हा-हा, ही-ही से परे ब्‍लॉग जगत में छत्‍तीसगढ़ का नवा बिहान : जिम्‍मेदार ब्‍लॉ-ब्‍लॉं

कल  जीचाट ठेले में चेटियाते हुए एक अग्रज नें चिट्ठाचर्चा का लिंक दिया 'यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ' । चिट्ठाचर्चा में लगे लिंक के सहारे रचना जी के पोस्‍टों पर नजर पड़ी जिसमें उनके नारी ब्‍लाग को बंद करने का फैसला और बिना लाग लपेट में मठाधीशों की सूची और रचना जी के पसंद के चिट्ठों की सूची देखने को मिली, दुख हुआ कि इतना समय-श्रम, तेल-मालिस-पैसा लुटाने के बावजूद हमारा नाम मठाधीश के रूप में नहीं है । खैर ... फुरसतिया अनूप जी नें बहुत दिनों बाद चिट्ठा चर्चा लिखा और उसमें जो लिंक मिले उससे ब्‍लॉग जगत की ताजा हलचलों की जानकारी हमें मिली। अनूप जी नें वहां लिखा कि 'हमारे मौज-मजे वाले अंदाज की रचना जी अक्सर खिंचाईं करती रहीं। उनका कहना है कि ब्लागजगत के शुरुआती गैरजिम्मेदाराना रुख के लिये बहुत कुछ जिम्मेदारी हमारी है। अगर हम हा-हा, ही-ही नहीं करते रहते तो हिन्दी ब्लागिंग की शुरआत कुछ बेहतर होती।'  इसे पढ़ते हुए मुस्‍कान लबो पर छा गई, सचमुच में मौजों की दास्‍तान है यह, फुरसतिया के मौज की लहर में बड़े-बड़े की हर-हर गंगे हो गई है।

हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में मौज लेने वाले पोस्‍टों की शुरूआती दौर में आवश्‍यकता शायद रही हो किन्‍तु अब मौज में मजा लेने वाले लोगों के अतिरिक्‍त ऐसे पाठकों की संख्‍या भी निरंतर बढ़ रही है जो 'सिंहावलोकन',  'जानकी पुल' और 'रचनाकार' जैसे ब्‍लॉगों में रमते हैं। अब पाठकों नें अपनी पसंद के अनुसार से अपना वर्ग चुन लिया है। हा-हा, ही-ही करने वाले एक तरफ तो एक तरफ जिन्‍हें इनकी परवाह नहीं है, वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जो इन दोनों के बीच अपना संतुलन बनाए हुए हैं। हिन्‍दी ब्‍लॉग के शुरूआती दिनों से अभी तक जिसे व्‍यवहार रूप में हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत कहा जा रहा है उसमें कुछ गंभीर लेखन के अतिरिक्‍त हा-हा, ही-ही ही अधिक है। अब ये अलग बात है कि फुरसतिया जी जैसे ताल ठोंक कर अपने आप को गैरजिम्‍मेदार कहने का साहस बहुत कम लोगों में है। सब अपने आप को जिम्‍मेदार गंभीर लेखक/ब्‍लागर समझते हैं क्‍योंकि हम सभी अपने आप में आत्‍ममुग्‍ध हैं, हमें लगता है कि हमारा ब्‍लॉग अच्‍छा है, हमारी भाषा, हमारा ज्ञान अप्रतिम है। हम क्‍यूं स्‍वीकारें कि हम हा-हा, ही-ही की दुकान के सहारे यहॉं तक आ पहुचे हैं। 

संतोष कुमार
हा-हा, ही-ही ब्‍लॉ-ब्‍लॉ के बीच हम निरंतर छत्‍तीसगढ़ के ब्‍लॉगों में रमे हुए हैं, यहॉं के ब्‍लॉगरों के द्वारा बिना ढपली बजाए लिखे जा रहे पोस्‍टों को पढ़ रहे हैं। हम अपनी स्‍वयं की रूचि के अनुसार छत्‍तीसगढ़ के संबंध में लिखने वाले ब्‍लॉगों को प्राथमिकता देते हुए उनका लिंक यहां देने का प्रयास भी कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ ब्‍लॉगों की जानकारी हमने पिछले पोस्‍ट में दिया था, आज इस पोस्‍ट में छत्‍तीसगढ़ के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र गुंडरदेही से संचालित एक ब्‍लॉग नवा बिहान से हम आपको परिचित करा रहे हैं। यह ब्‍लॉग संतोष कुमार जी का है इसमें छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दकोश व व्‍याकरण एवं भाषा से संबंधित कई ग्रंथों के लेखक व भाषाविज्ञानी प्रो.चंद्रकुमार चंद्राकर जी के आलेख संग्रहित हैं। इस ब्‍लॉग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें क्रमश: छत्‍तीसगढ़ी मुहावरा भी पब्लिश किया जा रहा है। आप भी देखें छत्‍तीसगढ़ के नवा बिहान को एवं संतोष जी को प्रोत्‍साहित करें, ताकि हमें ज्ञान का यह खजाना ब्‍लॉग के सहारे मिलता रहे।

संजीव तिवारी  

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...