परिभाषाओं के पुर्नमूल्‍यांकन का समय

छत्तीसगढ राज्य अपना स्थापना सप्ताह मना रहा है। राज्य की राजधानी, जिलों एवम जनपदों मेँ राज्य स्थापना का उल्लास, आयोजनोँ के रुप मेँ नजर आ रही है। ऐसे समय मे राज्य के आदि साहित्यकार पंडित सुंदरलाल शर्मा की स्मृति मे दिये जाने वाले सुंदरलाल सम्मान के संबंध मे एक शुभ सूचना प्राप्त हुई है।

इस वर्ष राज्य सरकार की और से दिया जाने वाला यह सम्मान छत्तीसगढ़ के जाने माने साहित्यकार श्री तेजिंदर गगन जी को दिया जायेगा। यह सम्मान उनके निरंतर साहित्य साधना एवं उनके प्रसिद्द उपन्यास काला पादरी को रेखांकित करते हुए दिया गया है। इस बात की खुशी है कि, सरकार ने तेजिंदर गगन जी के लेखन का सम्मान किया। यद्यपि साहित्य को सीमा विशेष मे बांधा नहीँ जाना चाहिए फिर भी इस सम्मान के पीछे जो उद्देश्य रहा है वह यह कि, सरकार चाहती है कि प्रति वर्ष छत्तीसगढ़ के एक साहित्यकार को सम्मानित किया जाए और उसे दो लाख रुपये का आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाय।

साहित्य बिरादरी मेँ इस पुरस्कार के चयन के संबंध मेँ पिछले तीन दिनोँ से लगातार काना फूसी चल रही थी। सरकार के द्वारा साहित्य के क्षेत्र में प्रदेश का सरदार, तेजिंदर गगन जी को घोषित किया जा रहा था वहीँ साहित्यिक गलियों में हमारे कुछ वरिष्ठ उन्हें असरदार बता रहे थे।

स्थानीय साहित्यिक बिरादरी में तेजिंदर गगन के चयन पर कुछ दबे जुबान पर तो कुछ स्‍पष्‍ट तौर पर विरोध जता रहे हैं। उनकी अपनी दलीलें हैं जिसमें उनका मानना है कि, तेजिंदर गगन जी छत्तीसगढि़या नहीं हैं। उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन छत्तीसगढ से बाहर व्यतीत किया, कभी छत्तीसगढ़ से जुड़े हों ऐसा साबित भी नहीं किया। वैचारिक रुप से समृद्ध माने जाने वाले कुछ साहित्यकारोँ के मुख से, तेजिंदर जी को गैर छत्तीसगढ़िया बताने के पीछे मूल कारण, छत्तीसगढि़या शब्द की निर्धारित परिभाषा है। वर्तमान समय मेँ इस परिभाषा को पुनर्व्याख्यायित करने की आवश्यकता है।

जब जब छत्तीसगढ़िया के रुप मेँ किसी को परिभाषित करने की स्थिति आती है तो इस पर पिछले कई सालों से लोगोँ के द्वारा आवाज उठाया जाता रहा है। इस पर ज्‍यादा विवाद में पड़े मैं समझता हूं कि, छत्तीसगढिया वे सभी हैं जो, छत्तीसगढ़ के निवासी हैं, छत्तीसगढ के हितों के लिए सोचते हैं और उनके दिलोँ मेँ छत्तीसगढ की धारा बहती है। .. और भी बातेँ हो सकती हे जो छत्तीसगढिया होने के आवश्यक शर्तों को सिद्ध करे।

यह सत्‍य है कि, इस पुरस्कार के मूल मेँ छत्तीसगढ आवश्यक है। किंतु हमारे जिन वरिष्‍ठ साथियों को यह लगता है कि, तेजिंदर जी छत्तीसगढिया नहीँ हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि, छत्तीसगढ़िया की परिभाषा का पुर्नमूल्‍यंकन करें। .. बहरहाल मौजा ही मौजा ...

तेजिंदर गगन जी को पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्‍मान के लिए मेरी ओर से अनेकानेक शुभकामनाए। जय हिंद ! जय छत्तीसगढ !

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...