गीतों की बस्ती बसाने वाले गीतकार : बसंत देशमुख

छत्तीसगढ़ के कवि एवं गज़लकार बसंत देशमुख व्यवहार और रचनाओं में सरल व सरस कवि थे. उन्होंनें हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लेखन कार्य किया. उनकी हिन्दी रचनायें देशभर में सराही जाती रही है, काव्यमंचों पर उनके गज़लों के काफी दीवाने थे. छंदबद्ध रचनाओं के हिमायती बसंत जी नें छत्तीसगढ़ी में गज़ल संग्रह भी निकाला. अपने काव्य संकलन 'मुखरित मौन' में उन्होंनें लिखा हैं 'मैंने साहित्य कि दुरूहता से परे हटकर आज के आम आदमी कि घुटन एवं पीड़ा को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करने की कोशिश की है.' यह सच है कि बसंत देशमुख की भाषा सहज और सरल थी जिसके कारण उनकी कवितायें सहजता से अभिव्यक्ति होती थी.

छत्तीसगढ़ की कला परम्पराओं एवं संस्कृति की धारा उनके हृदय में निरंतर बहती थी. नए बने प्रदेश छत्तीसगढ़ के विकास और छत्तीसगढ़ियों की खुशहाली के लिए वे हमेशा चिंतित रहते थे. सहजता उनका जीवन था, किन्तु सरलता के साथ ही विद्रूपों पर प्रहार करने के लिए उनकी लौह दृढता समय समय पर जागृत भी हो जाती थी. उन्होंनें इसे कविता में लिखा भी —

छत्तीसगढ़ के चावल से बना पोहा हूँ
कबीर की साखी हूँ तुलसी का दोहा हूँ
सीधा हूँ सरल हूँ पानी जैसा तरल हूँ
आग से पिघला हुआ भिलाई का लोहा हूँ

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित छोटे से ग्राम टिकरी में 11 जनवरी 1942 को बसंत पंचमी के दिन जन्में बसंत देशमुख जी विज्ञान स्नातक थे. पढ़ाई के बाद वे भिलाई इस्पात सयंत्र के सेवा से जुड़ गए. वहां वे निरंतर प्रगति करते हुए अनुसन्धान एवं नियंत्रण प्रयोगशाला से वरिष्ठ प्रबंधक के पद से सेवानिवृत हुए. सेवानिवृति के पश्चात् पूर्णरूपेण साहित्य सेवा में जुटे रहे.

बसंत देशमुख के साहित्य साधना में काव्य संग्रह मुखरित मौन, गीतों की बस्ती कंहाँ पर बसायें, सनद रहे, ग़ज़ल संग्रह धुप का पता, मुक्तक संग्रह लिखना हाल मालूम हो, छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल संग्रह अलवा जलवा आदि प्रकाशित हुए. इसके अतिरिक्त सैकड़ों काव्य रचनायें पत्र—पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, रेडियो टेलीवीजन पर प्रसारित हुए. मनोज प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें हिंदुस्थानी' में इनकी ग़जलें समाहित की गई. वाणी प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें दुष्यंत के बाद' में भी देशमुख जी की ग़जलें समाहित की गई. इनकी कवितायें बंगला भाषा में अनुदित भी हुई एवं 'अदल बदल' मासिक कोलकाता के अंकों में प्रकाशित हुई.

इंटरनेट में भी बसंत देशमुख की कवितायें संकलित है, काव्य संग्रह मुखरित मौन ब्लॉगर प्लेटफार्म में यहां  है. कविता कोश, हिन्दी समय एवं हिन्दी काव्य संकलन में भी इनकी कवितायें संकलित है.

लगातार सृजनशील एवं साहित्य के गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहने वाले, गीतों की बस्ती बसाने वाले गीतकार बसंत देशमुख जी यद्यपि 12.05.2013 को हमें असमय ही छोड़ कर चले गए किन्तु कवितायें आज भी जीवंत हैं—

जिनके माथे पर पसीना है, आँखों में पानी है
जिन्दगी जिनकी कविता है , मौत एक कहानी है।

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...