कवितायें भी लिखते हो मित्र
मुझे हौले से उसने पूछा
कवितायें ही लिखता हूँ मित्र
मैने सहजता से कहा.
भाव प्रवाह को
गद्य की शक्ल में ना लिखकर
एक के नीचे एक लिखते हुए
इतनी लिखी है कि
दस-बीस संग्रह आ जाए.
डायरी के पन्नों में
कुढ़ते शब्दों नें
हजारों बार मुझे आतुर होकर
फड़फड़ाते हुए कहा है
अब तो पक्के रंगों में
सतरंगे कलेवर में
मुझे ले आवो बाहर
पर मैं हूँ कि सुनता नहीं
शब्दों की .
शायद इसलिए कि
बरसों पहले मैंनें
विनोद कुमार शुक्ल से
एक अदृश्य अनुबंध कर लिया था
कि आप वही लिखोगे
जो भाव मेरे मानस में होंगें
और उससे भी पहले
मुक्तिबोध को भी मैंने
मना लिया था
मेरी कविताओं को कलमबद्ध करने.
इन दोनों नें मेरी कविताओं को
नई उंचाईयां दी
मेरी डायरी में दफ्न शब्दों को
उन तक पहुचाया
जिनके लिये वो लिखी गई थी
उनकी हर एक कविता मेरी है
क्या आप भी मानते हैं कि
उनकी सारी रचनांए आपकी है.
संजीव
मुझे हौले से उसने पूछा
कवितायें ही लिखता हूँ मित्र
मैने सहजता से कहा.
भाव प्रवाह को
गद्य की शक्ल में ना लिखकर
एक के नीचे एक लिखते हुए
इतनी लिखी है कि
दस-बीस संग्रह आ जाए.
डायरी के पन्नों में
कुढ़ते शब्दों नें
हजारों बार मुझे आतुर होकर
फड़फड़ाते हुए कहा है
अब तो पक्के रंगों में
सतरंगे कलेवर में
मुझे ले आवो बाहर
पर मैं हूँ कि सुनता नहीं
शब्दों की .
शायद इसलिए कि
बरसों पहले मैंनें
विनोद कुमार शुक्ल से
एक अदृश्य अनुबंध कर लिया था
कि आप वही लिखोगे
जो भाव मेरे मानस में होंगें
और उससे भी पहले
मुक्तिबोध को भी मैंने
मना लिया था
मेरी कविताओं को कलमबद्ध करने.
इन दोनों नें मेरी कविताओं को
नई उंचाईयां दी
मेरी डायरी में दफ्न शब्दों को
उन तक पहुचाया
जिनके लिये वो लिखी गई थी
उनकी हर एक कविता मेरी है
क्या आप भी मानते हैं कि
उनकी सारी रचनांए आपकी है.
संजीव