राग दरबारी के यशस्वी लेखक श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925-28 अक्टूबर 2011) के दुःखद् निधन से शोकाकुल भिलाई-दुर्ग के संस्कृतिकर्मियों द्वारा उनके चित्र पर सभी उपस्थितों ने सिंघई विला, भिलाई में 30 अक्टूबर, 2011 को श्रद्धा-सुमन अर्पित किये। जन सांस्कृतिक मंच के संरक्षक व विख्यात समालोचक डॉ. सियाराम शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न श्रद्धाँजलि व स्मरण सभा में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नलिनी श्रीवास्तव ने स्मृति-दीप प्रज्वलित कर सभा की शुरूआत की। भिलाई इस्पात संयंत्र के पूर्व जनसम्पर्क व राजभाषा प्रमुख अशोक सिंघई ने सभा का संचालन किया तथा उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि मृत्यु से मात्र दस दिनों पूर्व 45वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत पद्मभूषण श्रीलाल शुक्ल बहुपठ्य लेखक थे। हिन्दी भाषा के गद्य के टिकाऊ विकास में उनका योगदान अद्वितीय है। प्रेमचंद द्वारा गढ़ी भाषा को उन्होंने और अधिक विस्तार देते हुये जनोन्मुख बनाया। उन्हें मिले समस्त सम्मान व्यंग्य की धारा को मिले सम्मान व स्वीकृतियाँ हैं। परसाईजी के बाद व्यंग्य विधा में श्रीलाल शुक्ल ने गंभीर काम किया और अपनी वरेण्य विधा व्यंग्य की प्रतिष्ठा बढ़ाई श्रीवृद्धि की है।
प्रखर आलोचक डॉ. सियाराम शर्मा ने अध्यक्षीय श्रद्धाँजलि में उन्हें एक ‘क्लैसिक राइटर’ निरूपित करते हुये कहा कि औपनिवेशिक भारत का जटिल चित्र प्रेमचंद के ‘गोदान’ में, आजादी के बाद बदलते ग्रामीण स्वरूप का चित्रण रेणु के ‘मैला आँचल’ में और साठवें दशक का यथार्थपरक प्रमाणिक चित्रण हमें श्रीलाल शुक्ल के ‘राग दरबारी’ में मिलता है। बड़ी रचनायें समय के साथ खुलती हैं। उनके समस्त लेखन में ‘राग दरबारी’ कालजयी तो है पर एक महान उपन्यास की जगह वह कई व्यंग्य-लेखों या हास्य-प्रहसनों का समुच्चय प्रतीत होता है जिसमें पात्र अपने-अपने खाँचों में कैद हैं। उनकी भाषा नई थी। उनके पास प्रेमचंद जैसी दृष्टि तो नहीं थी पर भाषा के संदर्भ में वे प्रेमचंद से एक कदम आगे ही नज़र आते हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री व वरिष्ठ व्यंग्यकार रवि श्रीवास्तव ने कहा कि राग दरबारी की अनेकों घटनायें अब घटती नज़र आ रही हैं। राजनीति की मूल्य-विहीनता, कदाचरण और बेशर्मी की जो कल्पनायें साठवें दशक में श्रीलाल शुक्ल ने की थी, वे सब अब साकार हैं।
वरिष्ठ व्यंग्य के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर विनोद साव ने बताया कि श्रीलाल शुक्ल ने विपुल लेखन किया है। ‘राग दरबारी’ के अलावा ‘मकान’, ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘पहला पड़ाव’, ‘अज्ञातवास’ तथा ‘विश्रामपुर का संत’ आदि उनकी अत्यंत चर्चित रचनायें हैं। उनके अनेक व्यंग्य संग्रह हैं। निर्मल वर्मा, कमलेश्वर की श्रेणी के वे विशुद्ध गद्यकार थे। वे उत्कृष्ठ साक्षात्कार-देते थे। तद्भव के सम्पादक अखिलेश के साथ साक्षात्कार के रूप में उनकी लंबी बातचीत एक महत्वपूर्ण साहित्यिक दस्तावेज़ है। लेखकों में सभी प्रवक्ता नहीं होते, वे दुर्लभ लेखक-प्रवक्ता थे।
डॉ. नलिनी श्रीवास्तव ने कहा कि उनका लेखन उन्हें हमेशा जीवित रखेगा। वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार शिवनाथ शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद के बाद ग्रामीण परिवेश का इतना सुन्दर चित्रण और कहीं देखने नहीं मिलता। रेणु की धारा में होते हुये भी वे आँचलिकता से मुक्त थे। कवि विजय ‘वर्तमान’ ने बताया कि जब वे हाईस्कूल के छात्र थे, तभी उन्होंने डाक से मँगवाकर ‘राग दरबारी’ पढ़ी थी। उसे दुबारा एम.एस-सी. करने के बाद पढ़ा और अर्थ खुलते चले गये। सतीश कुमार चौहान ने कहा कि ‘सरिता’ में एक रचना पुरस्कृत हुई थी और जीवन के इस पहले पुरस्कार में मिली थी पुस्तक ‘राग दरबारी’। यह अनुभव मैं कभी नहीं भुला पाऊँगा। वरिष्ठ रंगकर्मी आनन्द अतृप्त ने संकल्प लिया कि उनके कालजयी उपन्यास ‘राग दरबारी’ पर एक पूर्णकालिक नाटक खेलूँगा। व्ही.व्ही.एन. प्रसाद राव ने बताया कि एक नाटक देखते समय उनकी बगल में बैठने का सुअवसर मिला था जिसमें मंच पर ही बारात का दृश्य साकार किया गया था। वह दृश्य और वह निकटता मेरी स्मृतियों में टँक गई है। कवि शिवमंगल सिंह एवं ‘संचार टुडे’ के सम्पादक डी.एस. अहलुवालिया ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर बहुमत के सम्पादक विनोद मिश्र, शायर मुमताज़, ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के सम्पादक प्रदीप भट्टाचार्य, सांगीतिक संस्था ‘गुँजन’ के अध्यक्ष शैलेन्द्र श्रीवास्तव, कवि राजा राम रसिक, पत्रकार प्रशान्त कानस्कर, समाजसेवी ओ.पी. शर्मा, भिलाई क्रिश्चियन कौंसिल के अध्यक्ष रेव्हरेण्ड अर्पण तरुण, पुनीत कुमार गुप्ता, सहित भिलाई-दुर्ग के साहित्यकार व साहित्यप्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।