महात्मा गॉंधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विगत दिनों आयोजित हिन्दी ब्लॉग संबंधी कार्यशाला से संबंधित अनुभव के पोस्ट प्रतिभागियों के ब्लॉगों में प्रकाशित हो रहे हैं। सभी की अपनी अपनी दृष्टि और अभिव्यक्ति का अपना अपना अलग अंदाज होता है, धुरंधर लिख्खाड़ों में डॉ.अरविन्द मिश्र एवं अनूप शुक्ल नें सेमीनार को समग्र रूप से प्रस्तुत कर दिया है अन्य पोस्टों में भी लगभग सभी पहलुओं को प्रस्तुत किया जा चुका है, उन्हीं वाकयों को बार बार लिखने का कोई औचित्य नहीं है, इस कार्यक्रम में जिन ब्लॉगर साथियों से हमारी मुलाकात हुई उनके संबंध में कुछ कलम घसीटी मेरे नोट बुक में पोस्ट करने से बचे थे जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सबसे पहले मैं आप लोगों को बताता चलूं कि, मेरे इस कार्यशाला में जाने के पीछे तीन उद्देश्य थे। पहला, मैं महात्मा गॉंधी अंतरर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को देखना एवं वहॉं के साहित्य सृजन के लिए उर्वर वातावरण को महसूस करना चाहता था। दूसरा, इस कार्यशाला में उपस्थित होकर, आभासी मित्रों से मिलना चाहता था क्योंकि विश्वविद्यालय के पिछले ब्लॉगर सम्मेलनों में मैं चाहकर भी उपस्थित नहीं हो पाया था। तीसरा, मेरे छत्तीसगढ़ी के आनलाईन साहित्य संग्रह पोर्टल गुरतुर गोठ जैसे अन्य देशज भाषा के वेब पोर्टलों की आवश्यकता, उसकी उपयोगिता एवं देशज भाषा के साहित्य के अधिकाधिक पन्नों को आनलाईन करने हेतु ब्लॉगरों, छात्रों व विश्वविद्यालयों का आहवान करना चाहता था। इसमें से पहले दोनों उद्देश्यों की पूर्ति भलीभांति हुई, तीसरे के लिए चर्चा का समय नहीं मिल पाया। इस कार्यक्रम में हम अपने आभासी मित्रों से रूबरू मिले, जिन आभासी ब्लॉगरों से मुलाकात हुई उनके संबंध में कुछ बातें आप सबसे साझा करता हूँ।
इस कार्यक्रम के दूसरे दिन सेलेब्रिटी लेखिका, विचारक, ब्लॉगर मनीषा पांडे के दर्शन हुए। हिन्दी में 'बेदखल की डायरी' ब्लॉग लिख रहीं मनीषा के ब्लॉग पोस्टों को हम हिन्दी ब्लॉग के आरंभिक दिनों से पढ़ते रहे हैं। स्पष्टवादिता से लिखी गई इनके पोस्टों में झलकते इनके व्यक्तित्व से हम प्रभावित थे। मानस नें इनके ब्लॉग में लगे मासूम फोटो से इनके बिंदास लेखन का पहचान सेट कर लिया था। बाद के वर्षों में फेसबुक मे लम्बे लम्बे वैचारिक पोस्टों और उस पर अविराम बहसों नें मनीषा पाण्डेय की दबंग छवि को आत्मसाध किया। इनके ब्लॉग पोस्टों एवं फेसबुक वालों पर हमने कभी कोई टिप्पणी की या नहीं याद नहीं, बस बहसों को पढ़ते रहे। वैसे भी तीखी वैचारिक बहसों में उथली मानसिकता के टिप्पणियों का कोई औचित्य भी नहीं था इन कुछ वर्षों में इन्होंनें बहुतेरे मुद्दों पर बात की। खासकर स्त्री स्वतंत्रता पर इनकी बहसों नें स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की परिभाषा को बहुत विस्तार दिया जो नवउदार मासिकता के युवाओं एवं तकनीकि दक्ष परम्पराओं के पैरोकार, भूतपूर्व युवाओं के बीच विमर्श का महत्वपूर्ण दस्तावेज बनकर बार बार फेसबुक के नोटीफिकेशन में हाईलाईट हुआ। इन बहसों के अतिरिक्त इन्होंनें हमेशा अपने वाल पोस्टों में अनेक मान्य परम्पराओं पर चोट करते हुए अपनी बुलंद छवि एवं व्यक्तित्व को सार्वजनिक किया। इसमें इनकी, कथनी एवं करनी के दोगलेपन से दूर स्पष्टवादी छवि विकसित हुई। हम दूसरे दिन कार्यक्रम की समाप्ति के बाद वापस आ गए इस कारण व्यक्तिगत रूप से मनीषा पांडे से ज्यादा समय तक नहीं मिल सके। उपर लिखी गई पंक्तियॉं उनके संबंध में आभासी जगत के अनुभ से प्राप्त जानकारी मानी जावे।
यहॉं हिन्दी ब्लॉग के चर्चित व्यक्तित्व डॉ.अरविन्द मिश्र से भी मिलना हुआ। डॉक्टर साहब के ब्लॉग पोस्ट व इनकी धारदार टिप्पणियों से हमारे मन में इनकी विद्वत छवि पूर्व से ही अंकित थी। हमारे एक पोस्ट के संबंध में चर्चा करने के लिए इन्होंनें हमें फोन भी किया और इसके बाद संवाद स्थापित रहा। इनके बीच संवादों की कड़ी में प्रो.अली सैयद भी रहे जिनके कारण ही डाक्टर मिश्र से आत्मियता स्थापित हुई। इनसे वर्धा में मिलना मेरे लिए सुखकर था, मैं इनके समीप रहकर इनका स्नेह आर्शिवाद लेना चाहता था जो मुझे यहॉं प्राप्त हुआ। वर्धा में सभी नें इनके मिलनसार छवि का साक्षात्कार किया होगा, डॉ.अरविन्द मिश्र से कुलपति की आत्मीयता को देखकर खुशी हुई।

ब्लॉग की दुनिया के धुरंधर खिलाड़ी अविनाश वाचस्पति से मुलाकात करने की हमारी इच्छा बहुत दिनों से थी। दिल्ली के परिकल्पना सम्मान समारोह में मैं इनसे मिल नहीं पाया था। इनके सहज सरल शब्दों से लिखे गए ब्लॉग पोस्टों से आप सब परिचित ही हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग के संबंध में व व्यंग्य पर इन्होंनें किताबें भी लिखी है और इनके व्यंग्य आलेख लगातार पत्र पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। जहॉं तक मैंनें इन्हें समझा ये भौतिक व आभासी दोनों प्रकार के सोशल नेटवर्किंग के माहिर खिलाड़ी हैं। वर्धा में हसमुख, मिलनसार सभीपर आत्मीयता बरसाते अन्ना उर्फ मुन्ना भाई नें बिना स्वयं के मुख में मुस्कुराहट बिखेरे अपनी बातों से सबको हर पल मुस्कुरानें को विवश किया। मेरे रूम पार्टनर डॉ.अशोक मिश्र से मैं पहली बार मिला था, इनके ब्लॉग से भी मैं परिचित नहीं था किन्तु मुझे इन्होंनें सहृदयता से कमरे में स्थान दिया और लगने ही नहीं दिया कि हम अपरिचित हैं। बातचीत में इनके ब्लॉग शोध, पत्रकारिता व अकादमिक अनुभवों से साक्षात्कार हुआ। सहज सरल व्यक्तित्व के धनी प्रियरंजन जी मुझे सचमुच में प्रिय लगे।वापसी में हम नागपुर तक इनके साथ रहे। नागपुर तक साथ चलने वालों में हर्षवर्धन त्रिपाठी भी थे, शुरूआती ब्लॉगिंग के समय से हर्षवर्धन जी का ब्लॉग पढ़ते रहा हूं और कई वर्षों से मैं इनके ब्लॉग का ई मेल सब्साक्राईबर हूं लगभग प्रत्येक दिन इनका ब्लॉग अपडेट मेल से प्राप्त होता है। सामयिक विषयों और समाचारों को विश्लेषित करने का इंनका अंदाज मुझे पसंद है। पहले दिन वर्धा पहुचते ही हर्षवर्धन जी नें ही मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया और पहले सत्र को संचालित करते हुए एक सफल टीवी डिबैट संचालक के रूप में अपनी छवि प्रस्तुत की, इनके बात करने का अंदाज मुझे बहुत पसंद आया ।
इनके अतिरिक्त इस कार्यक्रम में जिन ब्लॉग मित्रों नें स्मृति में छाप छोड़ा उनमें मस्त मौला संतोष त्रिवेदी, कार्यक्रमों की व्यस्तता के बीच भी मुस्कुराते रहने वाले कर्तव्यपरायण सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, इनके साथ परछाई जैसी आयोजन में हाथ बटाती श्रीमती रचना त्रिपाठी, मुस्कुराहट बिखेरते रहेने वाले डॉ.घापसे, साहित्य रसी व सफल प्रकाशक शैलेष भारतवासी, देसज ज्ञान के धनी प्रखर पत्रकार संजीव सिन्हा, गंभीर कविताओं की पक्षधर संध्या शर्मा, खालिस देसी पत्रकार बमशंकर टुन गणेश राकेश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार इष्ट देव सांस्कृत्यायन, अपने ब्लॉग पोस्टों की ही तरह चिंतक प्रवीण पाण्डेय, अर्थ काम वाले अनिल रघुराज, ब्लॉगिंग के आरंभिक दिनों के आभासी साथी डॉ.प्रवीण चोपड़ा, आदि ब्लॉगर आलोक कुमार व तकनीकि विशेषज्ञ विपुल जैन, स्नेहमयी वंदना अवस्थी दुबे, गंभीर आवाज में अपनी बातें करने वाले कार्तिकेय मिश्र लगता था कि इन्होंनें एक एक शब्दों को बोलने के पहले तोला हो), इन्हीं की तरह मुम्बई से पधारे डॉ.मनीष कुमार मिश्र की भी बातें लगती थी उनकी बातें सुनते हुए यह स्पष्ट हो जाता था कि ये हिन्दी के प्राध्यापक हैं। इनके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति का हिन्दी ब्लॉगों के प्रति रूचि व छात्र छात्राओं की सीखने की ललक सेहम अत्यंत प्रभावित हुए। इस दो दिन के कार्यक्रमकी स्मृतियॉं हमेशा बनी रहेगी, धन्यवाद सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी।
![]() |
मेरे पीछे शोध छात्र जोशी |