बसंत कुमार तिवारी की इस छत्तीसगढी कविता का हिन्दी भावानुवाद हम आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं -
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
पहले तू फुदक फुदक कर डंगाल डंगाल मे कूदती रही
और अमरैया मे जा के सभी को निमंत्रित कर आयी
आम के पेडों का चक्कर लगाकर तू सबको बुला लाई
और भंवरा के गुंजन के साथ गीत गुनगुनाने लगी
फिर भी मुझे तुमने नही पूछा कि मेरा क्या हाल है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
कितना कष्ट दे रहा है मित्र से ना मिल पाने का दर्द
कैसे जी रहा हूँ मै बिना प्रेमिका के
मेरे पल पल युग जैसे बीत रहे है
ऑंखों मे दुख के ऑंसु सरोवर जैसे लबालब भरे है
जिन्दगी की खेती मे अकाल पड गया है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
बासंती पुरवाही के साथ उसकी याद भी बह रही है
ऑंखों मे उसकी सूरत झूल रही है
आखिर तू क्या जाने प्रेम का मरम
तू क्या जाने अपने प्रेमी का बिरह
ये प्रेम तो जीवन मे मौत का खेल है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
मौर आये आम के पेडों को देख कर मेरा मन भरम जाता है
महमहाते बगिया मुझे डोली जैसे लगते है
उपर से तेरा कूकना मेरे हृदय को चीर देती है
अरी तितली अभी रुक जा तू भी मुझे ताना मत दे
मुझे इठलाते चिढाते हुए टेसू लाल हो गये है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
भावानुवाद - संजीव तिवारी
भावानुवाद - संजीव तिवारी