छत्तीसगढ के शक्तिपीठ – 1

शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय पथ पर बढते राजा अन्नमदेव के कानों में नूपूर की ध्वनि आनी बंद हो गई । वारांगल से पूरे बस्तर में अपना राज्य स्थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्वनि के सहसा बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखने लगे ।
माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था । अन्नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्वप्न सा ही था । माता नों कहा 'अन्नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं ।'
राजा अन्नमदेव के अनुनय विनय पर माता नें वहीं पर अपना अंश स्थापित किया और राजा नें वहीं अपने विजय यात्रा को विराम दिया ।
डंकिनी-शंखनी के तट पर परम दयालू माता सती के दंतपाल के गिरने के उक्त स्थान पर ही जागृत शक्तिपीठ, बस्तर के राजा अन्नमदेव की अधिष्ठात्री मॉं दंतेश्वरी का वास है ।
(कथा पारंपरिक किवदंतियों के अनुसार)
संजीव तिवारी
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