tag:blogger.com,1999:blog-41870070803376123722024-03-13T10:58:38.054-07:00Jhanpi झांपी Sanjeev Tiwari ki Kalam Ghasiti.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01476572454806807113noreply@blogger.comBlogger206125tag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-8678948056470845372016-09-24T09:04:00.000-07:002016-09-24T09:04:29.294-07:00पायोनियर में प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwul51I2bAIsK-9VaDlQ1TFlYp5b2x_k7YelFAtxh8TJo4bNUkC9rfbV-0u8q0JJx8JzbnNZ6DH5JAV7ymRD5SLjno4WP3WPOVKtdhl_wKQaa-h9gdRsUQz13M5VZkWCC9RPA_gc9mZdZf/s1600/Gurturgoth.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="352" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwul51I2bAIsK-9VaDlQ1TFlYp5b2x_k7YelFAtxh8TJo4bNUkC9rfbV-0u8q0JJx8JzbnNZ6DH5JAV7ymRD5SLjno4WP3WPOVKtdhl_wKQaa-h9gdRsUQz13M5VZkWCC9RPA_gc9mZdZf/s640/Gurturgoth.jpg" width="640" /></a></div>
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Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-39846436515146835782016-09-16T05:25:00.000-07:002016-09-16T05:25:21.786-07:00दैनिक छत्तीसगढ़ में प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट : मोबाईल-मोबाईल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB41nuzTFgabOYUvqP1gIulDhW4T771gFDaTQ2gnnB_3gZfiMRj36jMNjZKLgwwrdtp7uZWciW0yiqARqqUUbp4C1g0X0m70Tc8IjxIIxD4PrNmCFAQuj88quO6lKEwXE8XM4vVYCiLXuW/s1600/Mobile-Bhatapara.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="568" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB41nuzTFgabOYUvqP1gIulDhW4T771gFDaTQ2gnnB_3gZfiMRj36jMNjZKLgwwrdtp7uZWciW0yiqARqqUUbp4C1g0X0m70Tc8IjxIIxD4PrNmCFAQuj88quO6lKEwXE8XM4vVYCiLXuW/s640/Mobile-Bhatapara.jpg" width="640" /></a></div>
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Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-82361854739012660152016-09-13T02:00:00.002-07:002016-09-13T02:03:54.089-07:00एक अनौपचारिक समालोचन : व्हॉट्स-एपिया रोमांस<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcB47dSRMN7D_aOSkFyfSoiLcY-0qpORW2EpQwq7E03KvziXOwro3eECOsrolKGccmKb58pLR7adqAYs19aea6ViiN3rEO5PhZx8neAy6LRZKXh4kGcnblYOGMLgRdxqiSKA_qkRF4cvUT/s1600/Whats+appiya+Romans1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcB47dSRMN7D_aOSkFyfSoiLcY-0qpORW2EpQwq7E03KvziXOwro3eECOsrolKGccmKb58pLR7adqAYs19aea6ViiN3rEO5PhZx8neAy6LRZKXh4kGcnblYOGMLgRdxqiSKA_qkRF4cvUT/s320/Whats+appiya+Romans1.jpg" width="226" /></a></div>
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शिवना प्रकाशन द्वारा हाल में प्रकाशित नये जमाने की कहानी संग्रह 'व्हॉट्स-एपिया रोमांस' को <i>'रोमांस कभी खत्म नहीं हो सकता है'</i> से <i>'.. रंगरेलियां मनाते पकड़े गए अपने बाप की ..'</i> तक, एक ही सिटिंग में पढ़ गया। कुछ सिर से ऊपर भी गुजरी, तो फिर-फिर पढ़ा, और जितनी बार पढ़ा, नए अर्थ खुलते गए। वैसे संग्रह में के.रवींद्र के चित्र, कहानियों को समझने की बीच लगने वाले समय में, खजाने की खोज वाले नक्शे से प्रतीत होते हैं। जिसे निहारते हुए अभिव्यक्ति को सहजता से अंदर तक अत्मसाध किया जा सके। संग्रह के लेखक समीर यादव, किताब में खुद कहते हैं <i>'इसमें एक दूसरे से अभिव्यक्त होने के लिए जो सहारे हैं न, वही इसके सबसे रोमांचक, बेहद खूबसूरत हिस्सा भी हैं।'</i> इन कहानियों में अभिव्यक्त होती, बगरती, खूबसूरती, समीर की परिकल्पना और उसे शब्दों में ढालने की संवेदनशील 'उदीम' सचमुच कमाल है। <br />
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वे एक जगह लिखते हैं कि, व्हाट्स एप में अनेक फीचर्स हैं जिसको जानने वाले रोमांस का फीचर बना लेते हैं। मतलब यह कि, तकनीक रूप से सक्षम व्यक्ति व्हाट्स एपिया रोमांस को अपने फेवर में करने का माद्दा रखते हैं। जिनको व्हाट्स एप के तकनीकी फीचर की ज्यादा जानकारी नहीं है उन्हें तो यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। यह उन्हें व्हाट्स एप तकनीकी में भी माहिर बना देगी और रोमांस में भी। पूरे किताब में ही, शी सहित मनीषा, मनोज, वत्सला, सानिका, महीप, प्रिया, शकुन, गोकुल और समर जैसे पात्र एक दूसरे से चैट करते हुए प्रेम को अपनी-अपनी समझ और अनुभूति से अभिव्यक्त करते हैं। इस कथोपकथन में एक चमत्कृत कर देने वाली कहानी उभरती है जो आधुनिक प्रेम कहानियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके साथ ही समीर द्वारा व्यग्रता के क्षणों में लिखे गए व्यवसाय से जुड़े नोट्स व अन्य लघुकथाएं भी इसी तारतम्य में पठनीय है।</div>
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यह सच है कि समीर में लिखने या लिखे हुए को पढ़कर समझने की तमीज, उन्हें अपने आदरणीय बाबूजी सुकवि बुधराम यादव जी से विरासत में मिली है। सुकवि बुधराम यादव जी छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार हैं, और लोकतत्व से गहरे से जुड़े बेहद संवेदनशील कवि है। उनसे विरासत में प्राप्त मेधा ही समीर को लेखन में गंभीर बनाती है। इसीलिए तो पल्लवी कहती है <i>'समीर प्रेम कहानियां लिखते हुए सबसे सहज होते हैं।'</i> यह सहजता, समीर नें अपने विरासत और पढ़ाकूपन की जुगलबंदी से प्राप्त किया है।</div>
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स्मार्ट फोन में चेटियाते हुए, रोमांस की आग जब सुलगती है तब क्या होता है आप सब जानते हैं, किंतु इसे सभी अभिव्यक्त नहीं कर पाते। इसे समीर अभिव्यक्त करते हैं, कुछ इस तरह <i>'हॉं, कुछ हो रहा था कल रात, मगर वह नहीं जो तुम सोच रही। इस मुहब्बत में दोनों तरफ बराबर की लगी है। खयाल का, डर का, भरोसे का, तो छल का भी.. और इनमें फर्क बहुत बारीक है।'</i> मुहब्बत के बीच जो छल है वह 'इसमें मैं कहां' और दूसरी कहानियों में प्रतिध्वनी होती है। ऐसे ही धड़कनों सी कम शब्दों में पूरी कहानी बयां कर देने की कला समीर के इस किताब में हर जगह नजर आती है। उसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है किंतु वे स्वयं कहते हैं कि, समझता वही है <i>'लिखो जिसे पढ़ें सब, समझे बस वो'</i>।</div>
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इस संग्रह की कहानियॉं और उसके पात्र कहॉं से और कैसे हर्फों में उतरी इसके संबंध में वे 'कुछ कहूं..' में लिखते हैं कि ब्हाट्स एप के चलन के साथ ही कई किरदार उनके जेहन में विचरने लगे थे। यह आधुनिक समीक्षा शास्त्र के उस अहम तत्व की पूर्ति करता है जिसे लोचक 'भोगा हुआ यथार्थ कहते हैं। संग्रह की कहानियों का प्लाट, समीर के आस-पास की दुनियां से ही लिए गए है जिससे वो वाकिफ हैं या जिसे उन्होंनें महसूस किया है। इस तरह से इसमें संग्रहित कहांनियां, कथाकार के भोगे गए यथार्थ का चित्रण है। </div>
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घिसे-पिटे आलोचना के गूढ शब्दों में एक शब्द और है 'प्रांजल भाषा', जो रचना का मूल तत्व है, यद्धपि व्हाट्स-एपियाई कहानियों में इसे खोजना बेमानी है फिर भी भाषा का संस्कार समीर नें अपने पिता से पाया है। भाषा की प्रांजलता और काल-परिस्थितियों के चित्रण में लेखक नें अपनी क्षमता, इसी किताब में कुछ इस तरह सिद्ध किया है-</div>
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<span style="color: blue;"><i>'.. उफ यह उसकी मंजिल तो नहीं..। जीने पर संभाल कर रखी जा रही सेंडिल की हर एक टिक-टिक राघव के उन्माद को जगा रही थी, उसे नशा सा हो रहा था है। कामना को पहली बार देखते ही जो उसने सोचा था, उसे आज तमील करेगा। टावर का दरवाजा धूप और बारिश से टेढ़ा होकर चौखट पर मिसफिट हो गया था, उस पर टावर की छोटी सी जगह में पुराने लेटर-बाक्स और डाक-बैग छिथरे पढे थे। सांस संभालती कामना की छत पर जाने की अनचाही सी कोशिश, अचानक राघव के कांखों से आ रहे डियो की खुशबू नथुनों में समाने के साथ समाप्त हो गई। उसके गर्दन के मुलायम रेशे बाजुओं के कसाव से सिंदूरी होने लगे। फिर थोड़ी देर सिगरेट की पहचानी सी गंध, थोड़ा ऊपर बालों की पहचानी-सी खुशबू, थोड़ा नीचे गरम होते पसीने की गंध, इन ऊपर-नीचे के पल-पल कम होते दायरे नें उसके हल्के प्रतिरोधों को पूरी तरह खत्म कर एक खास आदिम अहसास से सराबोर कर दिया।'</i> इसी क्रम में आगे <i>'अधखुले दरवाजे से बाहर की हवा और भीतर से राघव के अनियंत्रित रक्तप्रवाह की जंग का अंत हुआ तो वहां बस कामना की नाभि कस्तूरी की गंध रह गई थी।'</i></span></blockquote>
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इन छोटी-छोटी कहानियों का अंत भी समीर ने बहुत सलीके से लिखा है, उसी तरह जिस तरह कथादेश, हंस और वागार्थ जैसे प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने वाले, नई कहानी के कथाकार लिखते हैं। जो कहानी को और उसमें निहित मार्मिकता को, देर तक महसूस करने को विवश करते हैं। 'आज मिल न..' का अंत देखें <i>'प्रिया एक बार फिर मैसेज का जवाब दिए बिना गोकुल को डबडबाई आंखों से ऑफलाइन होते देखती है।'</i> सही है, इस संचार क्रांति के समय में प्रेमचंदी कहानियों के अंत की परम्परा को तो सम्हाला नहीं जा सकता। </div>
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इन कहानियों में शब्द समुच्चय और कथोपकथन के प्रयोग में समीर की परिकल्पना और शब्द क्षमता स्पष्ट नजर आती है। पूरे संग्रह में सहज-सरल भाषा में वे गहरी व प्रभावी बात गूंथते है। जैसे <i>'उसके कमेंट पर अपनी तकदीर तय करता हूं', 'आखिर वह उसके कॉन्टेक्ट लिस्ट में सेव है',</i> और <i>'पहले कांटेक्ट लिस्ट में जगह तो बना लूं'</i> या फिर <i>'पहले व्हाट्सएप फ्रैंड तो बन जाऊं'</i>। इसके साथ ही <i>'इश्क में यकीन किसी शब्द का मोहताज नहीं होता',</i> और <i>'तुम मेरे खिलाफ हवा में सांस लेने लगी हो',</i> या फिर <i>'तुम मौजूद तो होते हो, मगर तुम साथ नहीं होते हो'</i>। इसी तरह के कई उल्लेखनीय वाक्यों से कहानियॉं आगे बढ़ती हैं। इन कहानियों की भाषा नई है, यकीनन भविष्य में यही भाषा हिंदी कहानियों की मूल भाषा बनेगी, क्योंकि समय के साथ ही भाषा भी संस्कारित होती है जिसमें डाट्स, इस्माइली, इमोजी और अंग्रेजी के शब्द बहुत तेजी से समा रही है।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEs64ocEV7tSsusyafUl1KoCy4ZhYYFzucQeEFrVFD4esyfC6T12EJE2YNexyF15Wz2xSr40g8wxu8vMr1jstCwOvpbON9Sll00wSXuFj9tlyK5lRfKIFITgOHkYwPcnLgnUxk1gbOkfUd/s1600/Whats+appiya+Romans2.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEs64ocEV7tSsusyafUl1KoCy4ZhYYFzucQeEFrVFD4esyfC6T12EJE2YNexyF15Wz2xSr40g8wxu8vMr1jstCwOvpbON9Sll00wSXuFj9tlyK5lRfKIFITgOHkYwPcnLgnUxk1gbOkfUd/s320/Whats+appiya+Romans2.jpg" width="226" /></a>इन कहानियों में लोकोक्तियां और मुहावरों का प्रयोग भी समीर ने बखूबी से किया है। चौकिये नहीं, आप यह कह सकते हैं कि मुझे तो नजर नहीं आई। तो साहबान, नए समय की इन कहानियों में नए समय की लोकोक्तियां और मुहावरे ही तो प्रासंगिक होंगे ना? डॉ.परदेशीराम वर्मा की कहानी 'संतरा बाई की शर्त' और कैलाश बनवासी की कहानी 'बाजार में रामधन' में प्रयुक्त पारंपरिक लोकोक्तियां इन कहानियों में मत ढूंढिए। इस किताब में वही आधुनिक लोकोक्तियां और मुहावरे ही नजर आयेंगें, जो व्हाट्स एप, फेसबुक और ट्विटर में इस्तेमाल की जा रही है। इन कहानियों को पढ़ते हुए, मुझे ऐसा विश्वास है कि, आधुनिक परिवेश में, समय के साथ-साथ आगे बढ़ती हुई हिंदी कहानी इसी रुप में, सामने आएगी। यह भी कि, समीर नई कहानी के इस युग के पहले कहानीकार हैं जो समय की रिदम को पकड़ पा रहे हैं। आधुनिक कथाकारों में कथाकार पंकज सुबीर इन धड़कनों को बखूबी समझते हैं, शायद इसीलिए उन्होंने समीर की इन कहानियों को समझा और अपने प्रकाशन से इसे प्रकाशित करवाया।</div>
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किताब के संबंध में यह बेहद अनौपचारिक समालोचन, इस नए जमाने के माध्यम 'गूगल वॉइस टाइपिंग' के फीचर को इस्तेमाल करके, स्मार्टफोन से बोलकर लिखा गया है। इस हिसाब से यह पहली आलोचना मानी जाए और हिंदी आलोचना के इतिहास में दर्ज की जाए। </div>
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-<b>संजीव तिवारी</b></div>
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'व्हाट्स-एपिया रोमांस' आनलाईन आर्डर देनें के संबंध में <a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/08/blog-post_26.html">यहॉं</a> जानकारी है।<br />
'व्हाट्स-एपिया रोमांस' के लेखक समीर यादव से फेसबुक में आप <a href="https://www.facebook.com/sameer.sps02" target="_blank">यहॉं</a> मिल सकते हैं।</div>
Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-52695307626731214132016-09-11T21:09:00.000-07:002016-09-12T02:39:43.362-07:00बैरी बैरी मन मितान होगे रे, हमर देस म बिहान होगे रे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Gayak - Kedar Yadav
Geet- Mukund Kaushal
Sangeet - Kuman Lal Sao
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Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-41589547403134839212016-09-11T20:59:00.000-07:002016-09-11T20:59:16.034-07:00निंदा सबद रसाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLtJtyzGfUrjb3Q0UvuRneK4SXH-9l3KhpLDvoXIKkFrvvKCINyahYTEFodtN_1O9iQthyphenhyphentzdAKttKWR28QSIgQwsqSeexIpEr3jHVEA_eI1SYmFpoFTJzVQfx74LtH6MSKpuy71hslM69/s1600/IMG_20160911_075740_HDR_1473560883151.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="335" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLtJtyzGfUrjb3Q0UvuRneK4SXH-9l3KhpLDvoXIKkFrvvKCINyahYTEFodtN_1O9iQthyphenhyphentzdAKttKWR28QSIgQwsqSeexIpEr3jHVEA_eI1SYmFpoFTJzVQfx74LtH6MSKpuy71hslM69/s400/IMG_20160911_075740_HDR_1473560883151.jpg" width="400" /></a></div>
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बात कड़वी जरूर लगेगी, किन्तु आंचलिक साहित्य के विकास और प्रतिष्ठा के लिए यह आवश्यक है। सो, राजन सुनें! हमारे बीच वैचारिक मतभेद जरूर हो सकते हैं किन्तु मनभेद न रहे अतः अंगन्यास करते हुए यह लिख रहा हूँ। हिमांशु देव सहाय करें और देवाधि देव विनय-विवेक देवें।</div>
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हरिभूमि द्वारा प्रदेश की भाषा, साहित्य और संस्कृति का सम्मान करते हुए चार पृष्ठों का, पाक्षिक परिशिष्ठ 'चौपाल' निकाला जा रहा है। प्रदेश के लोक अंचलों में इसकी विशाल पाठक संख्या है। इस परिशिष्ट में छपने वाला लेखक अपार लोकप्रियता प्राप्त कर, आर्यावर्त के लेखन बिरादरी में पूजे जाते हैं। तद् अस्मिन् पत्रम्-पुष्पम्-पुंगीफलम् के अधिकारी होते हुए, छपने-छपाने 200-500 का दक्षिणा भी प्राप्त करने लग जाते हैं। साहित्यिक गोष्ठियों में माई पहुना बनाये जाते हैं और तमंचा जैसे ठोठक-ठोठक कर गोठियाने पर भी, प्रखर वक्ता बुलाये जाते हैं। </div>
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ऐसे परिशिष्ट के पुस्तक चर्चा (समीक्षा?) स्तम्भ में, पिछले सप्ताह विवेक तिवारी जी द्वारा लिखी चर्चा जैसे कुछेक लेखकों की चर्चाओं को अपवाद मान ले तो, बहुधा चर्चा, स्तरीय नहीं लगती हैं। यहाँ तक कि परिशिष्ठ संपादक के द्वारा लिखी गई चर्चा भी, ऐसा मेरा मानना "था"। किन्तु ..</div>
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आज के हरिभूमि के रविवारीय परिशिष्ठ में डॉ. दीनदयाल साहू द्वारा पुस्तक दीर्घा स्तम्भ में साहित्य अमृत पत्रिका के स्वाधीनता विशेषांक का परिचय पढ़ा, दिल खुश हो गया। कुल जमा ग्यारह लाइनों में दीनदयाल की भाषा, शब्द सामर्थ्य, दृष्टी और मेधा झलक रही है। यानि कि, निंदा की कोई गुंजाइस नहीं। सच्ची में .. बधाई ले ले मेरे यार। अब से चौपाल में तुम खुद पुस्तक चर्चा लिखो, ताकि नए प्रकाशित साहित्य से हम परिचित हो सकें।</div>
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हालाँकि, हिन्दी भाषा, भाषागत-व्याकरणिक त्रुटि और उच्चारण दोष तमंचा में विद्दमान है फिर भी, चौपाल परिशिष्ठ या उसके संपादक के सम्बन्ध में तंज कसने का कोई मौका मैं चूकता नहीं हूँ ???? .. आप सही हैं। </div>
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लेखक बिरादरी में निंदा-पुराण में तमंचा जैसे बिरले उजबक लोगों को ही रूचि होती है। जिसमे से कुछ मात्र लेखन में तो कुछ वाक् में निंदा-गॉसिप करते हैं, तो कुछ लोग अपने घर में जुरिया कर निंदा करते-कराते हैं। कुछ लोग फेसबुक-व्हॉट्सएप में तुतारी-कोचक कर या आभा-मारकर निंदा करने का मौका भी लपकते हैं। हम इस आखिरी श्रेणी का निंदक हैंं। .. और तब से हैं जब से यह ज्ञात हुआ है कि, हमारे जैसे लोगों के आँगन-कुटी को छवाने का टेंसन दूसरों का रहता है। </div>
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-<b>तमंचा रायपुरी</b></div>
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Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-40028495089765724072016-09-11T20:52:00.000-07:002016-09-11T20:52:41.861-07:00आरंभ में मेरे अन्य पोस्ट के लिंक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="post-header" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.4px; font-style: normal; font-variant-caps: normal; font-variant-ligatures: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<div class="post-header-line-1">
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<div class="post-body entry-content" id="post-body-2040922819356078789" itemprop="articleBody" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant-caps: normal; font-variant-ligatures: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 22.4px; orphans: 2; position: relative; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; width: 670px; word-spacing: 0px;">
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</div>
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<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 22px; font-stretch: normal; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0.75em 0px 0px; orphans: 2; position: relative; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/09/blog-post_11.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">निंदा सबद रसाल</a></h3>
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<ul class="posts" style="background-color: white; border-width: 0px; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 19.2px; list-style: none none; margin: 0px; padding: 0px; text-indent: -15px;">
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/09/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">खुमान, मुक्तिबोध और दिवाकर</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/08/blog-post_21.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">मोबाईल-मोबाईल</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/08/blog-post_26.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">व्हाट्स-एपिया रोमांस</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/07/blog-post_8.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">जब भाषा ही नहीं रहेगी तो क्या .?</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/07/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">गढ़ कलेवा को बचा लो साहब</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/06/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">छत्तीसगढ़ में लोक संगीत के नागरी प्रस्तुति का बीजारोोपण...</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/05/blog-post_7.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">फिर याद आये सीता शरण जोशी</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/05/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">सम्मान खरीदने के लिए रहीसी और बीमार साथी के लिए गर...</a></li>
<a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/02/blog-post_23.html" target="_blank">निराला का गद्य यथार्थवादी साहित्य है</a></ul>
<a href="http://aarambha.blogspot.in/2016/02/blog-post.html" target="_blank">पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन का ठीहा : गढ़कलेवा</a><br />
<ul class="posts" style="background-color: white; border-width: 0px; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 19.2px; list-style: none none; margin: 0px; padding: 0px; text-indent: -15px;">
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/12/2-aadi-parab-2-by-national-school-of.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">राष्ट्रीय जनजातीय नाट्य अभिव्यक्ति उत्सव : आदि परब...</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/10/blog-post_29.html" style="color: #888888; line-height: 19.2px; text-decoration: none;">हरिभूमि चौपाल, रंग छत्तीसगढ़ के और संपादकीय</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/10/blog-post_15.html" style="color: #ff9900;">गूगल डॉक्स में आनलाईन बोल कर टाईप करने की सुविधा</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/10/blog-post_13.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">छत्तीसगढ़ी की अभिव्यक्ति क्षमता : सोनाखान के आगी</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/10/blog-post_10.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">द्रोपदी जेसवानी की ‘अंतःप्रेरणा’</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/10/blog-post.html" style="color: #ff9900;">सामयिक प्रश्न: कोजन का होही</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/09/blog-post_14.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">हिन्दी मेरी भाषा</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/09/blog-post_12.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">भूमि अधिग्रहण : असंतोष जारी है</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/09/blog-post_12.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">भूमि अधिग्रहण : असंतोष जारी है</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/08/blog-post_31.html" style="color: #ff9900;">तथाकथित सुभद्रा कुमारी चौहानों और महादेवियों के बीच.</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/08/blog-post_25.html" style="color: #888888; line-height: 19.2px; text-decoration: none;">तुलसी जयंती समारोह : हिन्दी साहित्य समिति का आयो</a>न
</li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/07/blog-post_31.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">पुरूरवा का पूर्वानुमान एवं सीता जी की आखिरी रात</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/07/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">राज योग की फिरकी</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/06/blog-post_9.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">तमंचा रायपुरी की छत्तीसगढ़ी कविता</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/05/blog-post.html" style="color: #888888; text-decoration: none;">शब्द गठरिया बांध : अरूण कुमार निगम</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><a href="http://aarambha.blogspot.in/2015/04/blog-post.html" style="color: #888888; line-height: 19.2px; text-decoration: none;">छत्तीसगढ़ का इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति का साहित्</a></li>
<li style="background: none; border-width: 0px; list-style: none outside none; margin: 0.25em 0px; padding: 0.25em 0px 0.25em 1.3em;"><br /></li>
</ul>
</div>
</div>
Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-50052503905032778472015-03-03T05:33:00.002-08:002015-03-03T05:33:59.460-08:00शहंशाह सन्यासी स्वामी विवेकानंद : लोकरंग अरजुंदा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9yjjzDHtsJC7vb70gZfTHA1fxKXz-mO0PrXfFqsFJ1xw8O7sE39f3qHlpyQYZ52IhBBwArJ7JZx2eM_d8bm-EDaIZbm5e3EikeK45unTyxYTnBz0c9tfKFaHjKGzwSdwSWOKRszS_VQaS/s1600/Shanshah+Sanyasi1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9yjjzDHtsJC7vb70gZfTHA1fxKXz-mO0PrXfFqsFJ1xw8O7sE39f3qHlpyQYZ52IhBBwArJ7JZx2eM_d8bm-EDaIZbm5e3EikeK45unTyxYTnBz0c9tfKFaHjKGzwSdwSWOKRszS_VQaS/s1600/Shanshah+Sanyasi1.jpg" height="288" width="400" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
लोकरंग अरजुन्दा की प्रस्तुति 'शहंशाह सन्यासी स्वामी विवेकानंद' विगत दिनों भिलाई के नेहरू सांस्कृतिक सदन में देखने का अवसर मिला। यह नाटक स्वामी विवेकानंद के जीवन के उन उल्लेखनीय पहलुओं पर आधारित था, जिसके सहारे वे विश्व भर में जाने पहचाने गए। नाटक में विवेकानंद के जीवन के इन्हीं पहलुओं को उभारा गया है जिसमें अछूत के हाथों का भोजन ग्रहण करना व युवाओं को राष्ट्र निर्माण का राह दिखाना प्रमुख था। विवेकानंद के सिद्धांतों के अनुसार ईश्वर की आराधना एवं जनता जनार्दन की सेवा व राष्ट्र निर्माण से संबंधित उनके विचारों को 'शहंशाह सन्यासी' में संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया। इस नाटक में स्वामी विवेकानंद के जीवन के प्रमुख घटनाओं को शामिल किया गया है। गीत-संगीत के साथ लाईट एंड साउंड इफेक्ट के शानदार प्रयोग नें नाटक को और प्रभावपूर्ण बना दिया है। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="text-align: left;">प्रस्तुति के दूसरे दिन विभिन्न समाचारों नें संयुक्त स्वर में इस नाटक की भूरि भूरि प्रशंसा की। समाचारों पत्रों नें लिखा कि, अपने ज्ञान से पूरी दुनिया को चमत्कृत करने वाले स्वामी विवेकानंद पर नाटक बनाना चुनौती भरा है लेकिन इसे बहुत जिम्मेदारी के साथ लोकरंग अरजुन्दा ने निर्वाह किया। वरिष्ठ रंग निर्देशक रामहृदय तिवारी ने बहुत शोधपूर्ण स्क्रिप्ट लिखा। इसके बाद उसका ध्वन्यांकन किया गया। इसके बाद ठेठ देहात के कलाकारों को लेकर लंबी रिहर्सल का दौर चला। यह प्रस्तुति केवल उपदेशात्मक नाटक नहीं है वरन यह आत्मगौरव जगाने वाली प्रस्तुति है। कई लोगों की प्रतिक्रिया थी कि इस नाटक से ही उन्हें स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन की बारीकियों को समझने का अवसर मिला। </span><span style="text-align: left;">नाटक में संगीत दिया था पुराणिक साहू व नृत्य संयोजन सतीश साहू का था। नेपथ्य स्वर थे- सपन भट्टाचार्य, छाया चन्द्राकर, लक्ष्मी नान्द्रे, दीपक हटवार, संजय, घेवर, देवेन्द्र रामटेके आदि के। केन्द्रीय भूमिका में थे सतीश साहू व परमहंस के पात्र को जीवंत किया योगेश देशमुख ने। </span>नाटक का मंचन लोकरंग संस्था के संचालक दीपक चंद्राकर और उनके साथियों ने किया। नाटक में स्वामी जी की भूमिका सतीश साहू तथा रामकृष्ण परमहंस की भूमिका योगेश देशमुख ने निभाई। संगीत व नृत्य का संयोजन पुराणिक-सतीश साहू ने तथा लाईट एंड साउंड का संचालन अजय व सोहन ने किया।<br />
<span style="text-align: left;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<span style="text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1g1FSotsZgrPaFUtERHzBfu7nHmwzTNkbZxNzP94xUJNuts56LY7WSQ65rcr_uDCoVGMeWKPv9MGR-Wf2dOo_qYIdtZ3gIbDdgv6zPP-Qtr4_C2qJNsRKor4mdWlpxoTDeuz_340UAOnU/s1600/Shanshah+Sanyasi2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1g1FSotsZgrPaFUtERHzBfu7nHmwzTNkbZxNzP94xUJNuts56LY7WSQ65rcr_uDCoVGMeWKPv9MGR-Wf2dOo_qYIdtZ3gIbDdgv6zPP-Qtr4_C2qJNsRKor4mdWlpxoTDeuz_340UAOnU/s1600/Shanshah+Sanyasi2.jpg" height="287" width="400" /></a><span style="text-align: justify;"> </span></span></div>
<br />
<span style="text-align: left;"><b>वरिष्ठ निर्देशक रामहृदय तिवारी को मानव रत्न सम्मान :- </b></span><span style="text-align: left;">मंचन पूर्व वरिष्ठ निर्देशक <a href="http://aarambha.blogspot.in/2007/10/ram-hriday-tiwari.html" target="_blank">रामहृदय तिवारी </a>को लोकरंग परिवार की ओर से मानव रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पिछले चार दशकों से हिन्दी रंगमंच के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी लोकमंच के क्षेत्र में उनके निरंतर योगदान व दीर्घ सेवाओं के लिए दिया गया। इस अवसर पर लोकरंग अरजुन्दा के संस्थापक संचालक दीपक चन्द्राकर ने अपनी लोकमंचीय कलायात्रा की सफलता का श्रेय अपने कलागुरु श्री तिवारी को देते हुए उन्हें महागुरु बताया। कार्यक्रम के अध्यक्ष नगपुरा पाश्वर्तीर्थ के प्रमुख रावलमल जैन मणि ने कहा कि आज की प्रस्तुति प्रेरक व प्रभावी होगी। विशिष्ट अतिथि अभ्युदय संस्थान अछोटी के दार्शनिक संत राजन महाराज ने कहा कि श्री तिवारी का सम्मान अभिव्यक्ति की ऊंचाइयों को दिया गया सम्मान है।</span><br />
<span style="text-align: left;"><i>(विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के आधार पर)</i> </span></div>
</div>
Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-54660601931878315942015-02-11T02:46:00.000-08:002015-02-11T03:04:22.567-08:00अपने ब्लॉग में गूगल एडसेंस (adsense) कैसे लगायें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आपको ज्ञात ही होगा कि, गूलग नें हिन्दी ब्लॉगरों के लिए गूगल एडसेंस के द्वारा खोल दिए हैं. बहुत से हिन्दी ब्लॉगर साथी अपने ब्लॉग में गूगल एडसेंस लगाने की विधि की जानकारी हमसे लगातार पूछ रहें हैं. हम अपने साथियों के लिए अपने ब्लॉग में एडसेंस लगाने की क्रमबद्ध जानकारी इस पोस्ट में देनें का प्रयास कर रहे हैं. जिससे कि आप अपने ब्लॉग में गूगल एडसेंस आसानी से लगा पायेंगें.
<br />
सबसे पहले अपना ब्लॉगर में लागईन होईये. डेशबोर्ड खुलेगा, आप अपने जिस ब्लॉग में गूगल एडसेंस लगाना चाहते हैं उसके दाहिनें तरफ एक छोटा एरो की दिखेगा. उसे क्लिक करने पर नीचे दिए गए चित्रानुसार एक विकल्प पट्टी खुलेगी. जिसमें अर्निंग विकल्प को क्लिक करें.<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjL4cTlVquXmFz2Jzem2xCbTK88uz0mRc4c0JfNwPrK_AiotKOmf-uQW6T76atAVL-bvPLPboHSV14kasYT9AU9iIqyOtizL0oUQvfMRgdmzHfts-u93OO3EMkDahLito_sLK-aA0mqLlih/s1600/adsense+1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjL4cTlVquXmFz2Jzem2xCbTK88uz0mRc4c0JfNwPrK_AiotKOmf-uQW6T76atAVL-bvPLPboHSV14kasYT9AU9iIqyOtizL0oUQvfMRgdmzHfts-u93OO3EMkDahLito_sLK-aA0mqLlih/s1600/adsense+1.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">चित्र क्र.1</td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
अब नीचे दिए गए चित्रानुसार पेज आयेगा जिसमें साईनअप फार एडसेंस को क्लिक करें -</div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyzX99vVJ5EXP7Vi6v5MVLtmYrJSMthWDXmZgy1R4N8t5L0U4DvAdZOjrH2mS_Tf7Uks4I8nDW_vbK8FQVAC2p_58Z3r89O72LSgczBbYxDm21_OAz1sWJ7POT1zNP2g37fZ0OTPRrhdto/s1600/adsense+2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyzX99vVJ5EXP7Vi6v5MVLtmYrJSMthWDXmZgy1R4N8t5L0U4DvAdZOjrH2mS_Tf7Uks4I8nDW_vbK8FQVAC2p_58Z3r89O72LSgczBbYxDm21_OAz1sWJ7POT1zNP2g37fZ0OTPRrhdto/s1600/adsense+2.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">चित्र क्र. 2</td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
इसके बाद नीचे दिखाये गए चित्रानुसार पेज खुलेगा जिसमें दो विकल्प हैं. पहला- यदि आप अपने मौजूदा जीमेल एकाउन्ट से लागईन होना चाहते हैं तो एवं दूसरा- यदि आप मौजूदा जीमेल एकाउन्ट से अलग नया एकाउन्ट बनाना चाहते हैं तो- </div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzVmeLl6S4_Fxhi1k_XNeW_YmL6XhGprVLSH1s215ntq3tNUWdYpQLvxZFobY9Bgxxp-0JnKwtkF39HR4g3OjIn1JpcmhBji4-Iyf3d6ZQI2PfVy7GpzvPzd1nkJM8M2kBEvOME4LMVuXB/s1600/adsense+3.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzVmeLl6S4_Fxhi1k_XNeW_YmL6XhGprVLSH1s215ntq3tNUWdYpQLvxZFobY9Bgxxp-0JnKwtkF39HR4g3OjIn1JpcmhBji4-Iyf3d6ZQI2PfVy7GpzvPzd1nkJM8M2kBEvOME4LMVuXB/s1600/adsense+3.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 3</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="text-align: left;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="text-align: left;"> पहला विकल्प चुनें, आगे के पेजों में अपनी व्यक्तिगत जानकारी व पता आदि भरें. आगे के क्रम में </span><span style="text-align: left;">, अपने ब्लॉग का यूआरएल</span><span style="text-align: left;"> भरें व उसकी भाषा हिन्दी भरें. </span><span style="text-align: left;">इसे पूर्ण करने के बाद गूगल लगभग 24 घंटे का समय आपके ब्लॉग एवं एडसेंस एकाउन्ट को एप्रूव करने का समय लेगा. </span></div>
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir1tVzEJbZcUKSdSGCVD6dGls96SgQGa3xw8TrcSYyl9oB-b4XKSxo5kD1hHZ0PvFT2ptSEr00TN0FQqAahZiErwgeD_7nyWBipyko5i9q8trwumqoNaKLxRc_bRYQxe3_lHCDLfH2Bwcw/s1600/adsense+5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir1tVzEJbZcUKSdSGCVD6dGls96SgQGa3xw8TrcSYyl9oB-b4XKSxo5kD1hHZ0PvFT2ptSEr00TN0FQqAahZiErwgeD_7nyWBipyko5i9q8trwumqoNaKLxRc_bRYQxe3_lHCDLfH2Bwcw/s1600/adsense+5.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 4</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
गूगल से एडसेंस एप्रूवल मेल आने के बाद अपने ब्लॉगर एकाउन्ट में पुन: लागईन हों एवं उपर दिए गए क्रम एक को दुहरायें. ब्लॉगर आपको गूगल एडसेंस लागईन पेज में रिडायरेक्ट करेगा. वहां लागईन हों एवं नीचे दिए गए चित्रानुसार 'माई एड' को क्लिक करें-</div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZg1ByUUpYuHXfZIDd0DYu79_Iv6iJQkVNlSePEt_YismL0C9KKKXJTcp4txXflbd21bo3C9p3IIFl3ZH4Ar5zbgqlxZvGHTG1GxsrkPUs_vcUBfmj0ioxC9RNXFzQfUuZ5cFyMTpaS2Ii/s1600/adsense+6.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZg1ByUUpYuHXfZIDd0DYu79_Iv6iJQkVNlSePEt_YismL0C9KKKXJTcp4txXflbd21bo3C9p3IIFl3ZH4Ar5zbgqlxZvGHTG1GxsrkPUs_vcUBfmj0ioxC9RNXFzQfUuZ5cFyMTpaS2Ii/s1600/adsense+6.jpg" height="36" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 5</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
यहॉं नये एड बनाने के लिए एक बटन दिया गया है जिसे क्लिक करने पर विज्ञापन के विभिन्न विकल्प दिए गए है इसमें से अपने पसंद के किसी विकल्प को चुनें एवं नीचे दिए गए 'सेव एण्ड गेट कोड' बटन को क्लिक करें- </div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0Ef3gjXqHNFQPIbSRfRQDRHKplDVTTozZ9LbpmL6lL9v3LFSZh8BRP28oRsNamYmufrKrUgE8JK17TEuQ-Z72Jf-z04nsnHDYySk-EsPKxFrm5D_fhzOFS45aAFRpG1X-CazJ_UvJG9ue/s1600/adsense+7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0Ef3gjXqHNFQPIbSRfRQDRHKplDVTTozZ9LbpmL6lL9v3LFSZh8BRP28oRsNamYmufrKrUgE8JK17TEuQ-Z72Jf-z04nsnHDYySk-EsPKxFrm5D_fhzOFS45aAFRpG1X-CazJ_UvJG9ue/s1600/adsense+7.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 6</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
अब एक विन्डो खुलेगा जिसमें से कोड को सलेक्ट कर कापी कर लेवें एवं विन्डो बंद कर देवें-</div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVwOLPy9Pd8i31UiNyzmliKzwVLejVeLkEPnUe4pZ56GdP3zqiFuhFj4qeYfl1jp9X9fLlR_OsNS7fOiJr82uqKpGlJwbWHGrZwYlnPpwlFSDswpO6tsfF8vt4Tfzafd5OAwej1cURjtjM/s1600/adsense+8.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVwOLPy9Pd8i31UiNyzmliKzwVLejVeLkEPnUe4pZ56GdP3zqiFuhFj4qeYfl1jp9X9fLlR_OsNS7fOiJr82uqKpGlJwbWHGrZwYlnPpwlFSDswpO6tsfF8vt4Tfzafd5OAwej1cURjtjM/s1600/adsense+8.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 7</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
अब पुन: अपने ब्लॉगर डेशबोर्ड में आयें, यहां चित्र क्रमांक एक में दिखाए गए विकल्प पट्टी में से 'लेआउट' विकल्प चुनें. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार पेज खुलेगा-</div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfTom9FnoHOoqL1VrzN3P_1Xi6i6mbFFjuX3zRBKMercO8J0UG_3uGprdEVDmAY2GFLHZJMDaOvSgNYgZqo4Vj60CZ7FbqpiNV5k4gMbaJVT_lALYLrsmJ6aypqmMlm_dGBqgM-7i99xjS/s1600/adsense+9.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfTom9FnoHOoqL1VrzN3P_1Xi6i6mbFFjuX3zRBKMercO8J0UG_3uGprdEVDmAY2GFLHZJMDaOvSgNYgZqo4Vj60CZ7FbqpiNV5k4gMbaJVT_lALYLrsmJ6aypqmMlm_dGBqgM-7i99xjS/s1600/adsense+9.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 8</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
यहॉं, जहॉं आप विज्ञापन लगाना चाहते हैं वहॉं की पट्टी में दिए गए 'एड ए गैजट' लिंक को क्लिक करें. इसे क्लिक करने पर एक विन्डो खुलेगा उसमें से 'एचटीएमएल/जावा' विकल्प को चुनें. पुन: एक नया विन्डो खुलेगा उसमें एडसेंस से प्राप्त कोड को पेस्ट कर दें. आपके ब्लॉग में विज्ञापन गूगल के एप्रूवल के बाद दिखने लगेगा.</div>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQmnZ3bOX-xmVayhN1npBn8Wf1jcU8cL5K5_7k5PGe1QgenSKNZ3tIhb_IJw1evxoUegqWWGgEoGeZOt7CwN-uwht1QlEPR4hVMB48RjSwTxfqa7BjwvMBKwET3f-5urViJm5VEgGAWwJM/s1600/adsense+10.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQmnZ3bOX-xmVayhN1npBn8Wf1jcU8cL5K5_7k5PGe1QgenSKNZ3tIhb_IJw1evxoUegqWWGgEoGeZOt7CwN-uwht1QlEPR4hVMB48RjSwTxfqa7BjwvMBKwET3f-5urViJm5VEgGAWwJM/s1600/adsense+10.jpg" height="218" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: 12.8000001907349px;">चित्र क्र. 9</span></td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
इस प्रकार से आप अपने ब्लॉग से गूगल एडसेंस के माध्यम से अतिरिक्त कमाई कर सकेंगें. इसके लिए गूगल एडसेंस के <a href="https://support.google.com/adsense/answer/48182?hl=hi" target="_blank">कार्यक्रम नीति व नियम एवं शर्तों </a>का पालन करना आवश्यक होगा. हिन्दी ब्लॉग एवं गूगल एडसेंस के संबंध में अन्य जानकारी के संबंध में हम आगामी पोस्टों में जानकारी देते रहेंगें. </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<b>संजीव तिवारी</b> </div>
<br /></div>
Media4Uhttp://www.blogger.com/profile/11095164842515664903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-13224742939901093842014-11-08T09:33:00.000-08:002014-11-10T00:40:51.850-08:00रविन्द्र गिन्नौरे : सहज सरल व्यक्तित्व <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiw4-Se7YwxbhO0_FY-Bq7-V_oX6tpEwbkcQSkPGpo95hIOlM-8JKLJN9AbLvg7zBg-aCTGzkgLSQ_UI_vqjdcKm3V6rk05elH2qeQpjtUZPYiyYKy0syGqUSD-WHb5bjb2Y-UOlvXdnmc/s1600/Ravindra+Ginnore.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiw4-Se7YwxbhO0_FY-Bq7-V_oX6tpEwbkcQSkPGpo95hIOlM-8JKLJN9AbLvg7zBg-aCTGzkgLSQ_UI_vqjdcKm3V6rk05elH2qeQpjtUZPYiyYKy0syGqUSD-WHb5bjb2Y-UOlvXdnmc/s1600/Ravindra+Ginnore.JPG" height="320" width="298" /></a></div><div style="text-align: justify;">पिछले दिनो मेरी मुलाकात छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र गिन्नौरे जी से हुई, मैं उनसे कभी मिला नहीं था। रविंद्र गिन्नोरे जी के नाम से मेरा आरंभिक परिचय दैनिक भास्कर के परिशिष्ट सबरंग के साहित्य संपादक के रूप में था। बाद में उनका नामोल्लेख साहित्यिक और पत्रकारिता मंचों में ससम्मान होते पढ़ते सुनते रहा हूॅं। मेरी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार रविंद्र गिन्नौरी जी छत्तीसगढ़ के एसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिंहोने छत्तीसगढ़ के बहुत सारे समाचार पत्रों मे बतौर संपादक कार्य किया है। छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ लेखन में उनका बड़ा योगदान है और उनकी किताबें छत्तीसगढ़ को असल रूप में प्रतिबिंबित करती हैं। लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी ग्लेमराइज्ड छवि मेरे जेहन में बसी थी। भाटापारा में जब सहज और बेहद सरल रविन्द्र गन्नौरे जी से मुलाकात हुई तो एकबारगी मुझे विश्वास नहीं हुआ। जब उन्होंने आत्मीयता से मुझे स्नेह दिया और अपने घर चलने का निमंत्रण दिया तो समय की कमी के बावजूद मैं उनके साथ उनके साथ हो लिया। उनके साथ बात करते हुए उनके संबंध में जो कुछ मैं जान सका वह उनके व्यक्तित्व का एक छोटा सा पहलू है, फिर भी मैं उसे मित्रों से बाटना चाहता हूं। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">रविन्द्र जी का घर एक जीवंत पुस्तकालय है, दुर्लभ किताबों के साथ ही उनके पास सभी विधा के नये पुराने लेखकों की किताबें, साहित्य, कला, संस्कृति व सामयिक पत्रिकायें हैं। वे अपने घर आने वालों को हमेशा किताबें भेंट स्वरूप देते हैं। किताबों के बीच उनके द्वारा लिखे जा रहे अलग अलग विषयों के फाइलें भी ढेरों व्यवस्थित रखे हैं। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">रविन्द्र जी नें लेखन का आरम्भ व्यंग्य कालम लेखन से किया फिर वे फीचर लेखन के साथ ही फ्रंट लाइन पत्रकारिता में आ गए। इस बीच उन्होंने पुरातत्व, साहित्य, इतिहास, नृतित्व शास्त्र, पर्यावरण और विज्ञान पर लगातार लेखन किया। बहुआयामी लेखन करते हुए वे वर्तमान मे पर्यावरण उर्जा टाइम्स के संपादक हैं एवं छत्तीसगढ की लोक कथाओं और छत्तीसगढ़ के शक्ति स्थलों पर किताब लिख रहें हैं। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इन किताबों के संबंध में चर्चा करते हुए रविन्द्र गिन्नोरे जी बताते हैं कि, उन्हें छत्तीसगढ के शक्ति स्थल के सम्बन्ध में खोज करते हुए अनेक रोचक और चौकाने वाले तथ्य मिले। पूजन पदधति एवं परंपरा, मान्यता और किवदंतियों के संकलन में कहीं एतिहसिक कड़ियाँ जुडी तो कहीं कपोल कल्पना नजर आयी। छत्तीसगढ़ के शक्ति स्थलों पर उनके द्वारा लिखी जा रही किताब पर जब मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने विस्तत चर्चा की और कुछ विशेष खुलासे किए।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">उन्होंने छत्तीसगढ़ मे एक योनी पीठ होने के सम्बन्ध में बताया, भग्नावस्था में उपलब्ध इस योनि प्रतिकृति का आकर लगभग 2 बाई 2 है। कल्पना कीजिये यदि यह मूर्ति अपने वास्तविक आकार में होती तो यह कितनी विशाल होती। आगे वे बस्तर की एक देवी मंदिर का उल्लेख करते हैं जो साल मे सिर्फ एक दिन ही खुलता है जहाँ पुत्र प्राप्ति के लिए कामना की जाती है। मान्यता है कि यहाँ के आशीर्वाद से महिलाओं की गोद अवश्य भरती है। लोक मान्यता पर विशेष बल देने के प्रश्न पर वे कहते हैं कि, लोक मान्यता तथ्यों की समीक्षा नहीं करती वो तो अपने आस पास के जीवन व वाचिक परम्परा का अनुसरण करती है। इसका उदाहरण देते हुए वे छत्तीसगढ़ मे प्रचलित बहादुर कलारिन का उल्लेख करते हैं कि बहादुर कलारिन की मूर्ति मूलतः अष्टभुजी दुर्गा की मूर्ति है। लोक मान्यता के आधार पर इसे बहादुर कलारिन के रुप मे पूजा जाता है। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">बातों बातों में वे दंतेश्वरी माता और संत घासीदास के सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित कथा का उल्लेख करते हैं। जिसमे माता दंतेश्वरी के मंदिर मेँ धर्म ध्वजा फहराते घूमते घासीदास जी को बलि के लिए पकड़ कर लाया गया। बलि के पूर्व जब संत घासीदास की ईश्वरीय शक्ति का भान माता दंतेश्वरी को हुआ तब दंतेश्वरी माता ने उनकी बलि स्वीकारने से मना कर दिया। बलि की पूरी तयारी हो चुकी थी, ऐसी स्थिति मेँ वहाँ विराजमान भैरव ने विरोध जताया। भैरव के विरोध पर दंतेश्वरी माता क्रोधित हो गई। भैरव फिर भी नहीँ माना तब दंतेश्वरी माता ने भैरव को लात मारा। भैरव दूर नदी के उस पार जा गिरा। इसी समय से भैरव नदी के उस पार स्थित है। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">छत्तीसगढ़ के बस्तर व मैदानी इलाके के लगभग 160 शक्ति स्थलों पर स्वयं जाकर सामाग्री इकत्रित करने व उनका विश्लेषण करने का काम वे अब तक कर चुके हैं एवं यह क्रम निरंतर जारी है। रविन्द्र जी देश के अनेक प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कारों के जूरी मेम्बर भी हैं। पुरातत्व पर उनकी एक महत्वपूर्ण किताब बहुचर्चित हुई। पुरातत्व पर इनके कइ शोध पत्र देश विदेश के शोध पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। पर्यावरण विषयों पर विभिन्न पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित हुए हैं, मुनिस्पल एण्ड हास्पीटल वेस्ट मैनेजमैंट पर उनकी एक अंग्रेजी में किताब आई है। इनकी लिखी एक किताब बाटनी पर कुछ महाविद्यालयों के पाठयक्रम में पढ़ाई जाती है। छत्तीसगढ़ के वनोपज एवं औषधीय वनस्पतियों पर भी उन्होंनें लेखन किया है। वर्तमान में वे जंगलों में रहने वाले पारम्परिक वैद व गुनियॉं लोगों से प्राप्त ज्ञान व वैज्ञानिक शोध के उपरांत स्वयं औषधीय वनस्पतियों के द्वारा विभिन्न बीमारियों का अचूक इलाज कर रहे हैं। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">क्रमश:</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>संजीव तिवारी</b></div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-53169854669389681672014-11-04T03:50:00.001-08:002014-11-04T03:50:47.776-08:00परिभाषाओं के पुर्नमूल्यांकन का समय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
छत्तीसगढ राज्य अपना स्थापना सप्ताह मना रहा है। राज्य की राजधानी, जिलों एवम जनपदों मेँ राज्य स्थापना का उल्लास, आयोजनोँ के रुप मेँ नजर आ रही है। ऐसे समय मे राज्य के आदि साहित्यकार <a href="http://aarambha.blogspot.in/2010/07/blog-post_22.html" target="_blank">पंडित सुंदरलाल शर्मा</a> की स्मृति मे दिये जाने वाले सुंदरलाल सम्मान के संबंध मे एक शुभ सूचना प्राप्त हुई है।</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgA2Oz38G9f7gj0r9KYYiVtD0nTd223PWk2d2ylf5oveC5GuYXbCPzYMf5hdbn4srJKgWQ_t4yJCWj9ND7bShYXvRlhEi97X_vEwp462Ulh9B2gBv0afg4VU4bccdkfKq3F0FCn3XLwVJM/s1600/Tejindar+Gagan.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgA2Oz38G9f7gj0r9KYYiVtD0nTd223PWk2d2ylf5oveC5GuYXbCPzYMf5hdbn4srJKgWQ_t4yJCWj9ND7bShYXvRlhEi97X_vEwp462Ulh9B2gBv0afg4VU4bccdkfKq3F0FCn3XLwVJM/s1600/Tejindar+Gagan.jpg" height="213" width="320" /></a>इस वर्ष राज्य सरकार की और से दिया जाने वाला यह सम्मान छत्तीसगढ़ के जाने माने साहित्यकार श्री तेजिंदर गगन जी को दिया जायेगा। यह सम्मान उनके निरंतर साहित्य साधना एवं उनके प्रसिद्द उपन्यास काला पादरी को रेखांकित करते हुए दिया गया है। इस बात की खुशी है कि, सरकार ने तेजिंदर गगन जी के लेखन का सम्मान किया। यद्यपि साहित्य को सीमा विशेष मे बांधा नहीँ जाना चाहिए फिर भी इस सम्मान के पीछे जो उद्देश्य रहा है वह यह कि, सरकार चाहती है कि प्रति वर्ष छत्तीसगढ़ के एक साहित्यकार को सम्मानित किया जाए और उसे दो लाख रुपये का आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाय।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
साहित्य बिरादरी मेँ इस पुरस्कार के चयन के संबंध मेँ पिछले तीन दिनोँ से लगातार काना फूसी चल रही थी। सरकार के द्वारा साहित्य के क्षेत्र में प्रदेश का सरदार, तेजिंदर गगन जी को घोषित किया जा रहा था वहीँ साहित्यिक गलियों में हमारे कुछ वरिष्ठ उन्हें असरदार बता रहे थे। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
स्थानीय साहित्यिक बिरादरी में तेजिंदर गगन के चयन पर कुछ दबे जुबान पर तो कुछ स्पष्ट तौर पर विरोध जता रहे हैं। उनकी अपनी दलीलें हैं जिसमें उनका मानना है कि, तेजिंदर गगन जी छत्तीसगढि़या नहीं हैं। उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन छत्तीसगढ से बाहर व्यतीत किया, कभी छत्तीसगढ़ से जुड़े हों ऐसा साबित भी नहीं किया। वैचारिक रुप से समृद्ध माने जाने वाले कुछ साहित्यकारोँ के मुख से, तेजिंदर जी को गैर छत्तीसगढ़िया बताने के पीछे मूल कारण, छत्तीसगढि़या शब्द की निर्धारित परिभाषा है। वर्तमान समय मेँ इस परिभाषा को पुनर्व्याख्यायित करने की आवश्यकता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7SdJ2oB2CKRDJ-H5Q4f2w-F43My9c7LLTSrn-JGRE76JcJo87NTnVtB7Fj2JVE_JLpLm2VJyWLK2JTpxt7rP9I1jRjWv6qyhhXJf0xxO4vTlZMfvGn6247M0RRKHx9maS63uPUfDpMD0/s1600/Tejindar+Gagan+Bhishma+Sahani.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7SdJ2oB2CKRDJ-H5Q4f2w-F43My9c7LLTSrn-JGRE76JcJo87NTnVtB7Fj2JVE_JLpLm2VJyWLK2JTpxt7rP9I1jRjWv6qyhhXJf0xxO4vTlZMfvGn6247M0RRKHx9maS63uPUfDpMD0/s1600/Tejindar+Gagan+Bhishma+Sahani.jpg" height="223" width="320" /></a>जब जब छत्तीसगढ़िया के रुप मेँ किसी को परिभाषित करने की स्थिति आती है तो इस पर पिछले कई सालों से लोगोँ के द्वारा आवाज उठाया जाता रहा है। इस पर ज्यादा विवाद में पड़े मैं समझता हूं कि, छत्तीसगढिया वे सभी हैं जो, छत्तीसगढ़ के निवासी हैं, छत्तीसगढ के हितों के लिए सोचते हैं और उनके दिलोँ मेँ छत्तीसगढ की धारा बहती है। .. और भी बातेँ हो सकती हे जो छत्तीसगढिया होने के आवश्यक शर्तों को सिद्ध करे।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यह सत्य है कि, इस पुरस्कार के मूल मेँ छत्तीसगढ आवश्यक है। किंतु हमारे जिन वरिष्ठ साथियों को यह लगता है कि, तेजिंदर जी छत्तीसगढिया नहीँ हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि, छत्तीसगढ़िया की परिभाषा का पुर्नमूल्यंकन करें। .. बहरहाल मौजा ही मौजा ...<br />
<br />
<span style="color: red;">तेजिंदर गगन जी को पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्मान के लिए मेरी ओर से अनेकानेक शुभकामनाए। जय हिंद ! जय छत्तीसगढ !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<b>संजीव तिवारी</b></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-78546465610285421742014-11-01T02:25:00.002-07:002014-11-01T02:25:50.484-07:00रपट: जमुना प्रसाद कसार स्मृति व्याख्यान एवं पुस्तक विमोचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 13pt; line-height: 115%;">दुर्ग के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं यशश्वी साहित्यकार <a href="http://aarambha.blogspot.in/2008/04/jamuna-prasad-kasar.html" target="_blank">जमुना प्रसाद कसार </a>एक चिंतक और मानस मर्मज्ञ विचारक थे। उन्होंनें अपने साहित्य में अपने आस पास के परिवेश को लिखा। राम काव्य के उन पहलुओं और पात्रों के संबंध में लिखा, जिसके संबंध में हमें पता तो था, किन्तु जिस तरह से उन्होंनें उनकी <a href="http://aarambha.blogspot.in/2008/03/kavita-ganga.html" target="_blank">नई व्याख्या </a> की उससे उन चरित्रों की गहराईयों से <a href="http://khulapustakalay.blogspot.in/search/label/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0" target="_blank">हमारा साक्षात्कार</a> हुआ। किसी रचनाकार के संपूर्ण रचना प्रक्रिया का मूल्यांयकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि उसने क्याा कहा है। किन्तु एक चिंतक और विचारक की रचनाओं का मूल्यांकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि, उसने उसे कैसे कहा है। कैसे कहा है इसे जानने के लिए आपको उसे गहराई से पढ़ना होता है। कसार जी की रचनाओं को आप जितनी बार पढ़ते हैं उसमें से नित नये अर्थ का सृजन होता है। कसार जी की पुण्य तिथि 30 अक्टूाबर को दुर्ग में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। प्रस्तुत है उसकी रिपोर्टिंग - </span></div><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"></span><br />
<div style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 17px; line-height: 19.9333343505859px;"><br />
</span></span></div><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> <span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5WWkBCP7qY7R9eKJVMLW0-J96YOK4_3MtXNV3c3da0oL9Z5yxu66zNhxHcJnmEpPxp1aFMpyDbBySa94TMbSnK_X021-aDkfXoEKZjsOtNsTe2O9Lj1qBYWFYyP5JJnhmNvCZv6jrjudg/s1600/Durg+Jila+Hindi+Sahitya+Samiti.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5WWkBCP7qY7R9eKJVMLW0-J96YOK4_3MtXNV3c3da0oL9Z5yxu66zNhxHcJnmEpPxp1aFMpyDbBySa94TMbSnK_X021-aDkfXoEKZjsOtNsTe2O9Lj1qBYWFYyP5JJnhmNvCZv6jrjudg/s1600/Durg+Jila+Hindi+Sahitya+Samiti.jpg" height="179" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के द्वारा आयोजित वरिष्ठ साहित्यकार एवम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमुना प्रसाद कसार जी की पुण्य तिथि पर स्मृति व्याख्यान एवं पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम 30 अक्टूजबर को दुर्ग मे संपन्न हुआ। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप मे वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, अध्यक्ष के रूप में पूर्व चुनाव आयुक्त एवं साहित्यकार डॉ सुशील त्रिवेदी एवं मुख्य वक्ता के रुप मे वरिष्ठ कथाकार डॉ.परदेशीराम वर्मा जी उपस्थित थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता परदेशीराम वर्मा ने जमुना प्रसाद कसार जी के अंतरंग जीवन यात्रा और रचना यात्रा का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया। उन्होंनें स्वतंत्रता संग्राम के समय से अपने जीवन के अंतिम काल तक निरंतर सृजनशील जमुना प्रसाद कसार जी की लेखन जिजीविषा एवं सामाजिक संघर्षों पर प्रमुख रुप से प्रकाश डाला। उन्होंनें कसार जी के स्वनतंत्रता आन्दोलन के काल में किए गए विरोध प्रदर्शनों और सजा का रोचक ढ़ग से उल्लेख किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत तत्कालीन कलेक्टर से अंग्रेजी साहित्य पढ़ने के लिए साग्रह सहायता मागने एवं उसे लौटाने के वाकये का भी उन्होंनें कथात्मक झंग से उल्लेख किया। </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रमेश नैयर नें शेरों के माध्यम से कसार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित किया। अध्यक्षता कर रहे डॉ.सुशील त्रिवेदी ने जमुना प्रसाद कसार जी के जीवन संघर्षों एवं उनके भावी पीढ़ी को दिए गए संस्कारों की प्रसंशा की। जमुना प्रसाद कसार जी की धर्म पत्नी श्रीमती शकुन्तला कसार एवं पुत्र अरूण कसार नें जमुना प्रसाद जी के अंतिम दिनों को याद करते हुए रूंधे गले से हिन्दी साहित्य समिति एवं झॉंपी पत्रिका के साहित्य यात्रा को निरंतर रखने का आहवान किया। </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">कार्यक्रम में कसार जी की दो किताबें 'आजादी के सिपाही' का द्वितीय संस्करण एवं झाँपी के पद्मश्री अंक का विमोचन हुआ। आजादी के सिपाही में दुर्ग जिले के 65 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानियां है एवं झाँपी का अंक छत्तीसगढ़ के 17 पद्मश्री पर केन्द्रित है।</span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">कार्यक्रम का संचालन रवि श्रीवास्तव एवं स्वागत भाषण दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ संजय दानी ने दिया, आभार प्रदर्शन अरूण कसार नें किया। कार्यक्रम मे महावीर अग्रवाल, अशोक सिंघइ, मुकुंद कौशल, गुलबीर सिंह भाटिया, आचार्य महेश चंद्र शर्मा, रघुवीर अग्रवाल पथिक, डा.निर्वाण तिवारी, डी.एन.शर्मा, शरद कोकाश, प्रभा गुप्ता, नीता काम्बोज, प्रदीप वर्मा, डा.नौशाद सिद्धकी, संध्या श्रीवास्तव, तुंगभद्र राठौर, अजहर कुरैशी आदि दुर्ग भिलाई के वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक एवम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उपस्थित थे। </span></div></span> </span></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-89645848752125541322014-10-29T07:28:00.001-07:002014-10-29T07:33:55.080-07:00मस्त प्रश्न, समय और फेसबुक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 13pt; line-height: 115%; text-align: justify;">आज सुबह जब छत्तीसगढ़ी के यशश्वी युवा व्यंग्यकार पी के मस्त जी को अपने नामानुरूप टाई कसे सड़क पर देखा तो अचानक मेरी उगलियॉं मेरे दाढ़ी पर रेंग गई. लम्बे पके दाढ़ी के बाल उंगलियों को अहसास करा रहेथे कि हमारा पके और चूसे आम वाला चेहरा अब रेशेवाली गुठली जैसे नजर आ रही होगी. हमने उंगलियां वहॉं से हटाते हुए अहसास को दूर झटका और मस्त जी को आवाज दिया. </span><br />
<br />
<div style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzDtFsRr25K9ZsySg2NUbdf4nVt_ggmjTNEYanPv6O4LWBRtwTEX6IxNmtTM2pYPIIMl4BuAcSEKfmHvMWA3YTQrNX2zSYHzRamzILmWKufDGHYp1TB-BbqnNbIl5XDW4AwZ7vGlrnLzHC/s1600/Sanjeev+Tiwari+Chhattisgarh.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzDtFsRr25K9ZsySg2NUbdf4nVt_ggmjTNEYanPv6O4LWBRtwTEX6IxNmtTM2pYPIIMl4BuAcSEKfmHvMWA3YTQrNX2zSYHzRamzILmWKufDGHYp1TB-BbqnNbIl5XDW4AwZ7vGlrnLzHC/s1600/Sanjeev+Tiwari+Chhattisgarh.jpg" /></a><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">हम दोनों की बाईक समानांतर रूकी, मैंनें पूछा "यार आज टाई में बहुत खुबसूरत लग रहो हो!" मस्त जी नें सकुचाते हुए बतलाया कि उन्होंने पर्सनालिटी डेवलपमेंट का कोर्स ज्वाईन कर लिया है और वे वहीं जा रहे हैं, उन्होंने यह भी बतलाया कि वे वहॉं से पाये ज्ञान एवं अनुभवों से प्रत्येक शुक्रवार स्लम एरिया के युवाओं को पर्सनालिटी डेवलपमेंट का ज्ञान बांटते हैं. छत्तीसगढ़ी साहित्यकार का सुदर्शन रूप और उस पर लोगों को पर्सनालिटी डेवलपमेंट का ज्ञान बांटनें की बात पर मुझे बेहद खुशी हुई. क्या मेरी पर्सनालिटी भी डवलप हो सकती है? प्रश्न नें समय को अपने आगोश में ले लिया. चुप्पी के विस्तार के बीच मस्त जी नें चितपरिचित मुस्कान बिखेरा, किक लगाया और चले गए. </span></span></span></div><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">मैं अपने आप को आम आदमी का प्रतिरूप मानते, दाढ़ी पर उंगलियॉं फेरेते हुए वहीं जमा रहा. अभी दो दिन पहले ही तो मेरी ऐसी सूरती चित्र फेसबुक में अपलोड हुआ था और जमकर लाईक व कमेंट आये थे. मेरी रचनायें, कवितायें वैश्विक स्तर पर पढ़ी जा रही हैं, सराही जा रही हैं. अब मुझे पहचान की कोई आवश्यकता ही नहीं है, मेरी पर्सनालिटी डवलपमेंट तो सोसल मीडिया ने कर ही दिया है फिर किसी कोर्स को ज्योइन कर समय और पैसे खर्च करने की क्या आवश्यकता? </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">प्रश्न उठ रहे थे जो मुझे पहली कक्षा से परेशान कर रहे हैं, परीक्षा हाल में नये छपे पन्नों में बिखरे प्रश्न को देखते ही माथे में और हाथों में पसीना फूट पड़ता था. हर साल सरजी परीक्षा में अटपटे प्रश्न ही छांटते थे ताकि मैं, साल भर मेहनत करने के बावजूद, उन्हें हल ना कर सकूं. जैसे तैसे असंतुष्टि के साथ उत्तर देने के बाद जब पास होता तो रिजल्ट देखकर लगता कि उन प्रश्नों का उत्तर मुझे पता था. सालों साल यही होता रहा, परीक्षा के प्रश्नों के साथ ही जीवन के अचानक मुह बाए आ खड़े होने वाले प्रश्नों नें कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. अब तो आदत हो गई है, बेफिक्री से उत्तर देता हूं किन्तु ये अशांत तो करते ही हैं. जिस दिन प्रश्नों से पीछा छूटेगा उसी दिन अनंत शांति मिलेगी. ब्लॉं ब्लॉं ब्लॉं .. दर्शन झाड़ने के लिए ही सहीं मन में समय नें विस्तार ले लिया था.</span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">मोबाईल की घंटी बजने लगी थी, फेसबुक की यादों को बीच में बंद कर हमने "हलो!" कहा. दूसरी ओर हमारी पत्नी नें भी "हलो!" कहा. संक्षिप्त बातें हुई और विस्तारित समय सिमट कर जेब में समा गया. आज रात को ## हजार रुपए के साथ घर पहुंचना है, यह वाक्य प्रश्न नहीं था पर व्याकुल करने में समर्थ था. ओह, ये छुपा हुआ प्रश्न था. ये तो और खतरनाक है, छुपा हुआ प्रश्न. आठ घंटे में ## हजार की व्यवस्था कैसे होगी? मुझे लग रहा था कि इस शब्दांश में कोई अलंकार है, प्रश्न दिख भले नहीं रहा है. रात को नेट में, ओपन बुक में खोजूंगा, इसी बहाने एकाध कविता फेसबुक में ठोकनें लायक बन जायेगी. फेसबुक की यादों नें ## हजार के प्रश्न के भारीपन को हल्का फुल्का कर दिया. पी के मस्त जी की मस्त रचनायें, उनका डवलप्ड पर्सनालिटी, मेरे दाढ़ी के बालों में कहीं अटकी रही. उंगलियाँ बार बार उसे महसूस करती रही. हमने भी बुलेटिया किक अपने खट खटिया फटफटी को मारा और आगे बढ़ गए. पीछे धूल और धुवाँ देर तक उड़ता रहा. </span></div></span><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">(यूं ही, लेखन के लिए वार्मअप होते हुए)</span></div></span> <br />
<span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"> ©<b>तमंचा रायपुरी </b></span></span></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-81732093489247390222014-10-06T23:41:00.002-07:002014-10-06T23:41:16.458-07:00पंडवानी की शैली : छत्तीसगढिया संगी जानें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
समीर शुक्ल के द्वारा पंडवानी (Pandwani) के आदि पुरुष झाडूराम देवांगन के भांजे से लिया गया साक्षात्कार, आज छत्तीसगढी भाषा की सांस्कृतिक पत्रिका "मोर भूइयाँ" मेँ प्रसारित किया गया। समीर भाई नें पंडवानी की शैली के संबंध मेँ ज्वलंत प्रश्न किया। जिसका उत्तर भी चेतन देवांगन नें बहुत ही स्पष्ट रुप से दिया। मैंने बहुत पहले अपने ब्लॉग "आरंभ" मेँ <a href="http://aarambha.blogspot.in/2010/06/blog-post_30.html" target="_blank">पंडवानी की कपालिक व वेदमति शैली</a> के संबंध मेँ एवं <a href="http://aarambha.blogspot.in/2010/07/blog-post.html" target="_blank">पंडवानी के नायकों</a> के संबंध में दो पोस्ट प्रकाशित किया था। मैंने पंडवानी पर पीएचडी करने वाले डॉ बलदेव प्रसाद निर्मलकर से, उनके गाइड डॉ विनय कुमार पाठक के सामने भी ये प्रश्न रखा था। समय समय पर कई पंडवानी कलाकारोँ, विद्वानोँ और लोक अध्येताओं से इस संबंध मेँ विमर्श किया है। </div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
आज के प्रसारण मेँ चेतन देवांगन के द्वारा इस पर दिया गया जबाब स्वागतेय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, वैदिक ग्रंथों के आधार पर गाए जाने वाली पंडवानी गायन की शैली, वेदमती है। और वैदिक पात्रों की कथाओं पर लोक कल्पनाओं व लोक मिथ के आधार पर गए जाने वाली, पंडवानी की गायन शैली, कापालिक है। उसने कुछ प्रसिद्ध कथाओं का जिक्र भी किया, जिसमे वध की कथाएँ थी। जिसमे समयानुसार लोक लुभावन प्रस्तुति और लोक मिथक स्वमेव समाहित हो गए। </div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर भारत भवनीय दृष्टी नें इसे बेवजह स्थापित किया। क्योंकि तथाकथित आदि विद्वानों के द्वारा यही चस्मा उन्हें पहनाया गया। कथा के आधार वर्गीकरण को प्रदर्शन के आधार पर वर्गीकृत कर दिया, और मज़े की बात यह कि, पूरी जोर अजमाइस यह रही कि, अधूरी परिभाषा ही पंडवानी की शैली के रूप में स्थापित हो जाए।</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
मेरा शुरू से मानना है कि, मात्र बैठे और खडे होने से पंडवानी की शैली को परिभाषित ना किया जाए।<br />
<br />
- <b>संजीव तिवारी</b></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-28412677740583297572014-09-27T19:17:00.000-07:002014-09-27T19:17:44.521-07:00वर्जित विषय : सांस्कृतिक उत्थान का प्रतीक है कण्डोम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
जगतजननी माँ जगदम्बा की नवराती में भब्य पंडाल सजे हैं। बड़े होटलों, फाइव स्टार धर्मशालाओं और इंद्र की नगरी की भांति सर्व सुविधासंपन्न आश्रमों में रास गरबा करते खाए अघाए लोग नाच रहे हैं। गीतगोविन्दम के कृष्ण, राधा और गोपियाँ आस्था और भक्ति का संदेस देते जीवंत हो गए हैं। </div>
<div style="text-align: justify;">
ऐसे भक्तिमय समय में असंगत एवं असार्वजनिक बात सुना। कल जब शहर के पॉश कहे जाने वाले कालोनी में स्थित एक दवाई दुकान के मालिक ने बताया तो आश्चर्य हुआ। </div>
<div style="text-align: justify;">
"इन नौ दिनों में गर्भनिरोधक की बिक्री का आकड़ा सर्वाधिक होता है। साल भर में जितने पैकेट की बिक्री होती है उतनी ही इन नौ दिनों में बिक जाती है।"</div>
<div style="text-align: justify;">
@तमंचा रायपुरी</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
इसे फेसबुक पर प्रकाशित करने पर अधिकतम मित्रों नें स्वीकार किया किया कि इसमें सौ प्रतिशत सत्यता है. कमेंट इस प्रकार हैं —</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Ashok Sharma</b> - हां, ये दुखद सच है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>सूर्यकांत गुप्ता</b> - तोर पोस्ट ल पढ़त हौं अऊ "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान. कितना बदल गया इंसान" वाले गाना रेडियो म सुनत हौं.....</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>रमेश चौहान</b> - गंभीर, किन्तु कटु सत्य ये वासना के पुजारी की माया है</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Swadha Sharma</b> - आपकी इस पोस्ट से प्रेरणा मिली कि,, महूँ कुछ चेपव facebook माँ.</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Anubhav Sharma</b> - देशी वेलेंटाईन डे...की तरह गरबा रास...मुडिया पर्व ककसार की तरह....नैतिक रूप से इसके स्वरुप में नही जाऊंगा ...पर युवा पीढ़ी ने अपने लिए ये स्पेस निकाला है...</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Kewal Krishna</b> - स्वाभाविक है</div>
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<b>Santosh Kumar</b> — ये कड़वा सच है...</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Pushpa Dubey</b> — संजीव भैया जी लगता है अब भक्ति भी फ़ेसन ( दिखावा ) बन गयी है... असमाजिक तत्व भक्ति के आड़ में कुछ भी कर रहे हैं । ये वर्जित विषय नहीं है भैय्या जी आज के युग का ज्वलंत मुद्दा है ये...</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>नवीन तिवारी अमर्यादित तिवारी</b> — <, आधुनिकता का पर्याय >>> <, अंधानुकरण , पर आपैं को सामाजिक सांस्कृतिक बताना ,, <, इसके आध में व्यभिचारी की छूट पाना ,, फिर सुरक्षा के आगे ,, ये सब जरुरी है </div>
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याज्ञवल्क्य वशिष्ठ — सहमत </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Sanjeev Sahu</b> — शत प्रतिशत सत्य बात है </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Cap. Naveen Sahu</b> — Kai po che फिल्म में भी.... </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Kaushal Mishra</b> — ये कैसा भक्ति संदेश..... ??? बस पंडाल के बाहर दवा विक्रेता के स्टॉल की कमी रह गई है ... ये दिन भी दूर नहीं... </div>
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<b>Lalchand Vaishnav</b> — गरबा जिहाद वाले मन ये तफर ध्यान कैसे नि दये </div>
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<b>Manoj Kumar</b> — सत्य है </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Nishant Mishra</b> — सच है ये बात. इस सीजन में गायनकोलॉजिस्ट भी बहुत व्यस्त हो जाती हैं. </div>
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<b>Gyan Dutt Pandey </b>— <span style="background-color: yellow; color: red;">सांस्कृतिक उत्थान का प्रतीक है कण्डोम। </span></div>
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<b>Satyapriya Tiwari </b>— गाँव गवई म दुकान नई रहय त ये सब बात पता नई चलय। फेर बिगड़े ब शहर आउ गाँव दुनो जघा के युवा पिढी मन बिगड़ गे हे। </div>
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<b>Kamlesh Verma</b> — संजीव भाई गुजरात में शारदीय नवरात्री के समे मा गर्भनिरोधक के सर्वाधिक बिक्री के बात तो चार -पञ्च साल पहिली ले सुने हाबन,अब तो जादा लाहो लेवत होही. </div>
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<b>Vivek Sao</b> — कहीं पढ़ा था की गुजरात में सबसे ज्यादा एबॉर्शन इनही महीनों में होता है... </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Pankaj Oudhia</b> — http://www.dnaindia.com/.../report-as-garba-season... As garba season sizzles, condom sales hot up | - <br />
According to an Ahmedabad-based psychiatrist, Dr. Mrugesh Vaishnav, young people enjoy a degree of personal freedom during Navaratri that is rarely granted to them at other times. The slackening of parental rules and supervision allows some of the youth to explore intimacy with the opposite sex. “Young people are excited by the festive mood and as a result, moral barriers are broken,” Vaishnav said. “It can also be viewed as an act of defiance against social norms.”<br />
Amid the raging twirl of hormones, which is viewed with disdain in many quarters, there lies some reassuring news: boys and girls revelling in unmonitored liberty are at least aware of the risks, especially Aids.DNAINDIA.COM </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>Sanjeet Tripathi </b>— bhai sahab, yah bat mai 2004 me jab nav bharat me tha tab hi apne lekh me ullekhit kar chuka hun...... </div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-337263012253836562014-09-04T10:08:00.001-07:002014-09-04T10:18:41.863-07:00गीतों की बस्ती बसाने वाले गीतकार : बसंत देशमुख<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvAJ3cbfeVRs9QPFfIEYGq9DTiUWCcUUmwUZSksxHv8MGyUvI2HeQtA3DUpPDWYD5F5-dBF9oqQH5X9GAQyIuGn8EUZwLZGyxCPVn0TbcW-J2Z1KJhPoVLp9ruqW0J7Hq2dV6EoEfWZY4/s1600/Basant+Deshmukh+Nachij.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvAJ3cbfeVRs9QPFfIEYGq9DTiUWCcUUmwUZSksxHv8MGyUvI2HeQtA3DUpPDWYD5F5-dBF9oqQH5X9GAQyIuGn8EUZwLZGyxCPVn0TbcW-J2Z1KJhPoVLp9ruqW0J7Hq2dV6EoEfWZY4/s1600/Basant+Deshmukh+Nachij.jpg" height="200" width="146" /></a></div>
छत्तीसगढ़ के कवि एवं गज़लकार बसंत देशमुख व्यवहार और रचनाओं में सरल व सरस कवि थे. उन्होंनें हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लेखन कार्य किया. उनकी हिन्दी रचनायें देशभर में सराही जाती रही है, काव्यमंचों पर उनके गज़लों के काफी दीवाने थे. छंदबद्ध रचनाओं के हिमायती बसंत जी नें छत्तीसगढ़ी में गज़ल संग्रह भी निकाला. अपने काव्य संकलन 'मुखरित मौन' में उन्होंनें लिखा हैं 'मैंने साहित्य कि दुरूहता से परे हटकर आज के आम आदमी कि घुटन एवं पीड़ा को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करने की कोशिश की है.' यह सच है कि बसंत देशमुख की भाषा सहज और सरल थी जिसके कारण उनकी कवितायें सहजता से अभिव्यक्ति होती थी. </div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
छत्तीसगढ़ की कला परम्पराओं एवं संस्कृति की धारा उनके हृदय में निरंतर बहती थी. नए बने प्रदेश छत्तीसगढ़ के विकास और छत्तीसगढ़ियों की खुशहाली के लिए वे हमेशा चिंतित रहते थे. सहजता उनका जीवन था, किन्तु सरलता के साथ ही विद्रूपों पर प्रहार करने के लिए उनकी लौह दृढता समय समय पर जागृत भी हो जाती थी. उन्होंनें इसे कविता में लिखा भी — </div>
<br />
<span style="color: blue;">छत्तीसगढ़ के चावल से बना पोहा हूँ </span><br />
<span style="color: blue;">कबीर की साखी हूँ तुलसी का दोहा हूँ </span><br />
<span style="color: blue;">सीधा हूँ सरल हूँ पानी जैसा तरल हूँ </span><br />
<span style="color: blue;">आग से पिघला हुआ भिलाई का लोहा हूँ </span><br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित छोटे से ग्राम टिकरी में 11 जनवरी 1942 को बसंत पंचमी के दिन जन्में बसंत देशमुख जी विज्ञान स्नातक थे. पढ़ाई के बाद वे भिलाई इस्पात सयंत्र के सेवा से जुड़ गए. वहां वे निरंतर प्रगति करते हुए अनुसन्धान एवं नियंत्रण प्रयोगशाला से वरिष्ठ प्रबंधक के पद से सेवानिवृत हुए. सेवानिवृति के पश्चात् पूर्णरूपेण साहित्य सेवा में जुटे रहे.</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
बसंत देशमुख के साहित्य साधना में काव्य संग्रह मुखरित मौन, गीतों की बस्ती कंहाँ पर बसायें, सनद रहे, ग़ज़ल संग्रह धुप का पता, मुक्तक संग्रह लिखना हाल मालूम हो, छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल संग्रह अलवा जलवा आदि प्रकाशित हुए. इसके अतिरिक्त सैकड़ों काव्य रचनायें पत्र—पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, रेडियो टेलीवीजन पर प्रसारित हुए. मनोज प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें हिंदुस्थानी' में इनकी ग़जलें समाहित की गई. वाणी प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें दुष्यंत के बाद' में भी देशमुख जी की ग़जलें समाहित की गई. इनकी कवितायें बंगला भाषा में अनुदित भी हुई एवं 'अदल बदल' मासिक कोलकाता के अंकों में प्रकाशित हुई.</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
इंटरनेट में भी बसंत देशमुख की कवितायें संकलित है, काव्य संग्रह मुखरित मौन ब्लॉगर प्लेटफार्म में <a href="http://mukhritmaun.blogspot.in/" target="_blank">यहां</a> है. कविता कोश, हिन्दी समय एवं हिन्दी काव्य संकलन में भी इनकी कवितायें संकलित है.</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
लगातार सृजनशील एवं साहित्य के गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहने वाले, गीतों की बस्ती बसाने वाले गीतकार बसंत देशमुख जी यद्यपि 12.05.2013 को हमें असमय ही छोड़ कर चले गए किन्तु कवितायें आज भी जीवंत हैं—</div>
<br />
<span style="color: blue;">जिनके माथे पर पसीना है, आँखों में पानी है </span><br />
<span style="color: blue;">जिन्दगी जिनकी कविता है , मौत एक कहानी है।</span><br />
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<b>संजीव तिवारी</b></div>
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-48753100013457868592014-08-24T02:30:00.000-07:002014-08-24T02:42:59.031-07:00अब के कवि खद्योत सम जंह -तंह करत प्रकाश <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh62tAGiZbjo4cb4DBVZsRvM39neyynvaJOJpneCcXTeQ5zsk-VntzXWb-ozQBfbEBnvAjd-25SjzCs1MArecPeMq3UXfM5zgajNx_btffE47G6xMTJtWGGxLQTtVU9RNv_VEr3cmdBBxo/s1600/Vinod+Sao.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh62tAGiZbjo4cb4DBVZsRvM39neyynvaJOJpneCcXTeQ5zsk-VntzXWb-ozQBfbEBnvAjd-25SjzCs1MArecPeMq3UXfM5zgajNx_btffE47G6xMTJtWGGxLQTtVU9RNv_VEr3cmdBBxo/s1600/Vinod+Sao.jpg" height="100" width="84" /></a></div><blockquote class="tr_bq">विनोद साव जी नें अपने फेसबुक वाल में लिखा —<br />
<h3>गोष्ठी, लोकार्पण और पुरस्कार अब वस्तुतः हिंदी साहित्य में छठ, तीज और गया में पिंड-तर्पण जैसे त्यौहार होकर रह गए हैं. पुरस्कार इतने दिए जा रहे हैं कि लगता है आज हिंदी साहित्य में प्रतिभाओं का आकस्मिक विस्फोट हो गया है.</h3></blockquote></div><hr /><div style="text-align: justify;">हमने वहॉं लिखा —<br />
यह सौ फीसदी सत्य है कि गोष्ठी, लोकार्पण और पुरस्कार अब हिन्दी साहित्य में मात्र परम्परा निर्वाह के खेल हो गए है. पुरस्कार की माया बड़ी है, जब तक दरवाजें में दस्तक ना दे, छोटी लगती है. अभी के समय में देने वाले जामवंतों की भी बाढ आई है, हनुमान से आशीष पाने के लिए यह सबसे अच्छा माध्यम है.</div><br />
<div style="text-align: justify;">लोकार्पण, समीक्षा गोष्ठी तो सदियों से पूर्वनिर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आयोजित किए जाते रहे हैं. अब पूर्वाग्रह से प्रेरित लोग युग सत्य को कायम रखने, फोन पर गोष्ठी की दिशा बदलने चीत करते हैं. मुक्त संचार साधनों के माध्यम से प्रतिभाओं के आकस्मिक विष्फोट हुआ है जिससे लोकार्पण के आयोजनों की बाढ़ आ गई है. इनमें से अधिकांश प्रतिभायें पारंपरिक मठों से दीक्षित नहीं होते. इसी कारण इनके अंगूठे को दान में प्राप्त कर लेने की चेष्टा बार बार इनके संपर्क में आने वाला हर द्रोण करता है. इनमें से कुछ द्रोणों को धता बताते हुए कृतियों का संधान करते हैं. देखते ही देखते 'राजीव रंजन प्रसाद' जैसे अदना भूमिपुत्र के उपन्यास का एक साल में ही चार चार संस्करण निकल जाते हैं. .. और हम हमारे प्रदेश के होने के बावजूद हम उसे नहीं जानते. गोष्ठी होगी तभी तो जानेंगें ना.</div><br />
<div style="text-align: justify;">समय के साथ ही, 'हिन्दी साहित्य' की परिभाषा भी बदली है. लोग पतनशील साहित्य तक लिख रहे हैं किन्तु साहित्य का पुछल्ला पतनशील का पीछा नहीं छोड़ रही है. साहित्य की विडंबना देखिए कि आदरणीय पतिराम जी साव जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा सिंचित, दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति जो 1928 से अस्तित्व में है, का मैं सचिव मनोनीत कर लिया जाता हूॅं. मैं, जिसे साहित्य का क ख ग भी मालूम नहीं. तथाकथित साहित्यकार चुनाव के भेड चाल में हाथ उठा लेने के बाद, अब एक दूसरे को फोन कर कर के पूछते हैं कि 'संजीव तिवारी' का साहित्य में क्या अवदान है. तो भईया, मेरे जैसे लोग बिना हींग फिटकरी के सबसे पहले चाहेंगें दो दो लाईन की तुकबंदी बनायें, डायरी में नोट करे और शीध्रातिशीध्र समिति की गोष्ठी आयोजित करे, गोष्ठी में कविता पाठ जरूर हो. इन्हीं स्थितियों से गोष्ठियों का यज्ञ मंडप अपवित्र होना आरंभ हुआ है.<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho42d-asqPQ8bTecyZoC1GzdBv7T-0ek3GSIZF-6zBamJbdmsWBk2m7w4p8D5SiA7i7PFWXRPsNSBK-omCHZDnT2fLv531Ot_iC-Gjn77x6Joy8qqenqSio8qixuaHOdPjyrswgNz6N3U/s1600/Arun+Nigam.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho42d-asqPQ8bTecyZoC1GzdBv7T-0ek3GSIZF-6zBamJbdmsWBk2m7w4p8D5SiA7i7PFWXRPsNSBK-omCHZDnT2fLv531Ot_iC-Gjn77x6Joy8qqenqSio8qixuaHOdPjyrswgNz6N3U/s1600/Arun+Nigam.jpg" height="100" width="95" /></a>इस पहलू के दूसरी तरफ, इंटरनेट में गोष्ठियों के लोकतंत्र नें कई प्रतिभाओं को सामने लाया जिसमें से एक गिरिराज भंडारी जी भी हैं जिन्होंनें पिछले दिनों एक आयोजन में साठ साल की उम्र में पहली बार माईक में, सार्वजनिक रूप से अपनी कविता पढ़ी. आप उनकी रचनायें उनके <a href="https://www.facebook.com/giriraj.bhandari.35?fref=ufi">फेसबुक वाल</a> में पढ़ सकते हैं. हमें उनकी रचनाओं के संबंध में कोई मगलाचरण पढ़ने की भी आवश्यकता नहीं है. चित्र में नजर आ रहे भाई अरूण कुमार निगम जी, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ जनकवि कोदुराम दलित जी के सुपुत्र हैं, गीत लिखते हैं. इन्होंनें इंटरनेट में नव कवियों के ठिकानों जैसे ओपन बुक व अन्य पोर्टलों में नव लेखन को लगातार प्रोत्साहित किया है. इन्होंनें छंद मुक्त लेखन के दौर में गीत और गीतिका को ना केवल प्रोत्साहन दिया है, बल्कि प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. <br />
<br />
यह सहीं है कि, इंटरनेट का लोकतंत्र पारंपरिक हिन्दी साहित्य के पत्र—पत्रिकाओं के तिलस्म को भी तोड़ देगा. उसके बाद इन पत्रिकाओं के फ्रेम में मुस्कुराते चेहरे भी बदलेंगें. किन्तु इंटरनेट के चटर पटर के बरस्क लेखन का कोई तोड़ नहीं होगा. कहानी लिखने के लिए आपको कहानी ही लिखना होगा और कविता के लिए कविता. कोई धाल मेल नहीं. पुरस्कारों के बावजूद, चुटकुले दीर्घजीवी नहीं होंगें और विनोद कुमार शुक्ल बिना पुरस्कारों के भी साहित्य में जीवंत रहेंगें.<br />
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डिस्कलेमर :— इस टिप्पणी को हल्के फुल्के से लें, दरअसल साहित्य की चर्चा कर साहित्यकार के खेमें में अपना नाम लिखाने का प्रयास कर रहा हूं.</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-34813277667534349762014-08-18T00:21:00.000-07:002014-08-18T00:31:23.790-07:00छत्तीसगढ़ का सोशल मीडिया, दायित्व और चुनौती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWb9tkS7DFr1hVsOGuHAJDglJgBOLb9Bp-IL16RZMghlPFM8JWi2EKpMPeo0gKzVPlovmBz4sR4SOwqLs4rZNNzoQ772yXXhAimUELtUEesySa8j_L-64lw2f8GoULVk7IULXLrvgqq1U/s1600/CG+Social+Medea2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWb9tkS7DFr1hVsOGuHAJDglJgBOLb9Bp-IL16RZMghlPFM8JWi2EKpMPeo0gKzVPlovmBz4sR4SOwqLs4rZNNzoQ772yXXhAimUELtUEesySa8j_L-64lw2f8GoULVk7IULXLrvgqq1U/s1600/CG+Social+Medea2.jpg" height="240" width="400" /></a></div><div style="text-align: justify;">पारंपरिक संचार के जो साधन है उससे हट कर गैर पारंपरिक संचार का जो साधन वर्तमान समाज में सहज सरल रूप से उपलब्ध है वही सोशल मीडिया है. जिसे हम ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स अप आदि के नाम से पहचानते हैं. मीडिया के इसी माध्यम को हम सामान्यतया नागरिक मीडिया सिटिजन जर्नलिज्म भी कहते हैं. विकासशील समाज में आज सूचना की आवश्यकता सब को है, कल तक हमें सूचनायें पारंपरिक मीडिया जैसे समाचार पत्र, रेडियो और टीवी के माध्यम से प्राप्त होती थी. इन पारंपरिक माध्यमों के सामने चुनौती इनके संचालन के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था रही है, धीरे धीरे इसके संचालकों में मीडिया से लाभ कमाने की प्रवृत्ति बढ़ती गई. जिसके कारण मुखर पत्रकारों पर संपादक का अंकुश और संपादकों पर विज्ञापन विभाग का अंकुश गहराता गया. सूचनायें प्रभावित होने लगी और लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तंभ की निष्पक्षता संदिग्ध होती रही. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वतंत्र भारत में भी अकुलाती, छटपटाती रही. सोशल मीडिया इसी अकुलाहट का परिणाम है. इसी कारण इसका तेजी से विकास हुआ, देखते ही देखते इसने मीडिया की परिभाषा बदल दी. पहले गिने चुनें उंगलियों में गिने जा सकने वाले पत्रकार होते थे आज आप सब पत्रकार हैं.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">पूरी दुनिया में बदलाव की बयार लाती इस सोशल मीडिया पर चर्चा करने के पहले हमें प्रदेश के सोशल मीडिया के आरंभिक समय के संबंध में चर्चा कर लेना भी वर्तमान समय में आवश्यक है. हम इंटरनेट विश्व में सोशल मीडिया के विकास का क्रम क्या रहा इसके संबंध में बिना कुछ कहे हम छत्तीसगढ़ के सोशल मीडिया पर चर्चा करना चाह रहे हैं. आरंभिक समय में छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया का आगाज तीन दिशा से या कहें तीन माध्यमों से हुआ, याहू ग्रुप, आरकुट और ब्लॉग. यह समय इंटरनेट के सीमित प्रयोक्ताओं का समय था किन्तु इस समय में समाज के एलीट कहे जाने वाले लोग, मीडियाकर्मी, प्रशासनिक उच्चाधिकारी आदि इसमें सक्रिय रहे. प्रायः सभी के ई मेल का माध्यम याहू रहा और याहू नें जब अपने सदस्यों के बीच समूह वार्ता का विकल्प आरंभ किया तब सीजीनेट नें एक ग्रुप बनाया और छत्तीसगढ़ से संबंधित मसलों पर सदस्यों के बीच विमर्श का प्लेटफार्म तैयार किया. इस ग्रुप के माध्यम से जमीनी सूचनायें भी बाहर आने लगी, गंभीर विमर्श के दौर का आरंभ हुआ. छत्तीसगढ़ में यह नागरिक मीडिया का आगाज था. सुभ्राशु चौधरी नें इसी समय में बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यात्रायें की और उनके रपट दैनिक छत्तीसगढ़ में प्रकाशित हुए जिस पर इस ग्रुप में भी बहसें हुई. इस पर विस्तार से फिर कभी.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">धीरे धीरे याहू ग्रुप में छत्तीसगढ़ से संबंधित या छत्तीसगढ़ के लोगों के द्वारा समूह बनाये गए एवं समूह चर्चा होने लगी, अभिव्यक्ति मुखर होने लगी. किन्तु याहू ग्रुप की सीमाओं के कारण लोगों को लगने लगा कि चर्चा और सूचनायें समूह सदस्यों तक ही सीमित हैं उसका विस्तार नहीं हो पा रहा है. ऐसे समय में गूगल का सोशल नेटवर्किंग साईट आरकुट अपने चरम पर था. रायपुर से अमित जोगी एवं पत्रकार संजीत त्रिपाठी जैसे लोग यहॉं सक्रिय थे. लोगों को जब लगने लगा कि हम सूचनायें एवं अभिव्यक्ति यहां सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं तो आरकुट के वाल एवं ग्रुपों में सूचनायें एवं अभिव्यक्ति प्रस्तुत होने लगी. आरकुट नें सोशल मीडिया के लोकतंत्र को बढ़ावा दिया, आम खास सब यहां आ गए. जमीनी सूचनायें यहां आने लगी, खासकर बस्तर के गांवों से, कस्बों से हकीकत सामने आने लगी.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">शब्दों और प्रस्तुतिकरण की सीमायें जब आरकुट में नजर आने लगी तो तीसरा प्रवाह अपने चरम पर समानांतर बहने लगा. यह था ब्लॉग, छत्तीसगढ़ के चर्चित ब्लॉगों में अमित जोगी का अंग्रेजी ब्लॉग था. बाद में जय प्रकाश मानस नें हिन्दी ब्लॉगों का अलख जगाया. संजीत त्रिपाठी एवं बी.एस.पाबला हिन्दी ब्लॉगों में सक्रिय हुए. इसी समय में मैंनें भी हिन्दी ब्लॉग आरंभ को आरंभ किया. यह वह समय था जब पूरे विश्व में हिन्दी ब्लॉगों की संख्या कुछ सैकड़ों की थी जिसमें से सक्रिय ब्लॉगरों में हम कुछ लोग छत्तीसगढ़ के भी थे. जिनकी बातें अब दूर दूर तक एवं प्रभावी रूप से पहुच रही थी. परम स्वतंत्र अभिव्यक्ति के माध्यम इन हिन्दी ब्लॉगों की लोकप्रियता नें बाद के समय में छत्तीसगढ़ के अनेक बुद्धिजीवी, साहित्यकार एवं पत्रकारों को अपने पास बुलाया जिसमें से अनिल पुसदकर जी, गिरीश पंकज जी जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी थे और ललित शर्मा जी जैसे यायावर भी. जिन्होंनें छत्तीसगढ़ को ब्लॉगरगढ़ का नाम दिलाया.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इसी समय छत्तीसगढ़ के सोसल मीडिया में उल्लेखनीय कार्य हुए. तत्कालीन परिस्थितियां में छत्तीसगढ़ में लगातार नक्सल हिंसा का दौर चल रहा था और सरकार इससे निपटने के लिए लगातार दबाव बना रही थी. दिल्ली में और विदेशों में बैठे पारंपरिक मीडिया के लोग छत्तीसगढ़ सरकार की जमकर आलोचना कर रहे थे. साथ साथ छत्तीसगढ़ के पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों पर सरकार के पिछलग्गु होने का आरोप लगा रहे थे. इसी समय में आक्रामक रूप से लगातार तथ्यों के साथ पोस्ट पर पोस्ट लिखते हुए अनिल पुसदकर, कमल शुक्ला, राजीव रंजन प्रसाद, संजीत त्रिपाठी, रमेश शर्मा आदि नें छद्म प्रचार को रोका और हालात को स्पष्टत किया. क्योंकि हम यहां के हालात से वाकिफ थे इसलिए हम लोगों नें भी वही लिखा जो सहीं था. मैं यह नहीं जानता कि इस मसले पर छत्तीसगढ़ के ब्लॉतगों का क्या असर हुआ किन्तु एसी कमरों में बैठकर बस्तर पर रिपोर्टिं करने वालों के जड़ों पर प्रहार अवश्य हुआ.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">आज का समय फेसबुक ट्विटर और व्हाट्स एप का है. इसके शोर नें कंगूरों को भुला दिया है. वह भी एक समय था जब सीजीनेट के इसी तरह के मिलन कार्यक्रमों में लोग अमरीका से भी दौड़े चले आते थे. देश में धारा 66 ए, साईबर एक्ट के तहत पहली शिकायत यहां के ब्लॉग बिगुल को आधार मानते हुए दर्ज की गई उसके बाद दूसरे हिस्सों पर दर्ज हुई और हल्ला हुआ मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुचा.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">IRIS व ज्ञान फाउंडेशन नें पिछले लोकसभा चुनाव में बताया था कि देश के 543 लोकसभा सीटों में से 160 सीटों को सोशल मीडिया प्रभावित करेगी. राज्यों के लोकसभा सीटों के संबंध में शोध सर्वेक्षण का खुलाशा करते हुए संस्था नें कहा था कि छत्तीसगढ़ में भी सोशल मीडिया चार सीटों के नतीजों को प्रभावित करेगी. यह आप सबके ताकत का प्रमाण है, कौन कौन से सीट प्रभावित हुए इसकी जानकारी नहीं मिल पाई किन्तु इतना तो सिद्ध हुआ कि छत्तीसगढ़ के सोशल मीडिया में दम है. </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">छत्तीसगढ़ के सोशल मीडिया में सक्रिय संगवारी ग्रुप के द्वारा पिछले वर्षों से लगातार उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है. ग्रुप के सदस्य प्रदेश की समस्या, अस्मिता, साहित्य, कला और संस्कृति पर चर्चा कर रहे हैं. जिससे जागरूकता पैदा हो रही है और मुद्दे किसी ना किसी माध्यम से सरकार के कानों तक पहुच रही है. सोशल मीडिया की वैचारिक प्रतिबद्धता का उदाहरण देखिये कि नक्सल fहंसा के विरोध स्वरूप संगवारी के मित्र नक्सल गढ़ में दण्डकारण्ड पद यात्रा आयोजित करते हैं और देश की पारंपरिक मीडिया इनके साहस के किस्से छापती है. इसी तरह अन्य कई उदाहरण है जो सोशल मीडिया के प्रभाव से उठाए गए और बदलाव आया. अहफाज रशीद भाई अपने फेसबुक स्टेट्स के बलबूते पर शेख हुसैन जी के बीमारी के समय संस्कृति मंत्री को उनके बिस्तर तक ले आते हैं. नवीन तिवारी भाई के फेसबुक स्टेट्स से स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी शेड्यूल बदल दी जाती है. डॉ.शिवाकांत बाजपेई के डमरू उत्खनन के खुदाई में प्राप्त वस्तुओं का कालक्रम के संबंध में बहुत कम समय में जानकारी प्राप्त हो जाती है. </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सोशल मीडिया नें हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है जिसका अर्थ उत्श्रृंखलता, अराजकता और अर्मयादित व्यवहार कतई नहीं है. हमें अपने नागरिक कर्तव्य समझने होगें. कल ही मेरे द्वारा एक स्टेट्स में दांयें बायें लिखने में हुई छोटी सी भूल बड़ी भूल बन गई और मुझे एक सम्माननीय श्री से डांट खानी पड़ी. मुख्यतया हमारा जो दायित्व बनता है वह है -</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">1. अफवाह को बढ़ावा न दें, ऐसे सूचनाओं की पड़ताल करें, तत्काल रोकें और प्रतिरोध दर्ज करायें, चुप ना बैठें.</div><div style="text-align: justify;">2. चरित्र हनन व व्यक्तिगत आरोप न हो, स्वस्थ विमर्श करें. इस संबंध में पंकज कुमार झा का प्रयास मुझे अच्छा लगता है.</div><div style="text-align: justify;">3. मुद्दों को भटकायें मत, बल्कि समाधान देने का प्रयास करें. प्रायः यह देखा जाता है कि कुछ विशेश वर्ग के लोग मुद्दों को अपने स्वार्थ के लिए बाकायदा हैक कर लेते हैं. जिससे मुद्दा अपने उद्देश्य से भटक जाता है ऐसे में मुद्दों को राह में लाईये.</div><div style="text-align: justify;">4. आपराधिक गतिविधियों, कापीराईट उलंघनों का भी विरोध करें. दूसरों के स्टेट्स अपनी बौfद्ध्कता प्रदर्शन के लिए कापी पेस्ट ना करें बल्कि शेयर करें.</div><div style="text-align: justify;">5. सूचना का प्रसार करें जैसे रोजगार, कानून, सेवा.</div><div style="text-align: justify;">6. सृजनशीलता को बढ़ावा दें. कला साहित्य संस्कृति व भाषा से संबंधित अपने ज्ञान को बांटें.</div><div style="text-align: justify;">7. किसी को ब्लाक कर उसकी शिकायत करने के बजाए आलोचना करें, विचार करें कि माध्यम दोषी है या मानसिकता.</div><div style="text-align: justify;">8. इसके अतिरिक्त यह सही है कि सरकारी मशीनरी पर हमारा विश्वास उठ गया है फिर भी हम देख रहे हैं कि पुलिस, प्रशासन के ग्रुप और पेज पर हमारे लाईक बढ़ते ही जा रहे हैं. हम वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहे हैं ताकि हम उन्हें वाच कर सके. यह हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है इसे बरकार रखे.</div><div style="text-align: justify;">9. आदि इत्यादि </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">विकास की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ के समक्ष जो चुनौतियां है वहीं सोशल मीडिया की भी चुनौती है. हमें यहॉं विकास के रास्तों का उल्लेख करना है. भ्रष्टाेचार, जमाखोरी, हिंसा के विरोध में माहौल बनाना है. जनता की खुशहाली एवं उन्नति के रास्तों को प्रशस्त करना है.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">लंदन में पिछले वर्ष हुए आफ्टर द राईट्स के दंगों के संबंध में आप सब नें सुना होगा. लोगों नें कहा कि यह सोशल मीडिया की कारस्तानी है. ब्रिटैन सरकार के द्वारा जांच कराया गया. इंटरनेट में आफ्टर द राईट्स के लगभग 100 पन्नो की रिपोर्ट आपको मिल जायेगी. पूरे रिपोर्ट में कहीं भी सोशल मीडिया को दोश नहीं दिया गया है. जबकि इसके उलट भारत में तत्काल दोष मढ़े जाते हैं, अपराधी की खोज चालू हो जाती है वो इसलिए कि सरकारी तंत्र की नाकामी छिप जाए. मैं मानता हूं कि कुछ प्रतिशत कचरा यहां भी है किन्तु जनसंख्या के हिसाब से उनका प्रतिशत कुछ भी नहीं है यदि आप जागरूक हैं तो ऐसे कचरों को साफ किया जा सकता है. हमें लोकतंत्र के चौथे खम्बे का दायित्व निभाते हुए काम करते रहना है. संगवारी ग्रुप के द्वारा किए जा रहे ऐसे ही रचनात्मक कार्यों को मेरा सलाम, जय भारत, जय छत्तीसगढ़. </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">- <b>संजीव तिवारी</b></div></div><br />
<div style="text-align: justify;">इस विषय पर परिचर्चा का असयोजन संगवारी समूह नें किया था. कार्यक्रम के उपरांत भाई गिरीश मिश्र जी नें अपने फेसबुक वाल पर जो लिखा 'सोशल मीडिया और छात्तीसगढ़ को लेकर 'संगवारी समूह' के आयोजन से अभी -अभी लौटा हूँ. मैंने कहा, कि यहाँ के लोग सोशल मीडिया का रचनात्मक इस्तेमाल करे और देश -दुनिया में छत्तीसगढ़ की बेहतर छवि बनाये। सुभाष मिश्र, राजीव रंजन प्रसाद, शुभ्र चौधरी, संजीव तिवारी, मुकुंद कौशल और कुछ अन्य वक्ताओं ने अपने-अपने महत्वपूर्ण विचार रखे.सबके नाम मुझे याद नहीं आ रहे हैं, अनेक लोगो से पहली बार मिलना और उनके विचार सुनना अच्छा लगा. आयोजक गिरीश मिश्र मुम्बई में रहते हैं, रायपुर के मूल निवासी है.मगर बार-बार छत्तीसगढ़ आ कर हर बार किसी नए विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन करते है. यही है अपनी जड़ो से जुड़े रहना.' उसकी एक कड़ी यह भी है -</div><div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/girish.mishra3/posts/10152196835401813" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/girish.mishra3/posts/10152196835401813">Post</a> by <a href="https://www.facebook.com/girish.mishra3">Girish Mishra</a>.</div><br />
कार्यक्रम के संबंध में अतिरिक्त जानकारी एवं प्रतिक्रया आप संगवारी समूह में <a href="https://www.facebook.com/groups/sangwari/">यहॉं</a> देख सकते हैं. <br />
</div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-90019635300804350702014-07-17T05:53:00.000-07:002014-07-17T05:53:59.549-07:001800 से पहले भारत में दलित नहीं थे : डॉ.बिजय सोनकर शास्त्री <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpNPZCtBh_7ktukZlUWtStUx-0SaSOt4dkrjgBM9PoWwpfZOikjDXVp85sqH4KFZEevPvfca8GqmYMSGAaYye7W5uNDSz6l18z1HtWq1y3j20X5MEj5yIqmVxNCSHCPXUqy5hZdiiixOw/s1600/Bizay+Sonkar+Shashtri1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpNPZCtBh_7ktukZlUWtStUx-0SaSOt4dkrjgBM9PoWwpfZOikjDXVp85sqH4KFZEevPvfca8GqmYMSGAaYye7W5uNDSz6l18z1HtWq1y3j20X5MEj5yIqmVxNCSHCPXUqy5hZdiiixOw/s1600/Bizay+Sonkar+Shashtri1.jpg" height="247" width="320" /></a></div>
विगत दिनों दुर्ग में आयोजित एक कार्यक्रम में हिन्दू जीवन दृष्टि एवं पर्यावरण विषय पर प्रकाश डालते हुए वक्ता डॉ.सच्चिदानंद जोशी, कुलपति, कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर नें कहा कि हमारी हिन्दू संस्कृति में विशिष्ठ वैज्ञानिक एवं पर्यावरणीय चिंतन है. वैज्ञानिक जिस गॉड पार्टिकल की अवधारणा को सिद्ध कर रहे हैं उसे हमारे वेदो नें सदियों पहले ही सिद्ध कर लिया था. उन्होंनें हिन्दू जीवन पद्धति को विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ जोड़ते हुए बताया कि वेदों में तमाम बातें कही गई हैं जिसे विज्ञान अब सिद्ध कर रहा है. उन्होंनें अलबर्ट आंइन्टांईन को कोट करते हुए कहा कि कोई भी विज्ञान धर्म के बिना लंगड़ा है और कोई भी धर्म विज्ञान के बिना अंधा. सभा को संबोधित करते हुए बिरसराराम यादव नें गांव में बादल गरजने पर सब्जी काटने वाले हसिये को आंगन में फेंकने की परम्परा का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारी भारतीय पारंपरिक ज्ञान में विज्ञान समाहित है. हमारे चिंतन और व्यवहार का आधर पूर्ण वैज्ञानिक है.</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_Pr_zDqujVIlt6F3VkTLh8hXKKoQzsUx1RQbm6PQ2cuIhRPFY5f6aFb6cf8c16ekYKGHm4zW1Fgxnldi9vuK0_DtJ3cQC-vMoIUuhBJzmDeaFltv-DLrvcOVEdS6dWG7WJcFwu0ZuS7g/s1600/Vijay+Sonkar+Shashtri1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_Pr_zDqujVIlt6F3VkTLh8hXKKoQzsUx1RQbm6PQ2cuIhRPFY5f6aFb6cf8c16ekYKGHm4zW1Fgxnldi9vuK0_DtJ3cQC-vMoIUuhBJzmDeaFltv-DLrvcOVEdS6dWG7WJcFwu0ZuS7g/s1600/Vijay+Sonkar+Shashtri1.jpg" height="247" width="320" /></a>इसी बात को आगे बढ़ाते हुए 'हिन्दू जीवन दृष्टि एवं वेद व विज्ञान' विषय पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए डॉ.बिजय सोनकर शास्त्री, अखिल भारतीय प्रवक्ता भारतीय जनता पार्टी नें कहा कि सूर्य और चंद्र की दूरी वैज्ञानिकों नें यदि नहीं नापी होती तो क्या हमारे वेदों में दी गई सूर्य चंद्र की दूरी की सत्यता की जांच हो पाती. उन्होंनें वैज्ञानिकों से आहवान किया कि वे और शोध करें ताकि हमारे वेदों की प्रामाणिकता सिद्ध हो. उन्होंनें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए बताया कि हिन्दू जीवन पद्धति पूर्ण वैज्ञानिक है. हमारी पूजा पद्धति, रीति रिवाज, व्रत त्यौहार सब का वैज्ञानिक आधार है. भारत में कभी भी सामाजिक विषमता नहीं थी, मुस्लिम आक्रांताओं एवं अंग्रेजी फूट डालो की रणनीति नें हमारी संस्कृति पर बार बार आक्रमण किए हैं जिससे कि हमारा समाज बिखरने लगा. उन्हानें भारतीय संस्कृ्ति को सदैव जोड़ने वाला बताया, दलितों की उत्पत्ति के संबंध में उन्होंनें दावे से कहा कि सन् 1800 से पहले भारत में दलित थे ही नहीं, भारत में विदेशी आंक्रांताओं नें दलित पैदा किए. उन्होंने रामायण की पंक्ति ढोर गवांर की तथ्यपरक व्याख्या करते हुए अधिकारी शव्द का अर्थान्वयन किया. यानी ताड़ना देने का अधिकार इन पांचों के पास है.<br />
<br />
उन्होंनें एकलव्य कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि एकलव्य नें गुरू द्रोण से अर्जुन के समान होने का वरदान मांगा था. एकलब्य नें प्रत्यक्षत: इस बात को झुठला दिया था कि पृथ्वी में अर्जुन के समान धनुर्धर कोई नहीं है. किन्तु अर्जुन सब्यसांची धर्नुधर था अर्थात अर्जुन बांयें हांथ की उंगलियों और अंगूठे से धनुष की प्रत्यंचा में तीर चलाता था. एकलब्य दाहिने हाथ की उंगलियों और अंगूठे से धनुष की प्रत्यंचा में तीर चलाता था. द्रोण नें एकलव्य का अंगूठा लेकर उसे अर्जुन के समान सव्यसांची बनाया. इसके अतिरिक्त भारत में दलित, त्यौहार-पर्व-उत्सव में अंतर, मोक्ष-मुक्ति का अर्थ, हिन्दू की परिभाषा आदि विषयों को भी उन्होंनें सहज ढंग से समझाया.</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje03xr3S6hadq8UdsOa7y1HgXrcrYAhUHn1e7TN-eMEFlflWHowYhUAp_Fem5pnk4AurvT6R2_LuOWnTcGE4RLgLoEVLJUZ0t4GLWzl4ylerWu7u7YbvAvc-vb-pIUwuQhiIzJ_CckVIM/s1600/Santosh+Golechha.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje03xr3S6hadq8UdsOa7y1HgXrcrYAhUHn1e7TN-eMEFlflWHowYhUAp_Fem5pnk4AurvT6R2_LuOWnTcGE4RLgLoEVLJUZ0t4GLWzl4ylerWu7u7YbvAvc-vb-pIUwuQhiIzJ_CckVIM/s1600/Santosh+Golechha.jpg" height="232" width="320" /></a>कार्यक्रम के आयोजक टोटल लाईफ फाउन्डेशन के अध्यक्ष एवं समाज सेवी संतोष गोलछा नें कहा कि हमारी सांस्कृतिक परम्परा, उत्सव एवं त्यौषहार में प्रकृति की अहम भूमिका है. वसुधैव कुटुम्बकम की हमारी अवधारणा ही संपूर्ण वसुधा को व्यापक दृष्टि से एक कुटुम्बं के रूप में प्रस्तुत करती है. हिन्दू संस्कृति हमें नैतिकता सिखा कर हमें मानव बनाती है जिसके कारण ही हममे प्रेम और सहिष्णुता के गुणों के साथ ही आत्म स्वाभिमान का भाव जागृत होता है। उन्होंनें वेद की प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लिए हनुमान प्रसंग में आए ‘युग सहत्र योजन पर भानु’ को विश्लेषित करते हुए कहा कि इस पद में आए सूर्य की दूरी वर्तमान में वैज्ञानिकों के द्वारा सिद्ध किए गए दूरी से पूरी तरह मिलती है. इस तरह से हमारे वेद पूरी तरह से प्रामाणिक हैं। उन्होंनें भारतीय परम्पराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि एक दूसरे को सहयोग करने की रीति भारत में रही है। राजा प्रजा को पुत्र की भांति स्नेह करता था और प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति भी देता था इसीलिए भारतीय सनातन परम्परा में प्रजा के द्वारा राजा के विरूद्ध के कभी विद्रोह नहीं हुए।</div>
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Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-15878055360386800592014-07-16T05:54:00.000-07:002014-07-16T05:54:11.742-07:00कविता में शब्दों का निहितार्थ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">कविता में शब्दों का निहितार्थ क्या है, कैसा है ? यह सोंचना कवि का काम नहीं है, पाठक अपनी मति के अनुसार से इसे ग्रहण करता है। ‘निपटाने‘ का आप चाहे जो भी अर्थ निकालें, पूर्व प्रधान मंत्री एवं भाजपा के शीर्ष मा. अटल बिहारी बाजपेयी के दांत अब झड़ गए हैं। नीचे दी गई बहुचर्चित पंक्तियों के रचनाकार ख्यातिलब्ध अंतर्राष्ट्रीय कवि पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे जी भाजपा शासित राज्य में भी सत्ता के केन्द्र में रहे और कान्ग्रेस के समय में भी सत्ता के कृपा पात्र बने रहे। पीठ पीछे इनका विरोध भी हुआ, इन्हें निपटाने वाले कई आए कई गए, सब निपटते रहे। दुबे जी 'अपन दाढ़ी म अंगरी धरे बइठे रहे,' उनको निपटाना आसान नहीं रहा। पिछले कई वर्षों से दुबे जी छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग के सचिव के पद पर आसीन हैं। विश्व के लगभग सभी प्रतिष्ठित देशों में वे कविता पाठ कर चुके हैं, अभी अभी अमरीका से कविता पाठ कर लौटे हैं, उन्होंनें बराक ओबामा के लिए भी कविता लिखी है और उनकी कविताओं को बराक ओबामा नें भी पसंद किया है। वामपंथियों को यह चारण लगे दक्षिणपंथियों को शौर्य गान लगे, इन सबकी परवाह किए बगैर वे राजभाषा आयोग की अगली पारी के लिए तैयार हैं। शब्दों के इस बाजीगर को हमारा सलाम!!</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGJuhpMn0ca4rmuK0uVP8_Tcb_oqpQtNEY9hVwsiqqnaBCaRq1-p33Va-OenU8jyPnD3ct6VoKXyozogZHjtktPTanEB3jhsSo73axBL6NvNWGOm-NIxfhcL5SefORhX6O_wUEa8LW-6w/s1600/Dr_Surendra_Dubey.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGJuhpMn0ca4rmuK0uVP8_Tcb_oqpQtNEY9hVwsiqqnaBCaRq1-p33Va-OenU8jyPnD3ct6VoKXyozogZHjtktPTanEB3jhsSo73axBL6NvNWGOm-NIxfhcL5SefORhX6O_wUEa8LW-6w/s1600/Dr_Surendra_Dubey.png" height="200" width="162" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अटल बिहारी हमर कका ये</div><div style="text-align: justify;">फेर कोनों नइ ये काकी।</div><div style="text-align: justify;">कतको झन जय ललिता, ममता बेनर्जी</div><div style="text-align: justify;">आवत हें जावत हें</div><div style="text-align: justify;">कका सबला निपटावत हे।।</div><div style="text-align: justify;">(पद्म श्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे)</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-47807437501141987442014-07-16T05:42:00.000-07:002014-07-16T05:42:07.055-07:00बस्तर : घोटुल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">लिंगो पेन के भावनाओं के घोड़े <br />
थम से गए है<br />
जम गए हैं खदानों से उड़ते धूल<br />
अट्ठारह वाद्यों में <br />
गुम गए है आख्यान<br />
आदिम गीतों में <br />
शहर के पगधूलि नें कर <br />
दिया है अपवित्र <br />
पवित्र घोटुल को <br />
प्रकृति का स्वर्गीय आनन्द<br />
जहॉं अब कोई नहीं पाता.<br />
अब चेलिक और मोटियारी <br />
हाथों में हाथ ले<br />
नहीं गाते रेला<br />
नहीं उठते पैर <br />
नृत्य के लिए <br />
बेलौसा नहीं सिखाती प्यार<br />
सरदार नहीं लगाता कोई जुर्माना<br />
अब मुरिया बच्चों के लिए<br />
खुल गए हैं स्कूल<br />
जहॉं मास्टर नहीं आता.<br />
<br />
... <b>तमंचा रायपुरी</b></div><div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58/posts/10152129817113118" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58/posts/10152129817113118">Post</a> by <a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58">संजीव तिवारी</a>.</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-68091876655496488502014-07-16T05:40:00.004-07:002014-07-16T05:40:45.415-07:00बस्तर : रिसता खून<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">पता नहीं कौन सा साल था वह, बचपन में उम्र क्या थी पता नहीं, वक्त भी पता नहीं, पर उजाला था आसमान में. उनींदी आंखों जब खुली तो सिर में खुजली हो रही थी. हाथ जब बालों में गई तो दर्द हुआ सिर में, दर्द हुआ उंगलियों में, कुछ चिपचिपा महसूस हुआ. झट बालों से बाहर निकले उंगलियों को जब अंगूठे नें छुआ, तो फिर दर्द हुआ. अंगूठे नें महसूस किया, आंखों नें देखा, चिपचिपे द्रव के साथ. कांछ उंगलियों में, सिर में, शरीर में, बाबूजी, दीदी के कपड़ों पर, बस में, चारो तरफ बिखरे थे. बाबूजी के सिर से भी खून बह रहा था पर उन्होंनें मुझे हिफाजत से पकड़ा था. बाहर पेंड ही पेंड, कुछ में लटो में आम, शायद जंगल था. नीचे गहरी खाई, बस का एक पहिया हवा में. पेंड से टकरा गई थी बस, खिड़कियों के शीशे हमारे शरीरों में चुभते हुए बिखर गई थी सड़क पर. बाबूजी नें कहा था एक्सीडेंट हो गया!. मेरे सिर के बालों में घुसे महीन कांछ के तुकड़े, बूंद बूंद खून सिरजा रहे थे. उंगलिंयॉं बार बार सिर खुजाने को बालों की ओर लपकती और बाबूजी मेरा हाथ रोक देते. एक बड़ा तुकड़ा भी गड़ गया था सिर में. दर्द से, जाहिर है, मेरे आंसू निकल रहे थे और मुह से नाद. अगले कुछ पलो में बस से सब अपना अपना सामान लेकर उतर गए. नीचे सड़क पर कांछ के साथ बस के आस पास बिखरे थे आम. बाबूजी के एक हाथ में भारी बैग दूसरे में मेरा हाथ. मैं दर्द भूलकर आम उठाने झुका और एक आम उठा भी लिया. बाबूजी नें अपने बंगाली के कंधे से सिर से आंख में बहते हुए खून को पोंछा और मुझे एक भद्दी सी छत्तीसगढ़ी गाली दी. मर रहे हैं और तुझे आम सूझा है. उन्होंनें शब्दों को आगे जोड़ते हुए कहा, तब तक मेरे खून सने हाथों नें आम को मुह तक पहुचा दिया था. दूसरी बस कब आई, कब हम जगदलपुर पहुंचे, मुझे नहीं पता.</div><br />
<div style="text-align: justify;">किन्तु आज भी, जब कभी भी, बस्तर के जंगलों में हो रहे मार काट में किसी मानुस के खून बहने की खबर, समाचारें लाती है. मेरी उंगलियॉं मेरे सिर के बालों में अनायास ही चली जाती है. उंगलियॉं महसूसती है, चिपचिपा रिसता खून, और सिर में दर्द होने लगता है. </div><div style="text-align: justify;">.. तमंचा रायपुरी.</div></div><div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58/posts/10152133987983118" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58/posts/10152133987983118">Post</a> by <a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58">संजीव तिवारी</a>.</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-32081524695661573272014-07-16T05:35:00.000-07:002014-07-16T05:35:12.794-07:00छत्तीसगढ़ी प्रभात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">छत्तीसगढ़ी में 'सुकुवा उवत' मतलब लगभग चार बजे सुबह, ब्रम्ह मुहूर्त, जब शुक्र तारे का क्षितिज में उदय हो। अब घडी आगे बढ़ी और 'कुकरा बासने' लगा यानी मुर्गे ने बाग दिया, लगभग पाँच बजे सुबह। इसके बाद 'मुन्धर्हा' और 'पहट ढीलात', सुबह का धुंधलका और पशुओं को चराने के लिए ले जाने का समय। मेरा अनुभव यह रहा है कि सबेरे के पहट में दूध देने वाले पशु को ग्वाले ले जाते हैं फिर उन्हें वापस कोठे में लाकर दूध दुहते हैं। इन शब्दों के साथ ही 'बेरा पंग पंगात' का उपयोग सूर्योदय के ठीक पहले के उजास के लिए होता है। छत्तीसगढ़ी में सुबह के लिए प्रयोग होने वाले शब्दों को जोड़ते हुए पिछले दिनों मैंने एक स्टैट्स अपडेट किया था। उस पर कुछ चर्चा करने के उद्देश्य से उन्हीं शब्दों को फिर से रख रहा हूँ। कहीं कुछ असमानता हो तो बतावें। बेरा बिलासपुर मे पंग पंगाते हुए..</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;">19.06.2014</div></div><div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10152484178813118&set=a.10150627270243118.415355.798823117&type=1" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10152484178813118&set=a.10150627270243118.415355.798823117&type=1">Post</a> by <a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58">संजीव तिवारी</a>.</div></div><br />
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-40376843033839763802014-07-16T05:31:00.001-07:002014-07-16T05:31:13.958-07:00दलित विमर्श ... द्वन्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">दलित साहित्य और दलित विमर्श का विषय हमारे जैसे अल्पज्ञों के समझ से अभी दूर है। फिर भी थोडा बहुत जो अध्ययन है उसके अनुसार से यह प्रतीत होता है कि इस विषय को वामपंथ ने 'हैक' कर रखा है। इस विषय पर दक्षिणपंथ का या तो ज्यादा योगदान नहीं है या फिर उनके लेखन को जानबूझ कर हासिए पर धर दिया गया है। इस पर आप का क्या विचार है ?</div><br />
<div style="text-align: justify;">मेरे इस प्रश्न का उत्तर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता, पूर्व सांसद, विचारक एवं लेखक डॉ.विजय सोनकर शास्त्री ने विभिन्न उदाहरणों के साथ विस्तार से दिया। उनकी बातों में से कुछ कड़ियाँ रिकार्ड हो पाई जिसमे से एक, यह कि, आधुनिक समय में वेद पर तर्क से ज्यादा कुतर्क हुए। दूसरा यह कि, मुस्लिम आक्रमणकारियों, शासको और अंग्रेजो नें तथाकथित दलित समाज का बीज अपने स्वार्थ के कारण बोया। और तीसरा यह कि, कागजो में दलित विमर्श करने के बजाय दलितों की समस्याओं को दूर करने, उन्हें मुख्य धारा में लाने का प्रयास होना चाहिए।</div><br />
<div style="text-align: justify;">डॉ. शास्त्री ने वेद, विज्ञान, समरस समाज सहित दलित समाज पर बीसियों ग्रन्थ लिखे हैं। कल दुर्ग में हमारी संस्था टोटल लाइफ़ फाउंडेशन के द्वारा आयोजित एक अखिल भारतीय व्याख्यान में वक्ता के रूप में वे आमंत्रित थे। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ.सच्चिदानंद जोशी, कुलपति पत्रकारिता वि.वि.रायपुर थे जिन्होंने प्रकृति, पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर सारगर्भित वक्तव्य दिया। डॉ. जोशी एवं डॉ.शास्त्री के व्याख्यान पर चर्चा फिर कभी।</div><br />
<div style="text-align: justify;">अभी यह कि, दोपहर डॉ.शास्त्री के साथ दुर्ग पत्रकार संघ का प्रेस वार्ता हुआ। वार्ता के अंत में एक तिलकधारी पत्रकार नें मुझसे डॉ.शास्त्री का पूरा नाम पूछा। मैंने बताया, वो 'सोनकर' पर अटक गए। मैंने उनके सम्बन्ध में जब संक्षिप्त परिचय दिया तो वे 'शास्त्री' पर व्यंग मुस्कान बिखेरते हुये, 'खटिक' को स्थापित करते रहे। उनकी घडी स्वल्पाहार तक उसी शब्द पर अटकी रही। हालाँकि, किसी भी पत्रकार नें उसकी बातों को तूल नहीं दिया .. किन्तु .. दलित विमर्श ... द्वन्द जारी रहा। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">तमंचा रायपुरी</div></div><div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10152524641068118&set=a.10150627270243118.415355.798823117&type=1" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10152524641068118&set=a.10150627270243118.415355.798823117&type=1">Post</a> by <a href="https://www.facebook.com/sanjeeva.tiwari.58">संजीव तिवारी</a>.</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-75444471266894566742014-07-16T05:17:00.001-07:002014-07-16T05:19:37.822-07:00फेसबुक व ट्विटर में सक्रिय छत्तीसगढ़ी भाषा भाषी साथियों से एक विनम्र अपील<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">साथियों यह खुशी की बात है कि देखते ही देखते छत्तीसढ़ी भाषा के प्रेमी फेसबुक व ट्विटर एवं अन्य सोशल नेटवर्किंग माध्यमों में सक्रिय हो रहे हैं। आपकी उपस्थिति से इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रचार प्रसार बढ़ा है एवं अपनी मातृभाषा के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है। देखनें में यह आ रहा है कि हम अपनी अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा में फेसबुक व ट्विटर के द्वारा बखूबी अभिव्यक्त कर रहे हैं किन्तु फेसबुक व ट्विटर के साथ एक समस्या है कि यह दीर्घकालीन माध्यम नहीं है। यहॉं प्रस्तुत अभिव्यक्ति आपसे जुड़े लोगों तक सीमित पहुंच में है।</div><br />
<div style="text-align: justify;">आप अपनी अभिव्यक्ति मुफ्त उपलब्ध साधन ब्लॉग के द्वारा प्रस्तुत करें एवं उसका लिंक फेसबुक व ट्विटर आदि में देवें इससे यह होगा कि आपकी अभिव्यक्ति का दस्तावेजीकरण होगा एवं रचनाऍं सर्चइंजन के माध्यम से इच्छुक पाठकों तक पहुच पायेंगी। इससे इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी साहित्य का भंडारन भी होता जायेगा जो आगामी पेपर लेस दुनिया के लिए उपयोगी होगा।</div><br />
<div style="text-align: justify;">आप स्वयं महसूस कर रहे होंगें कि छत्तीसगढ़ी साहित्य का प्रिंट वर्जन जन सुलभ नहीं है। हम आप अपनी रचनाओं का संग्रह 100-500 प्रतियों में छपवाते हैं और उसे छत्तीसगढ़ी के ज्ञात रचनाधर्मियों को मुफ्त में बांट देते हैं। इस प्रकार हमारी रचनाऍं उन प्रतियों की संख्याओं तक ही सीमित हो जाती है एवं उनका आंकलन भी उन्हीं संख्या के पाठकों तक हो पाता है। ऐसे में संभव है कि हमारी रचनाओं का उचित आंकलन मठाधीशी व पूर्वाग्रहों के कारण ना हो पाये। </div><br />
<div style="text-align: justify;">यदि आप अपनी रचनाऍं नेट में ब्लॉग के माध्यम से भी प्रस्तुत करेंगें तो निश्चित है कि आगामी पेपर लेस जमाने में कम से कम शोध छात्र को अवश्य फायदा पहुचेगा एवं नयी पीढ़ी के सामने साहित्य का समग्र रूप छुप ना सकेगा। हो सकता है कि यह बातें अभी कपोल कल्पना लगे किन्तु यह शाश्वत सत्य है।</div><br />
<div style="text-align: justify;">इस बात की महत्ता को स्वीकार करते हुए पूर्व से ही ललित शर्मा, सुशील भोले, जनकवि कोदूराम दलित जी के पुत्र अरूण कुमार निगम, जयंत साहू, राजेश चंद्राकर, संतोष चंद्राकर, डॉ.सोमनाथ यादव, मथुरा प्रसाद वर्मा, शिव प्रसाद सजग आदि इत्यादि अपनी छत्तीसगढ़ी रचनाओं के साथ इंटरनेट में सक्रिय हैं। </div><br />
<div style="text-align: justify;">अत: आपसे अनुरोध है कि शीध्र ही अपना छत्तीसगढ़ी भाषा के रचनाओं के लिए एक ब्लॉग बनायें एवं अपनी रचनाऍं उसमें अपलोड करें।</div><br />
<div style="text-align: justify;">जय छत्तीसगढ़, जय भारत।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">संजीव तिवारी.</div></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4187007080337612372.post-27363179964767031932014-07-16T05:05:00.000-07:002014-07-16T05:09:43.891-07:00एक ठो अउर राजधानी नामा: बौद्धिकता का पैमाना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 13pt; line-height: 115%;">हमारे पिछले फेसबुक स्टेट्स ‘<a href="https://www.facebook.com/tiwari.sanjeeva/posts/10152389620288118" target="_blank">पवित्र उंगलिंयॉं</a>‘ में कमेंटियाते हुए <a href="http://ummaten.blogspot.in/" target="_blank">प्रो.अली सैयद</a> नें हमारी पर्यवेक्षणीयता की सराहना की थी. हम भी सोंचें कि ऐसा कैसे हुआ, व्यावसायिक कार्य हेतु दिल्ली, ट्रेन से आना जाना तो लगा रहता है पर ऐसी पर्यवेक्षणीयता हर बार नहीं होती. बात दरअसल यह थी कि मोबाइल चोरी चला गया था, ना कउनो फेसबुक, ना ब्लॉग पोस्ट, ना मेल सेल, ना एसएमएस, ना गोठ बात. तो कान आंख खुले थे जब किटिर पिटिर करने को मोबाईल ना हो तो, खाली मगज चलबे करी.</span></div><br />
<div style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">त हुआ का कि, हमारे सामने के सीट म एक नउजवान साहेब बइठे रहिन. टीटी टिकस पूछे त, बताईन हम रेलवे के साहब हूं. हम देख रहे थे, बिल्कुल साहेब जइसे दिख भी रहे थे. हमने सोंचा भले साहब की रूचि हम पर ना हो फिर भी समें काटे खातिर उनसे बात शुरू की जाए. बाते म पता चली कि साहेब भारतीय रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के अधिकारी हैं, झांसी में पदस्थ हैं, नाम है अहमद, लखनउ के हैं. </span></span></span></div><br />
<div style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtvO9hxKwSJht9kZB2h9lYxeQXQntJ74tUllSl81KI0Dp-NbqlHwMi-6j0U4kLMXFWkg0Onkc_woNNfsgwHH__m4P95Hbl-SWY8rPSrHHXcz1m6xcCITn05vbWD8PnY9wu0s72j2vRvBlU/s1600/pravin+pandey.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtvO9hxKwSJht9kZB2h9lYxeQXQntJ74tUllSl81KI0Dp-NbqlHwMi-6j0U4kLMXFWkg0Onkc_woNNfsgwHH__m4P95Hbl-SWY8rPSrHHXcz1m6xcCITn05vbWD8PnY9wu0s72j2vRvBlU/s1600/pravin+pandey.jpg" /></a><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">अहमद साहेब के रौब दाब देख के हमहू बताए दिए के बंगलोर में हमारे भी मित्र है, रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के साहब हैं. अहमद साहब हमारा मन रखने के लिए पूछे के, ‘का नाम है, आपके मित्र का.‘ हमने बताया ‘<a href="http://www.praveenpandeypp.com/" target="_blank">प्रवीण पाण्डेय</a>.‘ सामने बइठे अहमद साहब तनि चकराए. अब उनकी आवाज से लगा के कउनो तवज्जो दीन है साहब नें. अहमद साहेब खुश होकर बताने लगे के ‘प्रवीण पाण्डेय साहब तो झांसी में रहे हैं. हमसे सीनियर पोस्ट में थे, बड़ा नाम है साहब का झांसी में, कड़क और इमानदार साहब हैं.‘ हमसे पूछा कि ‘आपसे कइसे पहचान है.‘ </span></span></span></div><br />
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">हम सोंचे बड़ बुडबक है यार उ पांडे हम तेवारी ऐतना नइ बुझाता. फिर खामुस खा गए. थूंक घुटके फिर बोले ‘उ बड़ा उम्दा हिन्दी ब्लागर हैं और हम भी ब्लॉगर हैं एइ कारन पहचान है.‘ अहमद साहेब नें दूसरा क्बेसचन दागा, ‘मतलब आपका ये टिकट पाण्डेय साहब के अप्रोच से कनफर्म हुआ है.‘ हम चकराए कि इनको कईसे पता चला कि अपरोच से टिकट कनफर्म हुआ. कने लगे, ‘लिस्ट में आपके नाम के आगे एच. ओ. लिखा है, दो दिन पहले बना टिकट कहीं इन दिनों बिना अपरोच के कनफर्म होता है भला.‘ हमने कहा ‘अरे नहीं भाई, ई तो हमारे कलाईंटें न कटवाया है, कउनो मंत्री संत्री से करवाए होंगें कनफर्म. हमको नइ पता.‘ उन्होंनें कहा ‘ओह!‘</span></span></span></div><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"> </span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">इसी बात पर अहमद साहब नें टिकट कनफर्म कराने आने वाले मित्रों और रिश्तेदारों के फोन की कथा सुनाई और अपनी बेबसी का खुलासा किया. हमने भी कहानियों को सुनते हुए उन्हीं की तरह बार बार बोला ‘ओह!‘</span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">तब तक अहमद साहब प्रवीण पाण्डेय जी का ब्लॉग ‘न दैन्यं ना पलायनम‘ माबाईल में ढूंढ निकाले थे और प्रशन्नता से बांचने लगे... खामोशी. </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">कुछ देर बाद हमें लगा के इन पर अब अपना रौब दाबा जाए. हमने बताया के ‘हमहू हिन्दी ब्लॉगर हैं अउर हमारी भी वैश्विक पहचान है. फलां फलां सम्मान मिला है, ये है, वो है, माटी वाले हैं, कुल मिला कर हम हम हैं.‘ </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">‘वाह भई!‘ तब तक अहमद साहब हमारा ब्लॉग भी मोबाईल में चाप लिए थे. आपके ब्लॉग में तो दूसरों के भी पोस्ट हैं. हम तनि झेंपियाते हुए बोले ‘का है ना कि हम आजकल बहुत बियस्त रहते हैं इस कारन पोस्ट नहीं लिख पाते...‘ ये तो गनीमत था कि अहमद साहब ब्लॉगर नहीं थे नहीं तो हमारी वैश्विक पहचान दुई मिनट में धूल में मिल जाती, हालांकि एसी कूपे में मिलाने लायक धूल नहीं थी इस बात का भी सकून था. उनके हाव भाव से पता चल रहा था कि हमारे बताने के बावजूद वे हमें असामान्य कतई नहीं मान रहे थे जबकि हम अपनी वैश्विकता सिद्ध करना चाह रहे थे. </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">बात ना बनते देख हमने एक चांस अउर लिया. हमने उन्हें बताया कि ‘इलाहाबाद में हमारे एक और पहचान के हैं. रेलवे में बड़का पोस्ट में है, नाम है उनका <a href="http://halchal.org/" target="_blank">ज्ञानदत्त पाण्डेय</a>.‘ अहमद साहब उपर पंखे की ओर देखते रहे, लगा वे उसकी रफ़तार बढ़ाना चाह रहे थे. </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9bdUfJZSIvLGR7eq2tzaxkxsLgQupDuCV16YjS-4jS2yDrVzuVCuBb7T5-pJTzOm-_x2j_7oKZ8hnAOEMm3DraHpmI4Cel2DIZVd9-fKANUkpW9gqykM2FGCjgeFYQ6FbO422aIPYUc1G/s1600/Gyan+Dutt+Pandey.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9bdUfJZSIvLGR7eq2tzaxkxsLgQupDuCV16YjS-4jS2yDrVzuVCuBb7T5-pJTzOm-_x2j_7oKZ8hnAOEMm3DraHpmI4Cel2DIZVd9-fKANUkpW9gqykM2FGCjgeFYQ6FbO422aIPYUc1G/s1600/Gyan+Dutt+Pandey.jpg" /></a><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">हमने आगे बताया कि ‘वे मालगाड़ी परिवहन से संबंधित विभाग में बड़का साहेब हैं.‘ अहमद साहब नें कहा कि ‘वो कोई बड़ा पोस्ट नहीं होता.‘ बात गिरते देखकर हमने कहा कि ‘नइ जी, बड़े पोस्ट में हैं, बिट्स पिलानी के ग्रेजुएट हैं, सीनियर हैं.‘ अहमद साहब झट इलाहाबाद फोन लगा लिए. पूछने लगे ‘किसी ज्ञानदत्त पाण्डेय को जानते हो.‘ उधर से आ रही आवाजों को हम अहमद के आंखों की चमक से सुनने लगे. फोन बंद करने के बाद अहमद साहब नें मुस्कुराते हुए बताया कि ‘ज्ञानदत्त पाण्डेय जी चीफ आपरेटिंग मैनेंजर हैं अब गोरखपुर में हैं.‘ उन्होंनें स्वीकारा कि वे बहुत बड़े पोस्ट में हैं, दिल को सूकूं मिला. </span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">आगे अहमद साहब नें बताया कि जिनको उन्होंनें फोन किया था वे ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की काफी प्रशंसा कर रहे थे, कह रहे थे कि ‘बहुतै अच्छे अदमी हैं, कबि हैं मने गियानी हैं..‘</span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;">बातों बातों में झांसी टेसन आ गया, अहमद साहब हाथ मिलाकर दरवाजे की ओर चले गए. हम भी दुर्ग उतर गए, फिन अब तक सोंच रहे हैं. ज्ञानदत्त जी तो गद्यकार हैं, उनके कवि होने की जानकारी हमें नहीं है. संभवतः सामने वाले नें कवि होने का मतलब बौद्धिकता से लगाया होगा, मने बौद्धिकता का पैमाना कविता है.</span></div></span> <div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: 13pt; line-height: 115%;"><b>संजीव तिवारी </b></span></div></span> </span><br />
<div id="fb-root"></div><script>(function(d, s, id) { var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0]; if (d.getElementById(id)) return; js = d.createElement(s); js.id = id; js.src = "//connect.facebook.net/hi_IN/all.js#xfbml=1"; fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs); }(document, 'script', 'facebook-jssdk'));</script><br />
<div class="fb-post" data-href="https://www.facebook.com/tiwari.sanjeeva/posts/10152392868218118" data-width="466"><div class="fb-xfbml-parse-ignore"><a href="https://www.facebook.com/tiwari.sanjeeva/posts/10152392868218118">पोस्ट करें</a> by <a href="https://www.facebook.com/tiwari.sanjeeva">संजीव तिवारी</a>.</div></div></div>यह पोस्ट मेरे ब्लॉग आरंभ में <a href="http://aarambha.blogspot.in/2014/05/blog-post_9.html">यहॉं</a> भी है. </div>Unknownnoreply@blogger.com