ओरवाती के पानी बरेंडी नई चढ़य

छत्‍तीसगढ़ी के इस लोकोक्ति का अर्थ है 'असंभव कार्य संभव नहीं होता'. इस लोकोक्ति में प्रयुक्‍त दो शब्‍दों का अर्थ जानने का प्रयास करते हैं- ओरवाती और बरेंडी.

'ओरवॉंती' और 'ओरवाती' दोनों एक ही शब्‍द है, यह संस्‍कृत शब्‍द अवार: से बना है जिसका अर्थ है किनारा, छोर, सीमा, सिरा. हिन्‍दी में एक शब्‍द है 'ओलती' जिसका अर्थ है छप्‍पर का वह किनारा जहां से वर्षा का पानी नीचे गिरता है, ओरी. संस्‍कृत और हिन्‍दी के इन्‍हीं शब्‍दों से छत्‍तीसगढ़ी में ओरवाती बना होगा. पालेश्‍वर शर्मा जी 'ओरवाती' का अर्थ झुका हुआ, नीचे लटका हुआ व छप्‍पर का अग्रभाग बतलाते हैं. लोकोक्ति के अनुसार छप्‍पर का अग्रभाग (Eaves, the edge of roof) शब्‍दार्थ सटीक बैठता है, ओरवाती को ओड़वाती भी कहा जाता है.

इससे मिलता एक और छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द है 'ओरिया' जिसका अर्थ है छप्‍पर के पानी को संचित कर एक जगह गिरने के लिए लगाई गई टीने की नाली. 'ओरिया' शब्‍द पितृपक्ष में पितरों को बैठने के लिए गोबर से लीपकर बनाई गई मुडेर के लिए भी प्रयुक्‍त होता है. 'ओरी-ओरी' और 'ओसरी-पारी' जैसे शब्‍द भी इसके करीब के लगते हैं किन्‍तु इन शब्‍दों में क्रमबद्धता का भाव है. क्रमबद्ध या पंक्तिबद्ध करने के लिए एक प्रचलित शब्‍द है 'ओरियाना'. सामानों को थप्‍पी लगाना, फैलाना, बिखेरना के लिए भी इसका प्रयोग होता है, बीती हुई बातों को प्रस्‍तुत करना भी 'ओरियाना' कहा जाता है.

अब देखें 'बरेंडी' का अर्थ, छत्‍तीसगढ़ में मिट्टी के पलस्‍तर वाले घरों के दीवारों को गोबर पानी से लीपने या दीवार के निचले भाग की पुताई करने की क्रिया या भाव को 'बरंडई' कहते हैं. यह फ़ारसी शब्‍द बर (उपर या पर) व संस्‍कृत अंजन (आंजना, पोतना, लीपना) से मिलता है. वह स्‍त्री जिसके पति की मृत्‍यु गौना के पूर्व हो गई हो यानी बाल विधवा को 'बरंडी' कहा जाता है. इन नजदीकी शब्‍दों से उपरोक्‍त लोकोक्ति का अर्थ स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रहा है. शब्‍दकोंशें में ढूंढने पर शब्‍दकोश शास्‍त्री कहते हैं कि कुटिया के छाजन का भार वहन करने के लिए लम्‍बाई के बल जगाई जाने वाली मोटी लकड़ी को संस्‍कृत में 'वरंडक' कहा जाता है. कुटिया के छाजन के मध्‍य के उंचे भाग को भी 'वरंडक' कहा जाता है. छत्‍तीसगढ़ी में प्रचलित शब्‍द 'बरेंडी' का अर्थ भी इसी के एकदम नजदीक है, यहॉं कुटिया या घर के छप्‍पर का उंचा स्‍थान 'बरेंडी' है.

लोकोक्ति में प्रयुक्‍त शब्‍द ओरवाती और बरेंडी छप्‍पर से संबंधित हैं, छप्‍पर या छत में पानी का प्रवाह प्राकृतिक नियमों के अनुसार उपर से नीचे की ओर रहता है. अत: पानी का प्रवाह नीचे से उपर की ओर हो ही नहीं सकता.


'ओरिया' वाले टीने की नाली से जुड़ा एक प्रचलित मुहावरा है 'ओरी के छांव होना' जिसका मतलब है अल्‍पकालिक सुख. बरेंडी पर एक और कहावत प्रचलित है 'एड़ी के रीस बरेंडी चढ़ गे' यहॉं क्रोध को ऐड़ी से बरेंडी (सिर) में चढ़ने की बात की जा रही है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...