बस्‍तर की देवी दंतेश्‍वरी

छत्‍तीसगढ के शक्तिपीठ – 1
बस्‍तर के राजा अन्‍नमदेव वारांगल, आंध्रप्रदेश से अपनी विजय पताका फहराते हुए बस्‍तर की ओर बढ रहे थे साथ में में मॉं दंतेश्‍वरी का आशिर्वाद था । गढों पर कब्‍जा करते हुए बढते अन्‍नमदेव को माता दंतेश्‍वरी नें वरदान दिया था जब तक तुम पीछे मुड कर नहीं देखोगे, मैं तुम्‍हारे साथ रहूंगी । राजा अन्‍नमदेव बढते रहे, माता के पैरों की नूपूर की ध्‍वनि पीछे से आती रही, राजा का उत्‍साह बढता रहा ।

शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय पथ पर बढते राजा अन्‍नमदेव के कानों में नूपूर की ध्‍वनि आनी बंद हो गई । वारांगल से पूरे बस्‍तर में अपना राज्‍य स्‍थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्‍वनि के सहसा बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्‍नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखने लगे ।

माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था । अन्‍नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्‍वप्‍न सा ही था । माता नों कहा 'अन्‍नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं ।'

राजा अन्‍नमदेव के अनुनय विनय पर माता नें वहीं पर अपना अंश स्‍थापित किया और राजा नें वहीं अपने विजय यात्रा को विराम दिया ।

डंकिनी-शंखनी के तट पर परम दयालू माता सती के दंतपाल के गिरने के उक्‍त स्‍थान पर ही जागृत शक्तिपीठ, बस्‍तर के राजा अन्‍नमदेव की अधिष्‍ठात्री मॉं दंतेश्‍वरी का वास है ।

(कथा पारंपरिक किवदंतियों के अनुसार)

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...