हमारी भाषा एवं संस्कृति का जो मान नहीं रखेगा उसे हम जूता मारेंगें

पिछले दिनों कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल के द्वारा मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के लिए की गई टिप्पणी 'परोसी के भरोसा लईका पैदा करे' पर बहुत शोर शराबा हुआ एवं मीडिया नें भी इसे बतौर समाचाार लगातार छापा. इस बीच कुछ पत्रकार मित्रों के फोन भी आए कि इस कहावत पर जानकारी दूं एवं इस पर त्वरित टिप्पणी भी दूं. किन्तु मेरी निजी व्यस्तता व समयाभाव के कारण कुछ लिख नहीं पाया. भूपेश बघेल नें अपनी टिप्पणी 'परोसी के भरोसा लईका पैदा करे' पर सफाई दिया कि यह छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति है जिसका अर्थ है किसी अन्य के श्रम से सफलता प्राप्त करना. धान के मूल्य वृद्धि के लिये केन्द्र को लिखे पत्र को आधार बनाकर बधेल नें मुख्यमंत्री को घेरा था.

केन्द्र के पैसे से मुख्यमंत्री वाहवाही लूटना चाहते हैं इस बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए भूपेश बघेल नें यह टिप्पणी की थी. भाजपा के विजय बघेल नें इसे स्तरहीन व भद्दी टिप्पणी मानते हुए धरना प्रदर्शन भी किए थे. पलटवार करते हुए भूपेश बघेल टिप्पणी के विरोध को छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति का विरोध बताते हुए अपनी बात पर अड़े रहे.

जब पत्रकार मित्रों नें इस मुहावरे/लोकोक्ति का जिक्र किया तभी एकबारगी दिमाग नें इसे छत्तीसगढ़ी मुहावरा/लोकोक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया था तो इस बीच मै इसे पूर्व प्रकाशित पुस्तकों में ढ़ूढ़ने का काम भी करता रहा. किताबों में यह ना तो मुहावरे के रूप में मिला ना ही लोकोक्ति के रूप में. गांवों में कुछ फोन भी घुमाया, तब तक समाचार पत्रों नें बात फैला दी थी और लगा कि लोग राजनीति से प्रेरित होकर जवाब दे रहे हैं. कुछ स्पष्ट लोगों नें कहा कि यह ना तो प्रचलित मुहावरा है और ना ही प्रचलित लोकोक्ति, यह हो सकता है कि यदा कदा या किसी गांव विशेष में इसका प्रयोग हो रहा हो किन्तु बहुत बड़े भू भाग में इसका प्रयोग नहीं सुना गया है. इसी कारण इस बात पर छत्तीसगढ़ी के किसी आम—खास नें बयान नहीं दिया. छत्तीसगढ़ी भाषा में कई ऐसे मुहावरे व लोकोक्तियॉं हैं जो अश्लील हैं, किन्तु व्यवहार में उन मुहावरों का प्रयोग सार्वजनिक रूप से नहीं किया जाता. भूपेश बघेल के द्वारा प्रयुक्त टिप्पणी अश्लील नहीं है, किन्तु इसका प्रयोग मुख्यमंत्री के लिए सार्वजनिक मंच से नहीं किया जाना चाहिए था.

कल सदन में हुए बहस में भूपेश नें इसी बात को संयमित तरीके से कहा. उनके मुख्यमंत्री के अन्य प्रदेश से आने की बात पर प्रेम प्रकाश पाण्डेय की बहस हम छत्तीसगढ़ियों के लिए सामान्य बात नहीं है. यह सत्य है कि छत्तीसगढ़ के मूल निवासी आदिवासी ही हैं बाकी सभी इस भू भाग में बाद में ही आए हैं किन्तु जो हमारी भाषा एवं संस्कृति का मान नहीं रखते वहीं असल में गैर छत्तीसगढ़िया हैं. इसमें कोई दो मत नहीं कि मुख्यमंत्री ठेठ छत्तीसगढ़िया हैं, हॉं यह अवश्य है कि मंत्रीमंडल के कुछ सदस्य सिर्फ दस्तावेजी आधार पर छत्तीसगढ़िया हैं. ऐसे दस्तावेजी छत्तीसगढ़िया यदि छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति का मान नहीं रख सकेंगें तो जनता मौके पर मजा चखाती भी है. प्रेमप्रकाश पाण्डेय के संबंध में कहा जाता था कि पिछले विधान सभा अध्यक्ष काल में उन्होंनें अपने पास बिहारियों का आभामण्डल बना कर रखा था, छत्तीसगढ़ी भासियों का पीपीपी के बंगले में कोई पुछंतर नहीं था, इसीलिये जनता नें उन्हें हरा दिया था. इस विधान सभा चुनावी समय में कुछ दिनों मैंनें पीपीपी के बंगले एवं क्षेत्र का हालचाल लिया है जहॉं छत्तीसगढ़ियों के लिए आशा की किरण नजर आई है. उन्होंनें अपने व्यक्तित्व पर लगे बहुत सारे तथाकथित मिथकों को तोड़ा है और जीत के आए हैं. वैसे राजनीति और प्रेम में सब जायज है. तो हम क्यूं फोकट में बहसियायें.

छत्तीसगढ़ के भिलाई जैसे औद्यौगिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रदेशों के लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकतम लोग छत्तीसगढ़ी बोल नहीं सकते. छत्तीसगढ़ी नहीं बोल पाना कोई अपराध नहीं है, हमारी भाषा का मान नहीं रखना अपराध है. खासकर ऐसे क्षेत्रों के नवधनाड्यों के घरों में यह परिपाटी के तौर पर देखनें को मिलता है क्योंकि उनके घरों में काम करने वाले निचले तबके के कर्मचारी छत्तीसगढ़ी भाषी होते हैं. वे समझते हैं कि छत्तीसगढ़ी दीनों की भाषा है, इस संबंध में एक अनुभव मैं आप सब से शेयर करना चाहता हूं. लगभग सात—आठ साल पहले आरकुट के दिनों में मैंनें आरकुट में छत्तीसगढ़ी मुहिम चलाई थी तब भिलाई के एक बहुत ख्यात डाक्टर की युवा पुत्री नें अंग्रेजी में मुझे कमेंट किया था कि छत्तीसगढ़ी गई उसके 'एश होल' में. मैं इसे तूल नहीं देना चाहता था और उस समय प्रतिरोध के तरीको ​का मुझे भान नहीं था इसलिए चुप रहा. किन्तु अब जब नुक्कड़ से लेकर सदन तक बात छत्तीसगढ़िया की आ गई तो इस पर सनद के तौर पर कुछ लिख देना आवश्यक जान पड़ा. सो नोट किया जाए हमारी भाषा एवं संस्कृति का जो मान नहीं रखेगा उसे हम जूता मारेंगें.

तमंचा रायपुरी



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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...