अड़हा बईद परान घाती

यह कहावत हिन्दी कहावत नीम हकीम खतरे जान का समानार्थी है, जिसका अभिप्राय है : अनुभवहीन व्यक्ति के हाथों काम बिगड़ सकता है. अब आईये इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'अड़हा' व 'घाती' को समझने का प्रयास करते हैं, 'बइद' (वैद्य) और 'परान' (प्राण) का अर्थ तो आप समझ ही रहे होंगें.

'अड़' संस्कृत शब्द हठ का समानार्थी है, अड़ से'अड़हा' बना है जो विशेषण है. हिन्दी शब्द अड एवं छत्तीसगढ़ी प्रत्यय 'हा' से बने इस शब्द का सीधा अर्थ है अड़ने वाला, अकड़ दिखाने वाला, जिद करने वाला, अज्ञानी, नासमझ, मूर्ख, विवेकहीन. किसी के आने या कोई काम होने की प्रतीक्षा में अड़े रहने की क्रिया रूप में भी 'अड़हा' प्रयुक्त होता है, इसमें 'ही' जोड़कर इसे स्त्रीलिंग बनाया जाता है यथा 'अड़ही'. वर्ष का वह पक्ष जिसमें भगवान की पूजा नहीं होती अर्थात पितृपक्ष को 'अड़हा पाख कहा जाता है. अड़ने से ही 'अड़ियल' बना है.

अड़ से बने शब्द 'अड़ाना' सकर्मक क्रिया के रूप में रोकना या अटकाने के लिए प्रयुक्त होता है.गिरती हुई किसी वस्तु को रोकने के लिए प्रयुक्त वस्तु या स्तंभ को 'अड़ानी' कहते हैं. जब यह विशेषण के तौर पर उपयोग होता है तब यह 'अड़ानी' का अर्थ अज्ञानी, मूर्ख, अनजान, अनभिज्ञ होता है. अन्य मिलते जुलते शब्दों में साधु के टेंक कर बैठने की लकड़ी को 'अड़िया' कहते हैं, कपड़े सुखाने या रखने के लिए बांधे गए बांस को 'अड़गसनी' कहा जाता है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मुहावरे में प्रयुक्त 'अड़हा' अज्ञानी या अल्प ज्ञानी से है.

अब देखें 'घात' को, यह संस्कृत शब्द घात से बना है जिसका अर्थ मार, चोट, अहित, क्षति के साथ ही हत्या व वध तक विस्तृत है. इसका प्रयोग उपयुक्त अवसर की खोज या ताक के लिए भी होता है यथा 'घात लगा के बइठई'. छत्तीसगढ़ी में 'घात' व 'घातेच' को यदि विशेषण के तौर पर उपयोग करें तो इसका अर्थ होगा बहुत, खूब, अधिक 'घात सुघ्घर दिखत हे गा'. 'घातक' का प्रयोग उसके हिन्दी अर्थो में ही होता है, 'घाती' का प्रयोग नुकसान करने वाला, नाश करने वाले के लिए होता है. समूह के लिए संस्कृत शब्द घन के रूप में प्रयुक्त 'घाना' का छत्तीसगढ़ी में अनाज आदि की कुटाई या पिसाई के लिए मशीन में या चक्की में एक बार में डाली जाने वाली मात्रा एवं किसी चीज को एक बार में तलकर निकाला जाने वाला भाग को कहा जाता है. मुहावरे में प्रयुक्त शब्द 'घाती' का अर्थ नुकसान करने वाला, नाश करने वाला ही है. अज्ञानी या अल्प ज्ञानी वैद्य से इलाज करवाने से जीवन के नास होने की संभावना रहती है.


इस शब्द श्रृंखला को चलाने के पीछे मेरा उद्देश्य कोई पाण्डित्य प्रदर्शन नहीं है, इन मुहावरों, लोकोक्तियों व शब्दों के माध्यम से मैं स्वयं छत्तीसगढ़ी शब्दों से रूबरू हो रहा हूं. यद्यपि मैं ऐसे ठेठ गांव में पला बढ़ा, पढ़ा, जहॉं बिजली, सड़क, टी.वी. जैसे साधन 90 के दसक में पहुंचे. जीवन के लगभग 22 वर्ष सतत और उसके बाद के 23 वर्ष में महीने—हप्ते के अंतरालों से गांव में ही जीवंत हूं. जिसके बावजूद मैं अपने ही शब्दों से अनजान हूं उन्हीं को जानने का प्रयास है यह कलमघसीटी. यदि पाठकों को लगता है कि कुछ ज्यादा 'शेखी बघरई' हो रहा है तो मुझे जरूर बतायें. 

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...