रदर्शन मैंनें किया.
इस कार्यक्रम में सूर्यकांत गुप्ता, अरूण कुमार निगम, ओमप्रकाश जायसवाल, सरला शर्मा, नवीन तिवारी, दुर्गा प्रसाद पारकर, दीन दयाल साहू, नीता काम्बोज, डॉ. मणिमेखला शुक्ला, वीरेन्द्र पटनायक, इन्द्रजीत दादर ‘निशाचार’, एवं माधुरी सिंह, किरण रजक, रश्मि जगत, मनीषा सिंह, माधुरी टोपले आदि साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे.