पिछले दिनों देश के अन्य हिस्सों में लगातार हो रही वर्षा के कारण नदी-तालाब लबालब भर गए थे और कई नदियॉं उफान पर थी। छत्तीसगढ़ में भी अन्य नदियों के साथ पहाड़ी और मैदानी इलाकों से शिवनाथ में भी लगातार जल भराव हो रहा था और महानदी के भरे होने के कारण शिवनाथ अपने किनारों को लीलती हुई फैल रही थी। लगातार हो रही वर्षा और नदी के जलस्तर में वृद्धि की खबरों के बीच बच्चों की चिंता को अपने अतीत के अनुभवों से हौसला दे रहा था। यहॉं दुर्ग में जहां मेरा घर है वह शिवनाथ के करीब है और पुलगांव नाले के डुबान क्षेत्र में है। सामान्यतया तेजी से विकसित होते दुर्ग शहर की इस कालोनी में बाढ़ या वर्षा से कोई प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु ज्यादा वर्षा से पिछले पंद्रह सालों में यह क्षेत्र तीन बार डूब चुका है और कालोनी से रहवासियों को बाहर निकल कर अन्यत्र शरण लेना पड़ा है। इस समय नदी के उफान को देखते हुए संभावना यही बन रही थी कि कालोनी डूबेगी।
मेरे जीवन में शिवनाथ का अहम स्थान रहा है, जिस गांव में मै जन्म लिया और अभी तक के जीवन का आधे से अधिक हिस्सा जहॉं बिताया वह इसी शिवनाथ के मैदानी किनारे में बसा हुआ है। मेरे गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर उपर शिवनाथ से खारून मिलती है जहां सोमनाथ नाम का देव-पर्यटन स्थल है। खारून के मिलने के बाद शिवनाथ और चौड़ी और बलवती हो जाती है। किनारे में बसे छोटे से कच्चे घरों वाले गांव में बचपन से लेकर जवानी तक कई भीषण बाढ़ों का सामना हमने किया है जिनमें 1994 में आई बाढ़ के संबंध में मैंनें एक पोस्ट भी लिखा था। आज भी मेरे पास मेरे गांव के बाढ़ से संबंधित भास्कर में प्रकाशित चित्रमय रिपोर्ट सुरक्षित है जो मेरी यादों को ताजा करती रहती है।
बाढ़ों से निरंतर जूझने के कारण बाढ़ का भय मन में नहीं था किन्तु तब जान-माल-अन्न-धन के नुकसान पर कोई दृष्टि विकसित नहीं हो पाई थी। पारिवारिक दायित्वों के साथ संभावित बाढ़ नें मेंरे मन में चिंता जरूर पैदा कर दी थी कि कैसे करेंगें, घर के सारे सामान का डूबना निश्चित था। समय कुछ ऐसा था कि मुझे कम्पनी ला बोर्ड, मुम्बई में एक केस के सिलसिले में जाना था और इन्हीं तारीखों में शिवनाथ घर में घुसने को उतावली थी। आगे की कहानी चित्रों की जुबानी -
07.09.2011 सुबह |
07.09.2011 दोपहर |