फेसबुक व ट्विटर में सक्रिय छत्‍तीसगढ़ी भाषा भाषी साथियों से एक विनम्र अपील

साथियों यह खुशी की बात है कि देखते ही देखते छत्‍तीसढ़ी भाषा के प्रेमी फेसबुक व ट्विटर एवं अन्‍य सोशल नेटवर्किंग माध्‍यमों में सक्रिय हो रहे हैं। आपकी उपस्थिति से इंटरनेट में छत्‍तीसगढ़ी भाषा का प्रचार प्रसार बढ़ा है एवं अपनी मातृभाषा के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है। देखनें में यह आ रहा है कि हम अपनी अभिव्‍यक्ति अपनी मातृभाषा में फेसबुक व ट्विटर के द्वारा बखूबी अभिव्‍यक्‍त कर रहे हैं किन्‍तु फेसबुक व ट्विटर के साथ एक समस्‍या है कि यह दीर्घकालीन माध्‍यम नहीं है। यहॉं प्रस्‍तुत अभिव्‍यक्ति आपसे जुड़े लोगों तक सीमित पहुंच में है।

आप अपनी अभिव्‍यक्ति मुफ्त उपलब्‍ध साधन ब्‍लॉग के द्वारा प्रस्‍तुत करें एवं उसका लिंक फेसबुक व ट्विटर आदि में देवें इससे यह होगा कि आपकी अभिव्‍यक्ति का दस्‍तावेजीकरण होगा एवं रचनाऍं सर्चइंजन के माध्‍यम से इच्‍छुक पाठकों तक पहुच पायेंगी। इससे इंटरनेट में छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य का भंडारन भी होता जायेगा जो आगामी पेपर लेस दुनिया के लिए उपयोगी होगा।

आप स्‍वयं महसूस कर रहे होंगें कि छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य का प्रिंट वर्जन जन सुलभ नहीं है। हम आप अपनी रचनाओं का संग्रह 100-500 प्रतियों में छपवाते हैं और उसे छत्‍तीसगढ़ी के ज्ञात रचनाधर्मियों को मुफ्त में बांट देते हैं। इस प्रकार हमारी रचनाऍं उन प्रतियों की संख्‍याओं तक ही सीमित हो जाती है एवं उनका आंकलन भी उन्‍हीं संख्‍या के पाठकों तक हो पाता है। ऐसे में संभव है कि हमारी रचनाओं का उचित आंकलन मठाधीशी व पूर्वाग्रहों के कारण ना हो पाये।

यदि आप अपनी रचनाऍं नेट में ब्‍लॉग के माध्‍यम से भी प्रस्‍तुत करेंगें तो निश्चित है कि आगामी पेपर लेस जमाने में कम से कम शोध छात्र को अवश्‍य फायदा पहुचेगा एवं नयी पीढ़ी के सामने साहित्‍य का समग्र रूप छुप ना सकेगा। हो सकता है कि यह बातें अभी कपोल कल्‍पना लगे किन्‍तु यह शाश्‍वत सत्‍य है।

इस बात की महत्‍ता को स्‍वीकार करते हुए पूर्व से ही ललित शर्मा, सुशील भोले, जनकवि कोदूराम दलित जी के पुत्र अरूण कुमार निगम, जयंत सा‍हू, राजेश चंद्राकर, संतोष चंद्राकर, डॉ.सोमनाथ यादव, मथुरा प्रसाद वर्मा, शिव प्रसाद सजग आदि इत्‍यादि अपनी छत्‍तीसगढ़ी रचनाओं के साथ इंटरनेट में सक्रिय हैं।

अत: आपसे अनुरोध है कि शीध्र ही अपना छत्‍तीसगढ़ी भाषा के रचनाओं के लिए एक ब्‍लॉग बनायें एवं अपनी रचनाऍं उसमें अपलोड करें।

जय छत्‍तीसगढ़, जय भारत।

संजीव तिवारी.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...