गोहार परना एवं गुहरी गदबद होना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गोहार परना का भावार्थ खूब विलाप करना है. चलिए आज इस मुहावरे में प्रयुक्त शब्द 'गोहार' का आशय देखते हैं. शब्दशास्त्री इसे संस्कृत शब्द गो एवं हरण वाले हार से निर्मित बताते हैं जिसका अर्थ सहायता के लिए किये जाने वाली पुकार है. 'गोहार' से बने शब्द 'गोहरईया' का आशय याचना या निवेदन करने वाला है एवं याचना या निवेदन करने के भाव को 'गोहराना' कहा जाता है. 'गोहार पारना' का आशय बात को फैलाना व सहायता के लिए पुकारना भी है. गोड़ी में भी 'गोहार' का आशय हल्ला है, नजदीकी शब्द 'गोहेनी' का आशय छलकपट है.

इससे नजदीक के शब्दों में गायों के रहने के स्थान को 'गोहड़ी' कहते हैं, पशुओं के समूह को 'गोहड़ी' ग्वाला, अहीर, ढ़ोर चराने वाले को 'गहिरा', गहरा को 'गहिर' आदि कहते हैं.

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गुहरी गदबद होना का भावार्थ सत्यानाश होना या सबकुछ नष्ट होना है. इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों को समझने का प्रयत्न करते हैं.

संस्कृत शब्द 'गुहय' अर्थात मल, विष्ठा से बना हुआ छत्तीसगढ़ी शब्द 'गुह' है. इसी से बने शब्द 'गुहईन' का आशय मल का र्दुगंध है. एक और संयुक्त शब्द 'गुह गॉंगर' का आशय मैला कुचैला है. यानी गुह का प्रयोग नष्ट होने के भाव के लिए भी होता है इसी आशय से 'गुहरी' का प्रयोग इस मुहावरे में हुआ है. 

खराब करने, सामान को इधर उधर करने, उलटने पलटने आदि को छत्तीसगढ़ी में 'गदबद' कहा जाता है. समानार्थी शब्दों में मौज मस्ती के साथ मजा लेते हुए सामान को इधर उधर करने को भी 'गदफद' करना कहा जाता है. सामान के साथ ही विचारों को उलटने पलटने की क्रिया को 'गदबदाना' कहते हैं. 

समीप के शब्दों में अधपके फलों को 'गदरहा', गरिष्ठ को 'गादिल', अलाल को 'गबदा' आदि कहा जाता है. 



साथियों पिछले कई दिनों से इंटरनेट कनेक्शन बाधित हो रहा है इस कारण से छत्तीसगढ़ी शब्दों की यह श्रृंखला अंतरालों के साथ प्रस्तुत होगी. 


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...