
वर्तमान में इस आंन्दोलन का स्वरूप शरणार्थी शिविर के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया है किन्तु जब सन् 2005 में महेन्द्र कर्मा नें इसे जन आन्दोलन का स्वरूप दिया एवं आदिवासियों के भाषा के अनुरूप ‘सलवा जुडूम’ का नाम दिया। तब आदिवासियों में जागरूकता फैलाने का कार्य वहां के कुछ व्यक्तियों नें आगे बढकर मृत्यु फरमान का परवाह किये बिना लम्बी भागदौड व जन संपर्क करते हुए किया । इनमें से एक स्थानीय सहायक शिक्षक सोयम मुक्का भी था जिसके संबंध में कहा जाता है कि वह सलवा जुडूम के परचम को फहराने में आरंभ से अहम भूमिका निभाते रहा । आदिवासी होने एवं गजब की नेतृत्व क्षमता के कारण आदिवासी उसकी बातों को मानते रहे हैं एवं उसका अनुयायी बनने सलवा जुडूम का साथ देते रहे हैं । नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा के अतिरिक्त किसी और कद्दावर जुडूम नेतृत्व की बातें जब होती है तब सोयम का नाम उभर कर सामने आता रहा है ।
कहते हैं सोयम मुक्का अपने शिक्षकीय कर्तव्य के निर्वहन में तदसमय असमर्थ रहा क्योंकि नक्सली स्कूलों में बच्चों को पढने से मना करते थे और स्कूल जला देते थे, किन्तु इसने अपने मानवीय कर्तव्यों का बेहतर निर्वहन करते हुए नक्सलियों के जुल्म के प्रतिकार के लिए आदिवासियों के दिलों में साहस का जो भाव एवं ओज पैदा किया वह अतुलनीय रहा ।
पिछले दिनों समाचार पत्रों से जानकारी मिली कि सोयम मुक्का के विरूद्ध विभागीय जांच कराए जाने का आदेश सरकार के द्वारा हुआ है जिसमें उस पर अपनी ड्यूटी से लम्बे समय से अनुपस्थित रहने व दायित्वों के पालन में कोताही बरतने का आरोप लगाया गया था । यह आदेश मानवाधिकार आयोग के सलवा जुडूम पर सरकार को तथाकथित ‘क्लीन चिट’ के तुरंत बाद जारी हुआ था । इस समाचार के पीछे की राजनीति स्पष्ट हो चुकी थी क्योंकि सलवा जुडूम शिविरों में सोयम की लोकप्रियता राजनैतिक चश्में से देखी जाने लगी थी । लगभग 60000 की संख्या वाले जुडूम अनुयायियों को बतौर मतदाता तौला जाने लगा था । सुगबुगाहट एवं खुशफहमी में सोयम के पर भी फडफडाने लगे थे जिसका वह अधिकारी भी था किन्तु उसका पर कुतरने के लिए जांच की तलवार उस पर लटका दी गई थी ।
कल समाचार आया कि सोयम मुक्का कोटा (अजजा) विधान सभा सीट से निर्दलीय प्रत्यासी के रूप में नामांकन दाखिल करने वाले हैं एवं उसने सहायक शिक्षक के पद से स्तीफा दे दिया है । समाचार दिलचस्प है एवं कोंटा से भाजपा के घोषित उम्मीदवार पदाम नंदा एवं कांग्रेस व कम्यूनिस्ट के उम्मीदवारों को चक्कर में डालने वाला है , क्योंकि सोयम को पडने वाले वोट यदि अन्यथा प्रभावित हुए बिना पडते हैं तो वह जुडूम के अनुयाइयों के वोट होंगें क्योंकि वह उनका हमसफर रहा है । इसके साथ ही वोटों की संख्या यह भी बतलायेगी कि सलवा जुडूम सचमुच आदिवासियों के हित के लिए समर्थित था या राजनैतिक स्वार्थवश ।
(मुझे चुनाव समाचार विश्लेषणों की समझ नहीं है किन्तु विमर्श के लायक समाचार पर चर्चा करने का प्रयास किया है शायद आप इससे सहमत हों ................ )
संजीव तिवारी