गरहन तीरना और गर से संबंधित मुहावरे

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गरहन तीरना का भावार्थ अपंग होना से है. शब्द विच्छेद करते हुए छत्तीसगढ़ी शब्द 'गरहन' को देखें तो इसमें 'गर' और 'हन' का प्रयोग हुआ है. सामान्य बोलचाल में छत्तीसगढ़ी शब्द 'गर' का प्रयोग गलने के भाव या क्रिया के लिए एवं गरदन के लिए प्रयोग में आता है. गरदन के अभिप्राय से प्रयुक्त 'गर' से बने शब्दों में गरदन काटने वाला यानी भारी अनिष्ट करने वाले, हानि पहुचाने वाले को 'गरकट्टा' कहा जाता है. इसी भाव के कारण पौधों की बाली या कली व फूल को काटने वाले एक कीट को भी 'गरकट्टा' कहा जाता है. गरदन के लिए प्रयुक्त 'गर' से बने मुहावरों में 'गर नवाना : अधीनता स्वीकार करना, शर्मिंदा होना', 'गर अंइठना : गला दबाकर मार डालना', 'गर फंसना : बंध जाना या संकट में फसना' आदि हैं.

गरदन के अर्थ से परे 'गर' के साथ प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों में तेज बहाव, तीव्र ढाल वाली भूमि या पानी को शीघ्र सोंख लेने वाली भूमि को 'गरगरा' कहा जाता है. पौधों के जड़ मूल या वह भाग जो मिट्टी को जकड़ ले उसे 'गरगंसा' कहते हैं. संस्कृत शब्द गर्जन के अपभ्रंश से बने 'गरज' का अर्थ हिन्दी के ही समानार्थी बादल के गरजने या किसी गंभीर आवाज, दहाड़ आदि से है. वहीं अरबी शब्द 'ग़रज़' से बने छत्तीसगढ़ी 'गरज' का आशय मतलब, प्रयोजन, जरूरत, इच्छा, स्वार्थ, चाह है. वाक्य प्रयोग में 'मन गरजी : मन मुताबिक या मन के अनुरूप', 'मोला गरज नइ परे हे : मुझे जरूरत नहीं पड़ी है' आदि. 

आम की वह अवस्था जिसके गूदे को आसानी से चूसकर निगला जा सके उसे 'गरती' कहते हैं, यथा 'गरती आमा'. फारसी शब्द 'गर्द' से बने 'गरदा' का आशय धूल, खाक है, इसी से बने शब्द 'गरदा' का अभिप्राय समूल नष्ट कर देने से है यानी ठोस को चूर्ण बना देना, अस्तित्व मिटा देना. संस्कृत के शब्द 'गर्व' का समानार्थी 'गरब' भी यहां उसी अर्थों में प्रचलन में है. ताप व उष्णता के लिए हिन्दी में प्रयुक्त 'गरमी' का भी यहां इसी आशय से प्रयोग होता है. 

उपरोक्त मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'गरहन' संस्कृत के ग्रहणम व हिन्दी के ग्रहण शब्द से बना है. इसका अभिप्राय चंद्रमा और सूर्य को लगने वाले ग्रहण से है, सूर्य के सामने पृथ्वी और चंद्रमा के आ जाने के कारण प्रकाश में अवरोध की स्थिति ग्रहण है. इस संक्रमण की स्थिति को हिन्दी के 'ग्रसना' से जोड़ कर छत्तीसगढ़ी में 'गरसना' का प्रयोग होता है. संस्कृत शब्द 'ग्रह' के अपभ्रंश में 'गरह' और इसी से 'गरहा' व 'गिरहा' बना है. ग्रहण की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ग्रहों के कारण उत्पन्न संकट के लिए बाधा, विपत्ति, संकट को 'गिरहा' कहा गया. बोलचाल में 'गरहन धरे कस लागथे' का प्रयोग इसी भाव से किया जाता है. 

रूढ़ि मान्यता के अनुसार ग्रहण काल में कुछ विशेष कार्य वर्जित माने गए, इस मुहावरे को ध्यान में रखें तो वर्जित करने के बावजूद उसी काल में मैथुन, गर्भिणी स्त्री का घर से बाहर निकला 'गरहन तीरने' का कारण है. रूढ़ि को माने तो इसके कारण जब उस स्त्री का बच्चा पैदा होता है वह अपंग पैदा होता है, उसे पोलियो हो जाता है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...