जगार : हल्बी महागाथा

जगार : हल्बी महागाथा

छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर के मोतीबाग में विगत कई वर्षों से जगार उत्सव का आयोजन किया जाता है । जिसमें उपस्थित होने के सुअवसर भी प्राप्त हुए, विगत रविवार को टैक्नोक्रेट रवि रतलामी जी एवं संजीत त्रिपाठी जी से मुलाकात में चर्चा के दौरान जगार उत्सव की महक को हमने महसूस भी किया ।

जगार बस्तर के हल्बी बोली बोलने वाले अधिसंख्यक आदिवासियों का उत्सव है । यह सामूहिक रूप से मनाया जाने वाला बस्तर का सांस्कृतिक आयोजन है । इसका आयोजन आदिवासी ग्रामवासी मजरा-टोला के सभी लोग जुर-मिल कर करते हैं । कहीं कहीं तो दो-चार गांव के लोग सामूहिक रूप से बीच वाले किसी गांव के गुडी-चौपाल में जगार गान आयोजित करते हैं, इसके लिए जगार गीत गाने वाली हल्बी गुरूमाय को नरियर देकर आमंत्रित किया जाता है । जगार स्थल को पारंपरिक भित्तिचित्रों व बंदनवारों से सजाया जाता है । देव प्रतिष्ठा एवं माता दंतेश्वरी का आवाहन पूजन अनुष्ठान किया जाता है । इस आयोजन का प्राण जगार गान होता है जिसे गुरू माय धनकुल वाद्ययंत्र के सुमधु‍र संगीत के साथ प्रस्तुत करती है ।

धनकुल वाद्य यंत्र मटकी, सूपा एवं धनुष के सम्मिलित रूप से बना गोंडी वाद्य यंत्र है जिसे गुरू माय ही बजाती है और स्वयं अपने स्वर में जगार गीत गाती है । जगार गीतों के संबंध में लाला जगदलपुरी जी का मत है कि बस्तर का जगार गान हिन्दू देवी देवताओं पर केंन्द्रित हल्बी महाकाव्य है जो पीढी दर पीढी वाचिक परम्परा में चौथी शताब्दि से आजतक गाई जा रही है जिसमें शिवपुराण के प्रसंग, सागर मंथन के प्रसंग व कृष्ण गाथा प्रसंग को लयबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है ।

भारत में भीलों के बीच गाथा परम्परा के इस रूप को मैं साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित भगवानदास पटेल जी की पुस्तक 'भारथ' का हिन्दी अनुवाद 'भीलो का भारत' में जीवंत होते पढ चुका हूं । जिसमें छोटा मारवाड के भीलो के बीच वाचिक परम्परा में गाए जाने वाले महाभारत का अद्भुत रूप प्रस्तुत हुआ है ।

जगार उत्सव की ऐतिहासिकता के संबंध में कहा जाता है कि यह बस्तर में चौथी से छठवी शताब्दि के मध्य वर्तमान छत्तीसगढ व उडीसा सीमा क्षेत्र में फैले हल्बी बोली बोलने वाले आदिवासियों के बीच आरंभ हुआ था और तब से आजतक यह उत्सव बस्तर के भीलों में प्रचलित है । बस्तर में तीजा जगार, अष्टमी जगार, लछमी जगार व बाली जगार मनाया जाता है । तीजा जगार में शिव पुराण के आख्यानों का गायन, अष्टमी जगार में कृष्ण कथा, लछमी जगार में समुद्र मंथन की कथा व बाली जगार में तंत्र-मंत्र चमत्कार साधना का गायन होता है ।

जगार बस्तर का धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन है जो बस्तर की संस्कृति, सामाजिक परिवेश एवं धार्मिकता की मनोहारी झांकी है । आज यह अपने नागर स्वरूप में जगार उत्सव के रूप में मोती बाग, रायपुर में उपस्थित है ।

जगार के चित्र व विवरण आदरणीय रवि रतलामी जी के ब्लाग में देखा जा सकता है ।

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...