

कोयल पर अनेक कवियों नें कवितायें लिखी, गद्यकारों नें कोयल को अपने प्रकृति चित्रण में शामिल किया और कोयल हमारे साहित्य में गहरे से पैठ गई। नीड़ परजीविता के कारण कोयल के व्यवहार को अच्छा नहीं समझा जाता कहते हैं कि ये अपना घोसला नहीं बनाती और कौओं के घोंसले के अंडों को गिरा कर अपना अंडा दे देती है, कौंए कोयल के बच्चों को अपना बच्चा समझकर पालते हैं। जब कोयल का बच्चा उड़ने योग्य हो जाता हैं तो अचानक चकमा उड़ जाता है। कोयल के बच्चे के साथ उस घोंसले में यदि कौए के बच्चे रहे तो यह सामर्थ होते ही उसे घोंसले के नीचे गिरा डालते हैं।





चलो मान लेते हैं रहीम अंकल की बात को, तब तक इंतजार करें मेरे 1808 वें नये ब्लॉग का ......
[youtube http://www.youtube.com/watch?v=Ok1z7TO61qY?hl=en&fs=1]
[youtube http://www.youtube.com/watch?v=QXQCkeEK2p0?hl=en&fs=1]