पंडवानी की शैली : छत्तीसगढिया संगी जानें

समीर शुक्ल के द्वारा पंडवानी (Pandwani) के आदि पुरुष झाडूराम देवांगन के भांजे से लिया गया साक्षात्कार, आज छत्तीसगढी भाषा की सांस्कृतिक पत्रिका "मोर भूइयाँ" मेँ प्रसारित किया गया। समीर भाई नें पंडवानी की शैली के संबंध मेँ ज्वलंत प्रश्न किया। जिसका उत्तर भी चेतन देवांगन नें बहुत ही स्पष्ट रुप से दिया। मैंने बहुत पहले अपने ब्लॉग "आरंभ" मेँ पंडवानी की कपालिक व वेदमति शैली के संबंध मेँ एवं पंडवानी के नायकों के संबंध में दो पोस्ट प्रकाशित किया था। मैंने पंडवानी पर पीएचडी करने वाले डॉ बलदेव प्रसाद निर्मलकर से, उनके गाइड डॉ विनय कुमार पाठक के सामने भी ये प्रश्न रखा था। समय समय पर कई पंडवानी कलाकारोँ, विद्वानोँ और लोक अध्येताओं से इस संबंध मेँ विमर्श किया है।

आज के प्रसारण मेँ चेतन देवांगन के द्वारा इस पर दिया गया जबाब स्वागतेय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, वैदिक ग्रंथों के आधार पर गाए जाने वाली पंडवानी गायन की शैली, वेदमती है। और वैदिक पात्रों की कथाओं पर लोक कल्पनाओं व लोक मिथ के आधार पर गए जाने वाली, पंडवानी की गायन शैली, कापालिक है। उसने कुछ प्रसिद्ध कथाओं का जिक्र भी किया, जिसमे वध की कथाएँ थी। जिसमे समयानुसार लोक लुभावन प्रस्तुति और लोक मिथक स्वमेव समाहित हो गए।

छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर भारत भवनीय दृष्टी नें इसे बेवजह स्थापित किया। क्योंकि तथाकथित आदि विद्वानों के द्वारा यही चस्मा उन्हें पहनाया गया। कथा के आधार वर्गीकरण को प्रदर्शन के आधार पर वर्गीकृत कर दिया, और मज़े की बात यह कि, पूरी जोर अजमाइस यह रही कि, अधूरी परिभाषा ही पंडवानी की शैली के रूप में स्थापित हो जाए।

मेरा शुरू से मानना है कि, मात्र बैठे और खडे होने से पंडवानी की शैली को परिभाषित ना किया जाए।

- संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...