छत्‍तीसगढ़ के प्रथम मानवशास्‍त्री - डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह


'जनजातीय समुदाय के उत्‍थान और विकास का कार्य ऐसे लोगों के हाथों होना चाहिए, जो उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य और सामाजिक व्‍यवस्‍था को पूरी सहानुभूति के साथ समझ सकें.' गोंड जनजाति के आर्थिक जीवन पर शोध करते हुए शोध के गहरे निष्‍कर्ष में डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह जी नें अपने शोध ग्रंथ में कहा था।
पिछले दिनों पोस्‍ट किए गए मेरे आलेख आनलाईन भारतीय आदिम लोक संसार पोस्‍ट को पढ़ कर पुरातत्‍ववेत्‍ता, संस्‍कृतिविभाग छ.ग.शासन में अधिकारी एवं सिंहावलोकन ब्‍लॉग वाले श्री राहुल सिंह जी नें हमें जनजातीय जीवन के शोधकर्ता डॉ. श्री  इन्‍द्रजीत सिंह जी के संबंध में महत्‍वपूर्ण जानकारी उपलब्‍ध कराई। यथा -


बहुमुखी प्रतिभा और प्रभावशाली व्‍यक्तित्‍व के धनी इन्‍द्रजीत सिंह जी का जन्‍म अकलतरा के सुप्रसिद्ध सिसौदिया परिवार में 28 अप्रैल 1906 को हुआ. अकलतरा में प्रारंभिक शिक्षा के बाद आपने बिलासपुर से 1924 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और आगे की शिक्षा इलाहाबाद और कलकत्‍ता के रिपन कालेज से प्राप्‍त की. सन् 1934 में स्‍नातक करने के बाद लखनऊ विश्‍वविद्यालय से अर्थशास्‍त्र में स्‍नातकोत्‍तर उपाधि तथा 1936 में वकालत की परीक्षा पास की.
निरंतर अध्‍ययनशील रहते हुए आपने गोंडवाना पट्टी जिसके केन्‍द्र में बस्‍तर था, को अपने अध्‍ययन का क्षेत्र बनाया एवं 'गोंड जनजाति का आर्थिक जीवन' को अपने शोध का विषय बना कर गहन शोध में रम गए. आपका यह शोध कार्य देश के प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री डॉ. राधाकमल मुखर्जी व भारतीय मानव विज्ञान के पितामह डॉ. डीएन मजूमदार के मार्गदर्शन और सहयोग से पूर्ण हुआ. शोध के उपरांत आपका शोध ग्रंथ सन् 1944 में 'द गोंडवाना एंड द गोंड्स' शीर्षक से प्रकाशित हुआ. आपके इस गहरे और व्‍यापक शोध के निष्‍कर्ष में यह स्‍पष्‍ट हुआ कि 'जनजातीय समुदाय के उत्‍थान और विकास का कार्य ऐसे लोगों के हाथों होना चाहिए, जो उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य और सामाजिक व्‍यवस्‍था को पूरी सहानुभूति के साथ समझ सकें.'
अपने प्रकाशन के समय से ही 'द गोंडवाना एंड द गोंड्स' दक्षिण एशियाई मानविकी संदर्भ ग्रंथों में बस्‍तर-छत्‍तीसगढ़ तथा जनजातीय समाज के अध्‍ययन की दृष्टि से अत्‍यावश्‍यक महत्‍वपूर्ण ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित है. 'इलस्‍ट्रेटेड वीकली आफ इंडिया' में इस ग्रंथ की समीक्षा पूरे महत्‍व के साथ प्रकाशित हुई थी. चालीस के चौथे-पांचवें दशक में बस्‍तर अंचल में किया गया क्षेत्रीय कार्य न सिर्फ किसी छत्‍तीसगढ़ी, बल्कि किसी भारतीय द्वारा किया गया सबसे व्‍यापक कार्य माना गया. इस दुरूह और महत्‍वपूर्ण कार्य के लिए आपको इंग्‍लैंड की 'रॉयल सोसाइटी' ने इकानॉमिक्‍स में फेलोशिप प्रदान किया.
बेहद सक्रिय और सार्थक सार्वजनिक जीवन व्‍यतीत कर, मात्र 46 वर्ष की आयु में हृदयाघात से 26 जनवरी 1952 को आपका निधन हो गया.
सिंहावलोकन ब्‍लॉग वाले श्री राहुल सिंह जी को धन्‍यवाद सहित।

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...