सुरेश अग्रहरि |
छत्तीसगढ़ी भाषा भी अब धीरे-धीरे हिन्दी ब्लॉग जगत में अपने पाव पसार रही है। पिछले पोस्ट के बाद रविवार को पुन: छत्तीसगढि़या ब्लॉगों को टमड़ना चालू किया तो बिलासपुर के भाई प्रशांत शर्मा का एक हिन्दी ब्लॉग मिला जिसका नाम छत्तीसगढ़ी में है। उन्होंनें इसमें लिखा है कि इस ब्लाग में आप उन सभी बातों को पढ़ सकेंगे जो गुड़ी(चौपाल) में की जाती है। राजनीति से लेकर देश, दुनिया, खेल से लेकर लोगों के मेल की बातें, जीत हार की बातें, आपने आस-पास की बाते और भी बहुत कुछ...। प्रशांत शर्मा जी के गुड़ी के गोठ में पहली पोस्ट 11 मई 2011 को लिखी गई है और 26 जून 2011 को पांचवी पोस्ट में वे भ्रष्टाचार के दशा-दिशा पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी शीर्षक पहुना के नाम से राजनांदगांव के सुरेश अग्रहरि जी ने भी ब्लॉग बनाया है अभी चार लाईना कवितायें ही इसमें प्रस्तुत है। आशा है आगे इनके ब्लॉग में ब्लॉग शीर्षक के अनुसार अतिथि कलम की अच्छी रचनांए पढ़ने को मिलेंगी।
कमलेश साहू |
रायपुर के कमलेश साहू जी पेशे से टेलीविजन प्रोड्यूसर हैं, विगत 11 वर्षों से मीडिया क्षेत्र में सक्रिय हैं एवं वर्तमान में ज़ी 24 घंटे छत्तीसगढ़ रायपुर में कार्यरत हैं। इनके ब्लॉग कही-अनकही में पहली पोस्ट 14 जून 2008 को लिखी गई है एवं कुल जमा तीन पोस्ट हैं, ताजा पोस्ट बाबूजी को कमलेश जी नें बड़ी संजीदगी से लिखा है, कमलेश भाई यदि ब्लॉग में सक्रिय रहते हैं तो हमें उनकी कही-अनकही बहुत सी बातें पढ़ने को मिलेंगीं।
स्मृति उपाध्याय |
अपने आप को जानने समझने की कोशिश करती रायपुर की स्मृति उपाध्याय जी के ब्लॉग स्मृति में पहली पोस्ट 18 मार्च 2010 को लिखी गई है और 6 जनवरी 2011 को पब्लिश पोस्ट में वो लड़की शीर्षक से लम्बी कविता है। इसके बाद लगभग छ: माह से यह ब्लॉग अपडेट नहीं है किन्तु मार्च 2010 से दिसम्बर 2010 तक इसमें लगातार 19 पोस्ट पब्लिश किए गए है जिनमें किसी में भी टिप्पणियॉं नहीं है, जबकि स्मृति जी की लेखनी सशक्त है। मुझे लगता है कि इनका ब्लॉग किसी भी एग्रीगेटर की नजरों में आ नहीं पाया जिसके कारण इनके ब्लॉग में पाठकों की कमी नजर आ रही है। स्मृति जी यदि नियमित ब्लॉग लिखती है तो हमें उनकी संवेदनशील कवितायें नियमित पढ़ने को मिलेंगीं।
नवम्बर 2009 से हिन्दी ब्लॉग लिख रहे दंतेवाड़ा बस्तर से विशाल जी अपने प्रोफाईल में लिखते हैं 'मैनेजमेंट की पढाई तो की मैंने पर मेरे अंदर जो लेखक बसा हुआ था, उसे तो एक दिन बाहर आना ही था, मेरे आसपास जो भी गलत होता है मैं उसे सेहन करने में सक्षम नहीं हूँ, और समाज से अन्याय और बुराई को मिटाने के लिए मैंने पत्रकारिता शुरू की, मेरे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है' जागो भारत जागो नाम से संचालित इस ब्लॉग में ताजी पोस्ट 5 जून को लिखी गई है। बंसल न्यूज में बतौर छत्तीसगढ़ ब्यूरो हेड कार्यरत प्रियंका जी के ब्लॉग से भी आज ही सामना हुआ, यद्धपि छत्तीसगढ़ चौपाल में इनके ब्लॉग को मैं पूर्व में ही जोड़ चुका हूं, किन्तु मैं इस ब्लॉग को नियमित पढ़ नहीं पा रहा था। प्रियंका जी जून 2008 से ब्लॉग लिख रही हैं। अपनी तेज-तर्रार पत्रकार छवि के लिए छत्तीसगढ़ में जानी जाने वाली प्रियंका को नियमित ब्लॉग में पढ़ना सुखद रहेगा। 'प्रियंका का खत' ब्लॉग समाचार के तह से निकलते अलग-अलग पहलुओं से हमें अवगत कराता रहेगा। दुर्ग के जिला पंचायत के प्रतिभावान सदस्य देवलाल ठाकुर जी भी अप्रैल 2008 से ब्लॉग लिख रहे हैं। वे लिखते हैं कि उनका ब्लॉग 'दुर्ग छत्तीसगढ़' दुर्ग शहर की खबरों, राजनीतिक आर्थिक धार्मिक गतिविधियों के समाचारों विचारो की पत्रिका के रूप में प्रस्तुत होगी। इस ब्लॉग में ताजा प्रवृष्टि 20 मई 2011 की है। यही बात कहने वाले देवरी बंगला, दुर्ग के पत्रकार केशव शर्मा जी भी वही कहते हैं जो देवलाल जी कहते हैं, केशव शर्मा - पत्रकार . दुर्ग, छत्तीसगढ़ नाम से ब्लॉग में अभी 11 मई 2011 तक तीन पोस्ट हैं। मेरी देहरी के नाम से ब्लॉग लिख रही रायपुर की ज्योति सिंह जी भी मई 2010 से लिख रही हैं। 15 अप्रैल 2011 को पब्लिश पोस्ट कायाकल्प में गहन चिंतन है, आगे इस ब्लॉग में अच्छे पोस्ट पढ़ने को मिलते रहेंगें।
यश ओबेरॉय |
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं बहुचर्चित नाटकों क्रमश: विरोध, तालों में बंद प्रजातंत्र, मुखालफत (पंजाबी), चीखती खोमोशी, गधे की बारात, ठाकुर का कुंवा, पेंशन, चार दिन, बेचारा भगवान, नाटक नहीं, फंदी, दशमत कैना (छत्तीसगढ़ी) सीरियल और टेली फिल्म - आस्था, तथागत, जरा बच के, मैं छत्तीसगढ़ हूँ, मीत, रूह, जैसे नाटकों में काम करने वाले यश ओबेरॉय जी की भी एक हिन्दी ब्लॉग यश ओबेरॉय नेट में उपलब्ध है जिसमें अक्टूबर 2010 में एक कविता पब्लिश की गई है। यश जी छत्तीसगढ़ के रंगकर्म व लोकनाट्यों के अच्छे जानकार हैं, यदि यह ब्लॉग नियमित रहे तो हमें छत्तीसगढ़ के थियेटर व लोक कलाओं पर अच्छी जानकारी मिल पायेगी।
प्रफुल्ल पारे |
रायपुर छत्तीसगढ़ के पत्रकार प्रफुल्ल पारे जी अपने प्रोफाईल में लिखते हैं 'पढ़ाई की औपचारिकता पूरी करने के बाद समय मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल ले गया और वहां से 1993 से शुरू हुआ पत्रकारिता का सफर। दैनिक नईदुनिया, नवभारत में 7 साल बिताने के बाद जिंदगी गुलाबी शहर जयपुर ले गई। इस रेतीली जमीन पर कृषक जगत जैसे खेती पर आधारित अखबार की सफल लांचिंग की। तीन बरस बाद जयपुर भी छूट गया और ईटीवी का सेंटर इंचार्ज बन वापस रायपुर आ पहुंचा। लेकिन जिस रायपुर से गए थे वो जिला था लौटे तो राजधानी। तब से ईटीवी के बाद हरिभूमि फिर नईदुनिया इंदौर का ब्यूरो संभाला, उसके बाद आज की जनधारा का संपादन किया और अब अपना ड्रीम प्रोजेक्ट ग्रामीण संसार को बुलंदियों पर पहुंचाने का इरादा है।' वे विदेह नाम से ब्लॉग लिखते हैं। विदेह में अगस्त 2010 से जनवरी 2011 तक दो पोस्ट डले हैं किन्तु समाचारों को विश्लेषित करने की क्षमता इन दोनों पोस्टों में स्पष्ट नजर आ रही है। प्रफ़ुल्ल जी यदि इस ब्लॉग में नियमित रहते हैं तो हमें छत्तीसगढ़ की धड़कन स्पष्ट सुनाई देगी।
सुभाष मिश्र |
रायपुर के सुभाष मिश्र जी छत्तीसगढ़ शासन के पाठ्यपुस्तक निगम में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। प्रगतिशील लेखक संघ और भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से उनका जुड़ाव है। नाटकों में गहरी दिलचस्पी के कारण ही पिछले 13 वर्षों से मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह का वे सफल संयोजन करते आ रहे हैं। इनकी तीन किताबें एक बटे ग्यारह (व्यंग्य संग्रह), दूषित होने की चिंता, मानवाधिकार का मानवीय चेहरा प्रकाशित हो चुकी हैं। सुभाष मिश्र जी का जिजीविषा के नाम से ब्लॉग है जिसमें जनवरी 2011 को एक पोस्ट पब्लिश है उसके बाद इसमें कोई पोस्ट नहीं है, थियेटर के गहरे जानकार मिश्र जी का यह ब्लॉग यदि जीवंत रहता है तो हमें उनके द्वारा लिखित नाट्य समीक्षा, रंग विमर्श व व्यंग्य पढ़ने को मिलता रहेगा।
देवेश तिवारी |
बिलासपुर से एक जिज्ञासु प्रकृति का नवोदित पत्रकार देवेश तिवारी जी का ब्लॉग समय का सिपाही भी उल्लेखनीय है। ऍम ऍम सी जे की पढाई कर रहे देवेश भाई नवम्बर 2010 से ब्लॉग लिख रहे हैं उनके ब्लॉग में अप्रैल 2010 तक पोस्ट पब्लिश हैं। सामयिक विषयों पर और कविता लिखने वाले देवेश भाई की लेखनी धारदार है। हमें इनके नियमित रहने की प्रतीक्षा है।
अब इस पोस्ट के शीर्षक में प्रयुक्त शब्द 'आरूग' के संबंध में हम आपको बताते चलें। आरूग छत्तीसगढ़ी भाषा का शब्द है आरूग का अर्थ है ऐसा जो जूठा न हो, जिसका प्रयोग न हुआ हो, जिसे भगवान पर अर्पित किया जा सके। मेरे लिये ये ब्लॉग आरूग थे इसलिए मैंने इन ब्लॉगों को 'आरूग' लिखा। ऐसे ही कुछ विशेष व उल्लेखनीय ब्लॉगों को लेकर हम फिर उपस्थित होंगें।
अब इस पोस्ट के शीर्षक में प्रयुक्त शब्द 'आरूग' के संबंध में हम आपको बताते चलें। आरूग छत्तीसगढ़ी भाषा का शब्द है आरूग का अर्थ है ऐसा जो जूठा न हो, जिसका प्रयोग न हुआ हो, जिसे भगवान पर अर्पित किया जा सके। मेरे लिये ये ब्लॉग आरूग थे इसलिए मैंने इन ब्लॉगों को 'आरूग' लिखा। ऐसे ही कुछ विशेष व उल्लेखनीय ब्लॉगों को लेकर हम फिर उपस्थित होंगें।
संजीव तिवारी
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