आवत देवारी ललहू हिया, जावत देवारी बड़ दूर।
जा जा देवारी अपन घर, फागुन उडावे धूर ।।
भावार्थ - दीवाली का त्यौहार जब आता है तब हृदय हर्षित हो जाता है, और जब दिवाली आकर चली जाती है तो उसका इंतजार बहुत कठिन होता है, साल भर उसका इंतजार करना पडता है। हे दीपावली, उत्सवधर्मी हमने आनंद मना लिया अब तुम जावो और फागुन को अपनी धूल उडाने दो यानी हमें होली की तैयारी में मगन होने दो।
भांठा देखेंव दुमदुमिया, उल्हरे देखेंव गाय हो।
ओढे देखेंव कारी कमरिया, ओही नंनद के भाय हो।।
(भांठा - उंची सपाट भूमि, दुमदुमिया - बिना कीचड का सूखा, भाय - भाई)
भावार्थ - अपने पति का परिचय देनें की काव्यात्मक प्रस्तुति तुलसीदास जी नें सीता के मुख से रामचरित मानस में जैसे की है वैसे ही छत्तीसगढी महिला अपने पति का परिचय दे रही है। गांव के बाहर भांठा में गायों की भीड है वहां काले कम्बल ओढा हुआ जो छबीला पुरूष है वही मेरी नंनद के भईया अर्थात मेरे पति हैं।
धन गोदानी भुईया पावा, पावा हमर असीस।
नाती पूत लै घर भर जावे, जीवा लाख बरीस।।
भावार्थ - आर्शिवचन देते हुए कहता है कि आपका घर धन,गायों और भूमि सम्पत्ति से परिपूर्ण रहे, आप हमारा आशीष प्राप्त करें। आपका घर नाती-पोते से भर जाए और आप लाखो वर्ष जींए। यह अंत: करण से शुभकामना देना है।
(चित्र नई दुनिया, रायपुर से साभार)
(चित्र रूपेश यादव, रायपुर से साभार)
मुख्यमंत्री रमन सिंह पारंपरिक रावत नाच श्रृंगार के साथ
(चित्र रूपेश यादव, रायपुर से साभार)
शेष फिर कभी ...
संजीव तिवारी