छत्‍तीसगढ के प्रसिद्व राउत नाच के कुछ दोहे भावार्थ सहित

आवत देवारी ललहू हिया, जावत देवारी बड़ दूर।
जा जा देवारी अपन घर, फागुन  उडावे  धूर ।।

भावार्थ - दीवाली का त्‍यौहार जब आता है तब हृदय हर्षित हो जाता है, और जब दिवाली आकर चली जाती है तो उसका इंतजार बहुत कठिन होता है, साल भर उसका इंतजार करना पडता है। हे दीपावली, उत्‍सवधर्मी हमने आनंद मना लिया अब तुम जावो और फागुन को अपनी धूल उडाने दो यानी हमें होली की तैयारी में मगन होने दो।


भांठा देखेंव दुमदुमिया, उल्‍हरे देखेंव गाय हो।
ओढे देखेंव कारी कमरिया, ओही नंनद के भाय हो।।

(भांठा - उंची सपाट भूमि, दुमदुमिया - बिना कीचड का सूखा, भाय - भाई)
भावार्थ - अपने पति का परिचय देनें की काव्‍यात्‍मक प्रस्‍तुति तुलसीदास जी नें सीता के मुख से रामचरित मानस में जैसे की है वैसे ही छत्‍तीसगढी महिला अपने पति का परिचय दे रही है। गांव के बाहर भांठा में गायों की भीड है वहां काले कम्‍बल ओढा हुआ जो छबीला पुरूष है वही मेरी नंनद के भईया अर्थात मेरे पति हैं।

धन गोदानी भुईया पावा, पावा हमर असीस।
नाती पूत लै घर भर जावे, जीवा लाख बरीस।।

भावार्थ - आर्शिवचन देते हुए कहता है कि आपका घर धन,गायों  और भूमि सम्‍पत्ति से परिपूर्ण रहे, आप हमारा आशीष प्राप्‍त करें। आपका घर नाती-पोते से भर जाए और आप लाखो वर्ष जींए। यह अंत: करण से शुभकामना देना है।

(चित्र नई दुनिया, रायपुर से साभार)


मुख्‍यमंत्री रमन सिंह पारंपरिक रावत नाच श्रृंगार के साथ



 

(चित्र रूपेश यादव, रायपुर से साभार)
शेष फिर कभी ...

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...