अम्मट ले निकल के चुर्रूक मा परगे

छत्तीसगढ़ी में यह मुहावरा (Phrase) हिन्दी के आसमान से गिरे खजूर में अटके (Falling from the sky stuck in palm) वाले मुहावरे के स्थान पर प्रयुक्त होता है. इस शब्दांश का अर्थ समझने के लिए इसमें प्रयुक्त दो शब्दों पर चर्चा करना आवश्यक है 'अम्मट' एवं 'चुर्रूक'

अम्मट का अर्थ जानने से पहले 'अमटइन' को जाने अमटइन का अर्थ है 'अमटाना' यानी खट्टापन (Sourness), खटाई (Sour) यह संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होता है, जिसका विशेषण है 'अम्मट' : खट्टा या खट्टे स्वाद वाला. इससे मिलते जुलते अन्‍य शब्‍दों पर भी नजर डालते हैं. 'अमटहा' के साथ 'हू' जोड़ने पर विशेषण 'अमटहू' बनता है. इसका अकर्मक क्रिया खट्टा होना व सकर्मक क्रिया खट्टा करना है(
अमटाना). बिलासपुर व खाल्हे राज में 'अमटावल' शब्द प्रयुक्त होता है जिसका अर्थ है खट्टा किया हुआ या जो खट्टा हो गया है. अम्मट या अम्मठ पर चर्चा करते हुए अम्‍मटहा साग 'अमारी' शब्द पर भी ध्यान जाता है जो छत्तीसगढ़ का प्रिय खट्टा साग है, अमारी पटसन प्रजाति का पौधा है जिसके पत्‍ते व फूल को भाजी के रूप में सब्‍जी के लिए पकाया जाता है. अम्‍मट से स्त्रीलिंग संज्ञा 'अमली' है जिसका अर्थ है इमली, इमली का पेड़ व फल जिसकी अनुभूति मुह में पानी ला देता है. इस प्रकार 'अम्‍मट' या 'अम्‍मठ' का अर्थ अत्‍यधिक खट्टेपन से है.

अब आए 'चुर्रूक' पर शब्दकोशों में चुर्रूक का अर्थ खोजने पर ज्ञात होता है कि 'चुर्रूक' चरक से बना है जो चरकना क्रिया का बोध कराता है, जिसका मतलब है झल्लाने वाला या चिढ़ने वाला. मुहावरे के अनुसार इससे मिलते जुलते और शब्‍दों को देखें तो 'चर' का अर्थ है प्रथा, बड़ों के द्वारा निर्वहित प्रथा का अभ्यास कराना. 'चरकना' का अर्थ कपड़े आदि का चर की आवाज के साथ फटना, दरार पड़ना, टूटना, झल्लाना, चिढ़ना, दरकना. चरकने के लिए एक और शब्‍द प्रयुक्‍त होता है. 'चर्रा' मतलब दरार, फटन. इसी कड़ी में आगे 'चर्राना' चर-चर शब्द होना, चोट या आघात वाले स्थान पर दर्द और खुजली होना (चहचहाना), तीव्र इच्छा होना.  ब्‍लॉ.. ब्‍लॉ..  किन्‍तु मुहावरे का शब्‍दार्थ इससे स्‍पष्‍ट नहीं हो रहा है.

'चर्रा' एक खेल का नाम भी है, जिसमें आठ नौ लोग विरोधियों को चकमा देकर दौंड़ दौंड़ कर आगे बढ़ते जाते हैं और वापस आते समय बीच तक पंहुचते हुए अपने साथियों को वापस लेते हैं. पेड़ के तने की कड़ी छाल, दरार, कच्चे आमों का अचार को भी 'चर्रा' कहा जाता है. दूध नापने के छोटे बर्तन, लुटिया को 'चरू' कहा जाता है. कुछ और शब्‍दों को लें, चारा रखने की बड़ी टोकरी को 'चेरिहा' कहा जाता है. चेरिहा व्‍यक्ति का नाम भी रखा जाता है. हाथ का कड़ा, पैर में पहनने का पीतल का आभूषण विशेष को 'चुरू' 'चूरा' कहा जाता है. चुल्लू, हाथों के संपुट, अंजलि को 'चुरूआ' कहते हैं. एक शब्‍द और 'चुर्रा' जिसका अर्थ स्त्रवित धार है. एक शब्‍द है 'चुरे' जिसका अर्थ है पका हुआ.
ब्‍लॉ.. ब्‍लॉ..  उपरोक्‍त सभी शब्‍दों के गूढार्थों या युग्‍मक से भी 'चुर्रूक' स्‍पष्‍ट नहीं हो रहा है.

शब्‍दों के सफर व व्‍याकरण की शास्‍त्रीयता से परे छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'चुरूक' का अर्थ है खट्टा या थोड़ा सा. मुहावरा आसामान की विशाल उंचाइयों के बाद कम उंचाई वाले खजूर का आभास करा रहा है. अम्‍मट (अत्‍यधिक खट्टेपन) से निकल कर चुर्रूक (सामान्‍य खट्टेपन) में पड़ना.

फेसबुक कमेंट में पाटन के मुनेन्द्र बिसेन जी इसी मुहावरे के समानअर्थी एक मुहावरा और सुझा रहे हैं 'गिधवा ल बांचे कौव्वा खाए'

चलते चलते : छत्‍तीसगढ़ में दुश्चरिता का बोध कराने वाली यह एक गाली है 'चरकट' जो बना है संस्‍कृत के 'चर' (चारा चरना, संभोग करना) और 'कट' (जाना) से. किन्‍तु चारा चरने जाना या संभोग करने जाना के बजाए 'चरकट' का अलग अर्थ छत्‍तीसगढ़ में प्रचलित है. परपुरूष गमिनी, वेश्या, दुश्चरिता को 'चरकट' कहा जाता है. इस पर ब्‍लॉ. ललित शर्मा जी कहते हैं कि "चरकट" का प्रयोग दो सहेलियों के बीच अंतरंगता प्रगट करने के लिए भी होता है तथा क्रोध्र में भी। " सुन ना चरकट" …… :) ललित जी की टिप्‍पणी को पढ़ते हुए डॉ.निर्मल साहू जी का विचार है कि दो सहेलियों के बीच जो 'चरकट' प्रयोग में आता है वह प्रेम में ही होता है, क्रोध में तो तलवार चल जाए....


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...