कविता में शब्दों का निहितार्थ क्या है, कैसा है ? यह सोंचना कवि का काम नहीं है, पाठक अपनी मति के अनुसार से इसे ग्रहण करता है। ‘निपटाने‘ का आप चाहे जो भी अर्थ निकालें, पूर्व प्रधान मंत्री एवं भाजपा के शीर्ष मा. अटल बिहारी बाजपेयी के दांत अब झड़ गए हैं। नीचे दी गई बहुचर्चित पंक्तियों के रचनाकार ख्यातिलब्ध अंतर्राष्ट्रीय कवि पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे जी भाजपा शासित राज्य में भी सत्ता के केन्द्र में रहे और कान्ग्रेस के समय में भी सत्ता के कृपा पात्र बने रहे। पीठ पीछे इनका विरोध भी हुआ, इन्हें निपटाने वाले कई आए कई गए, सब निपटते रहे। दुबे जी 'अपन दाढ़ी म अंगरी धरे बइठे रहे,' उनको निपटाना आसान नहीं रहा। पिछले कई वर्षों से दुबे जी छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग के सचिव के पद पर आसीन हैं। विश्व के लगभग सभी प्रतिष्ठित देशों में वे कविता पाठ कर चुके हैं, अभी अभी अमरीका से कविता पाठ कर लौटे हैं, उन्होंनें बराक ओबामा के लिए भी कविता लिखी है और उनकी कविताओं को बराक ओबामा नें भी पसंद किया है। वामपंथियों को यह चारण लगे दक्षिणपंथियों को शौर्य गान लगे, इन सबकी परवाह किए बगैर वे राजभाषा आयोग की अगली पारी के लिए तैयार हैं। शब्दों के इस बाजीगर को हमारा सलाम!!
अटल बिहारी हमर कका ये
फेर कोनों नइ ये काकी।
कतको झन जय ललिता, ममता बेनर्जी
आवत हें जावत हें
कका सबला निपटावत हे।।
(पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे)