छत्‍तीसगढ़ी प्रभात

छत्तीसगढ़ी में 'सुकुवा उवत' मतलब लगभग चार बजे सुबह, ब्रम्ह मुहूर्त, जब शुक्र तारे का क्षितिज में उदय हो। अब घडी आगे बढ़ी और 'कुकरा बासने' लगा यानी मुर्गे ने बाग दिया, लगभग पाँच बजे सुबह। इसके बाद 'मुन्धर्हा' और 'पहट ढीलात', सुबह का धुंधलका और पशुओं को चराने के लिए ले जाने का समय। मेरा अनुभव यह रहा है कि सबेरे के पहट में दूध देने वाले पशु को ग्वाले ले जाते हैं फिर उन्हें वापस कोठे में लाकर दूध दुहते हैं। इन शब्दों के साथ ही 'बेरा पंग पंगात' का उपयोग सूर्योदय के ठीक पहले के उजास के लिए होता है। छत्तीसगढ़ी में सुबह के लिए प्रयोग होने वाले शब्दों को जोड़ते हुए पिछले दिनों मैंने एक स्टैट्स अपडेट किया था। उस पर कुछ चर्चा करने के उद्देश्य से उन्हीं शब्दों को फिर से रख रहा हूँ। कहीं कुछ असमानता हो तो बतावें। बेरा बिलासपुर मे पंग पंगाते हुए..
19.06.2014


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...