टोनही चुहकना

इस छत्‍तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ 'बेहद कमजोर होना या दुर्बल होना' है. आईये इस मुहावरे में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'टोनही' और 'चुहकना' को स्‍पष्‍ट करते हैं.

छत्‍तीसगढ़ी स्‍त्रीवाचक विशेषण/संज्ञा शब्‍द 'टोनही' 'टोना' से बना है. 'टोना' संस्‍कृत शब्‍द 'तंत्र : जादू' का अपभ्रंश है, जिसका आशय मारन या अनिष्‍ट के लिए किसी व्‍यक्ति पर तंत्र का प्रयोग करने की क्रिया या भाव है. 'टोना' एवं 'टोटका' का प्रयोग लगभग एक साथ किया जाता है जिसमें 'टोटके' का आशय अनिष्‍ट निवारण के लिए किया जाने वाला तात्रिक कार्य से है. इस प्रकार से 'टोनही' का आशय जादू टोना करने वाली स्‍त्री, डायन है. इससे मिलते जुलते शब्‍दों में 'टोनहईया : जो जादू टोना करता हो', 'टोनहई : जादू टोना करने की क्रिया', 'टोनहावल : जादू टोने से प्रभावित व्‍यक्ति' आदि.

'चुहकना' चूने या टपकने की क्रिया 'चुह' से बना है. चुह से बने अन्‍य शब्‍दों में 'चुहउ' का आशय टपकने योग्‍य, 'चुहका : पानी का श्रोत या वह छिद्र जहां से पानी बूंद बूंद कर गिरे', 'चुहकी : निरंतर जल का रिसाव', 'चुहना : बूंद बूंद टपकना', 'चुहरा : वह स्‍थान जहां पानी हमेश चूता हो', 'चुहाना : टपकाना', 'चुचवाना : टपकाना इसका प्रयोग पछताने के लिए भी होता है' आदि है. इन सब शब्‍दों से परे 'चुहक' का आशय देखें, 'चुहक' चूसने की क्रिया या भाव के लिए प्रयुक्‍त होता है. संभावना है कि यह चुस्‍की से बना होगा. इसी से 'चुहकईया' बना है जिसका आशय चूसने वाला है. चुसवाने की क्रिया को 'चुहकाना' कहा जाता है. 'चुहकई' व 'चुहकना' का प्रयोग भी चूसने की क्रिया या भाव के लिए किया जाता है.


रूढि़गत परम्‍पराओं और किवदंतियों में विश्‍व के प्रत्‍येक क्षेत्र में समाज के इर्दगिर्द एक ऐसी महिला पात्र उपस्थित रही है जिसका संबंध जादू या तंत्र से रहा है. इसी स्‍त्री को डायन कहा जाता है एवं छत्‍तीसगढ़ में ऐसी स्त्री को 'टोनही' नाम दिया गया है. कहा जाता है कि 'टोनही' रात में तंत्र सिद्धि करने के लिए निकलती है. उसके जीभ से लगातार लार बहता हैं जो मुह से निकलते ही जलने लगता है. तथाकथित रूप में यह 'टोनही' तांत्रिक क्रियाओं के दौरान नाचती (झूपती) है और इसके टपकते लार लगातार (भंग-भंग) जलते रहते हैं. कहा यह जाता है कि ऐसी सिद्धि को प्राप्‍त कर चुकी 'टोनही' किसी भी जीवित (चर-अचर, पेंड, पशु, मनुष्‍य) को चुह‍क सकती है. वह अपनी स्‍वेच्‍छा से या किसी से दुश्‍मनी के चलते मांत्रिक प्रयोगों के द्वारा प्राणी को धीरे धीरे बीमार बनाती है और अंत में वह प्राणी मर जाता है. इसके बाद की क्रियाओं में 'टोनही जगाने' आदि की भी किवदंतियां है जिसमें वह 'टोनही' उस मृतक के शव पर 'झूप' कर उसकी आत्‍मा को अपनी सेवा के लिए वश में करती है. छत्‍तीसगढ़ सहित देश के अन्‍य क्षेत्रों में इस रूढि़ के चलते कई महिलाओं को सार्वजनिक रूप से मार दिया गया या फिर अत्‍याचार हुए. इसी को ध्‍यान में रखते हुए इस पर एक कानून भी बना जिसके बाद इस रूढि़ पर कुछ लगाम लग पाया.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...