जे बहु गणा गता सो पंथा : अजीत जोगी (Ajit Jogi)


छत्तीसगढ में किसी छत्तीसगढिया का पहला नाम सम्मान से मेरे जहन में कौंधता है तो वह पहला नाम है, अजीत प्रमोद कुमार जोगी । हॉं, अजीत जोगी एक व्यक्ति नहीं एक संस्था, एक विचार । हमारी अस्मिता को नई उंचाईयॉं प्रदान करने वाले पेंड्रा के सुविधविहीन छोटे से गांव में जन्म लेकर एस पी, कलेक्टर फिर सांसद व छत्तीसगढ के प्रथम मुख्य मंत्री बनने के गौरव के बावजूद छत्तीसगढिया सहज सरल व्यक्तित्व के धनी, अजीत प्रमोद कुमार जोगी ।

छत्तीसगढ के जनजातीय इतिहास को यदि हम खंगालें तो हमें परिगणित समुदाय की सत्ता का विस्तृत रूप नजर आता है, सत्ता व प्रतिभा का यह आग बरसों से राख में दबा गौरेला के गांव में पडा था जो छत्तीसगढ की सत्ता का असल हकदार था ।

खडखडिया सायकल से मोहन, शंकर व राजू के साथ आठ किलोमीटर सायकल ओंटते हुए स्कूल जाकर पढाई करने, मलेनियां नदी के बहाव को घंटों निहारने के साथ ही ठाकुर गुलाब सिंह के सिखाये संस्कृत श्लोंकों को आज तक हृदय में बसाये अजीत जोगी जी नें खाक से ताज तक की यात्रा अपनी मेहनत व अपनी असामान्य प्रतिभा के सहारे तय की है ।

मौलाना अबुल कलाम आजाद अभियांत्रिकी महाविद्यालय, भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद से ख्यात प्रशासक आर पी व्ही टी नरोन्हा के प्रसंसक अजीत जोगी जी नें पहले 1967 में भारतीय पुलिस सेवा फिर 1970 में भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा बिना आरक्षण का लाभ लिये उत्तीर्ण किया यही नहीं उन्होंनें भारतीय प्रशासनिक सेवा में भारत के प्रथम दस सफल उम्मीदवारों में अपना नाम दर्ज कराया ।

सीधी, शहडोल, उमरिया, रायपुर व इंदौर में कलेक्टर के रूप में इनका कार्यकाल यादगार रहा है । कुशल प्रशासक के सवोच्च गुणों से सम्पन्न अजीत जोगी जी के कलेक्टरी के किस्से आज भी कर्मचारी बतलाते हैं । रायपुर में जब ये कलेक्टर थे तब जनता सेवा की इनकी प्रतिबद्धता को हमारे एक परिचित बतलाते हैं कि जब वे अचानक किसी गांव का दौरा करते थे एवं ग्रामीण कोई जायज शिकायत करते थे तब कागज-डायरी-फाईलों के आडंबर से दूर सिगरेट के खाली डिब्बे के पीछे मातहत कर्मचारियों के लिये आदेश लिखते थे तब कामचोर अधिकारी कर्मचारी मुत भरते थे । आज भी कई आफिसों में ऐसे पुर्जे आदेश के रूप में सुरक्षित हैं ।

कालांतर में जनता सेवा के इसी जजबे नें उन्हें राजनिति में स्थापित कर दिया । पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी नें छत्तीसगढ के जंगल के इस अनमोल हीरे को पहचाना, कहते हैं कि जब – जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी जी छत्तीसगढ के दौरे पर होती विमान चालक के रूप में राजीव गांधी जी भी छत्तीसगढ आते थे उस समय जोगी जी रायपुर के कलेक्टर थे और इनकी राजीव गांधी जी से मेल मुलाकात होती रहती थी । इसी समय से जोगी जी की प्रतिभा को तदसमय के भावी प्रधानमंत्री नें पहचान लिया था । तेरह वर्ष के रिकार्ड कलेक्टरी करने लेने के पश्च्यात सन् 1986 में इन्हें राज्य सभा के लिये चुन लिया गया, पार्टी के बेहतर सेवा के फलस्वरूप इन्हें 1992 में दुबारा राज्य सभा के लिए चुन लिया गया । इस समय तक तेज तर्रार अजीत जोगी जी भारत की राजनिति में अपनी प्रतिभा का परचम चहूं ओर फहरा चुके थे । 995 में इन्होंनें संयुक्त राष्ट्र संघ के पचासवीं वर्षगांठ पर संपूर्ण विश्व के प्रतिनिधियों को संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में संबोधित कर पूरे विश्व को अपनी क्षमता व प्रतिभा का कायल बना दिया ।

दो कार्यकाल तक राज्य सभा से चुने जाने के बाद सन् 1998 में रायगढ लोकसभा से इन्हें चुनकर छत्तीसगढ की जनता नें इस असल छत्तीसगढिया का सम्मान किया । 1 नवम्‍बर 2000 से इस छत्तीसगढिया नें छत्तीसगढ के प्रथम मुख्यमंत्री के पद को विकास की गंगा बहाते हुए अपनी गरिमामय प्रशासन व जन सेवा से पूरे कार्यकाल तक र्निविघ्न नवाजा । सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में एक गंभीर दुर्घटना के बावजूद वे रिकार्ड मतो से विजयी हुए । इस दुर्घटना नें उनकी सक्रियता को बांधने का प्रयास किया किन्तु अदम्य इच्छाशक्ति एवं सुदृढ वैचारिक प्रतिभा के धनी अजीत जोगी नें इससे उबरना सीख लिया है और वे अब धीरे धीरे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं ।

बचपन में ‘जे बहु गणा गता सो पंथा’ के सहारे जंगल में भटकने के बावजूद रास्ता पा जाने वाले अजीत जोगी जी नें इस संस्कृत के इस पद के विपरीत लोगों के पदचिन्हों के पीछे चलने के बजाए स्वयं अपना रास्ता बनाया है । आज 29 अप्रैल को इनके जन्म दिवस पर मैं उन्हें शुभकामनायें देता हूं एवं कामना करता हूं कि ईश्वर उन्हें आरोग्य प्रदान करें , छत्तीसगढ को उनसे अभी बहुत कुछ पाना है ।

संजीव तिवारी

(मैं राजनितिज्ञ नहीं हूं, न ही मुझे सत्ता या राजनीति से किंचित भी लगाव है । भावनात्मक रूप से मैं भारतीय जनता पार्टी को अपने ज्यादा करीब पाता हूं । कुछ वर्षों तक दिवंगत समाजवादी चिंतक, विद्वान पूर्व विधायक, छ.ग. लोकलेखा समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं छत्तीसगढ के उपनेता प्रतिपक्ष स्व. महेश तिवारी के वैचारिक सहयोगी के रूप में कार्य करते हुए मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी जी की प्रतिभा से रूबरू हुआ था, फिर एक जनता के रूप में उनका एक राज्य प्रमुख और प्रशासक के व्‍यक्तित्‍व का आंकलन करता रहा जिसके बाद ही इसे शब्‍द दे पाया । अजीत जोगी जी की कृतियां, लेख संग्रह ‘दृष्टिकोण’ व ‘सदी के मोड पर’ व कहानी संग्रह ‘फूलकुंअर’ एवं अंगेजी में ‘द रोल आफ डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर’ व ‘एडमिनिस्‍ट्रेशन आफ पेरिफेरल एरियाज’ व इन पर प्रकाशित ढेरों लेखों के बावजूद कुछ भी समय पर उपलब्ध नहीं हो पाया, इसके साथ ही मेरे भ्रमण पर होने के कारण व्यक्तिगत रूप से संदर्भ सामाग्री भी उपलब्ध नहीं हो पाया। भविष्य में इन्हें पढने के बाद गैर राजनीतिक रूप से वैचारिक पहलुओं पर एक बेहतर आलेख प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा )

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...