टोंटा मसकना

इस मुहावरे का भावार्थ है शोषण करना या धन हड़पना, शब्‍दार्थ रूप में भी इस मुहावरे का प्रयोग होता है जिसका अर्थ मार डालने से है (गले को दबाना).

'टोंटा' संस्‍कृत शब्‍द 'तुण्‍ड' से बना है जिसका आशय ग्रसिका, गला या गर्दन है. इसके करीब का एक शब्‍द है 'टोण्‍डा' जिसका आशय है बड़ा सा छेद. शायद गले की नली के कारण यह शब्‍द प्रचलन में आया होगा.
हिन्‍दी में प्रचलित टोंटी से भी 'टोंटा' का बनना माना जा सकता है.

अब देखें 'मसकना' को जो 'मस' और 'कना' से मिलकर बना है. 'मस' से बने अन्‍य शब्‍दों में 'मसक' का प्रयोग होता है यह अरबी 'मश्‍क' (चमड़े का पानी रखने वाला थैला) से बना है. छत्‍तीसगढ़ी 'मसक' शब्‍द दबाने की क्रिया या भाव के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस अनुसार से शब्‍दशात्रियों का मानना है कि, परिश्रम के लिए अरबी का एक शब्‍द है 'मशक्‍कत' हो सकता है कि इसके अपभ्रंश के रूप में छत्‍तीसगढ़ी में 'मसकना' प्रयुक्‍त होने लगा हो. इस मसकने का दो अर्थों में प्रयोग होता है एक दबाना दूसरा किसी कार्य के लिए जाना या चले जाना. मुहावरे के रूप में 'मसक देना' का प्रयोग इन दोनों अर्थों के लिए होता है. पहले ही लिखा जा चुका है कि इसका प्रयोग मार डालने या क्षति पहुचाने के लिए भी होता है. हिन्दी में स्वीकार्य 'मसका' फारसी मस्‍क से बना है जो मक्‍खन के लिए प्रयुक्त होता रहा है, अपभ्रंश में यह चिकनी चुपड़ी बातें करना, खुशामद का भाव, चापलूसी के लिए हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से प्रयोग हो रहा है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...