अभी पिछले महीनें मुझे एक पुराने मित्र नें बहुत दिनों बाद फोन किया, मैंने पिछले वर्ष उसका एक हिन्दी ब्लॉग बनाया था। हाल चाल के बाद उसने पूछा कि मेरी ब्लॉगिंग कैसे चल रही है। इधर-उधर की बातों के बाद वो आया कि उसने भी घर में ब्राडबैंड कनेक्शन ले लिया है और वो हिन्दी नेट व हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रति उत्सुक है। मैंनें सहयोग के लिए हामी भरी और बात बंद करनी चाही तो उसने कहा कि पते की बात तो बताना भूल गया। मैंने जब पूछा कि ये पते की बात क्या है तो उसने कुछ 'झाड़-झंखाड़' से कमाई वाली कोई योजना के बारे में विस्तार से बतलाया। चूंकि मुझे चमत्कारिक रूप से प्राप्त धन पर विश्वास और भरोसा नहीं है इसलिए मैंनें अपना काम जारी रखते हुए, उसका मान रखा और उसकी बात सुनी। उसके बातों को मेरे विरोधी मन नें जो कुछ ग्रहण किया उसमें सिर्फ एक वाक्य था 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे'। मैंनें मित्र को 'देखते हैं', कह कर चलता किया और मोबाईल बंद कर दिया।
दूसरे दिन मित्र का पुन: फोन आया कि आपने नेट में 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे' सर्च किया क्या। मैंरे 'नहीं' कहने पर वह उस कम्पनी की पुन: बड़ाई बतलाने लगा और साथ ही उसने मेरी राय मांगी कि क्या उसे 11000/- रूपयों के गुणक में कुछ अंश का निवेश करना चाहिए। मैंनें मना किया तो उसने स्वयं इसका हल देते हुए कहा कि वापसी में कम्पनी 1000/- के गुणक में प्रति सप्ताह राशि वापस करेगी जिससे लगभग एक डेढ़ महीने में ही हमें हमारा जमा पैसा वापस मिल जायेगा, आगे की कमाई तो शुद्ध है। बस एक महीने कम्पनी बनी रहे। उसकी स्वयं की संतुष्टि पर मैंनें कहा कि भाई आपकी मर्जी, मैं उत्सुक नहीं हूँ, मैं पांच पैसे भी इस कम्पनी में निवेश नहीं करूंगा, भले ही यह मुझे लाखो रूपये देने का प्रलोभन देवे।
नेट में मैने जब स्पीक एशिया (Speak Asia) को खोजा तो उसका एक हिन्दी ब्लॉग स्पीक एशिया इंडिया आनलाईन मिला और भी बहुत सारे समान नाम वाले पोर्टल मिले। जिसमें से स्पीक एशिया के एक पोर्टल में इस प्रकार से लुभावने शब्दों का प्रयोग किया गया था ''आप आर्थिक स्वतंत्रता के लिए दिन रात मेहनत करते हैं लेकिन हासिल उतना नहीं हो पाता जितना आप उम्मीद करते हैं तो अब सिंगापुर की एक ओन लाईन सर्वे कंपनी आपको उम्मीद से बढ़ कर देने वाली है। जी हां यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत है। यह कहना है प्रिंट एण्ड इलेक्ट्रानिक नेटवर्क समूह का। हिंदी की यह पत्रिका देश की पहली ऐसी पत्रिका है जिसने आन लाईन मार्केटिंग के इस कायाकल्प की पूरी इत्मीनान से समीक्षा की है। पत्रिका के मुताबिक 90 का दशक जहां सूचना क्रांति का दशक रहा वहीं 2000 से 2010 तक का वक्त नेटवर्क मार्केटिंग के नाम रहा किंतु इस दौरान इन कंपनियों ने लोगों को सपने बेचने के सिवा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया। लोगों को लाखों करोड़ों के ख्वाब दिखाए गए और हाथ कुछ भी नहीं आया। किंतु अब स्पीक एशिया ओन लाईन के पदार्पण से दावा किया जा सकता है कि सर्वे व नेटवर्किंग के मिश्रण से यह कंपनी लोगों को कमाई का बेहतरीन विकल्प उपलब्ध करवा रही है।''
नेट में बिखरे स्पीक एशिया के अवशेषों के अनुसार यह कम्पनी मई 2010 से भारत में ऑनलाइन सर्वे का काम करनें का दम भर रही है। कम्पनी सदस्य बनाने के लिए रू. 11,000/- लेती है, फिर कम्पनी महीने में कुल 8 सर्वे कराती है और इसके बदले में हर सर्वे के लिए 500 रुपए सदस्यों को देती है। इस प्रकार से लगभग तीन महीनें में सदस्य द्वारा जमा किया गया रूपया वापस प्राप्त हो जाता है। आनलाईन सर्वे के नाम पर यह कुछ सामान्य प्रश्नों का उत्तर फार्म फारमेट में पूछती है और उसके बाद पैसे का भुगतान करती है। और ... लगभग मुफ्त में प्राप्त होने वाले पैसे के लोभ में लोग फंसते चले जाते हैं। इस सारे खेल में एजेंटों/बिचौलियों की भूमिका अहम होती है जो स्पीक एशिया जैसी कम्पनी से भी ज्यादा गुनहगार हैं जो अपने बीच के लोगों को सपना दिखा कर लूटते हैं।
मैं सालों से इन स्वप्न बेंचने वाली कम्पनियों में फंसते मध्यमवर्गीय परिवार को देख रहा हूँ जो शार्टकट से पैसा कमाने के लालच में इन कम्पनियों के चक्कर में आते हैं। स्पीक एशिया जैसी कम्पनी अपनी लुभावनी बातों से लोगों के मर्म में ललक जगाती है, उनकी आकांक्षाओं में पर लगाती है, और-और की भावना को बलवती करती है और सितारा होटलों में मीटिंग कराकर ग्राहकों को फांसती है। कल्पतरू ब्लॉग में स्पीक एशिया के संबंध में पहले भी चेतावनी दी गई, मोलतोल में भी कहा गया था, और अक्टूबर में मनीलाईफ़ पत्रिका ने इनके व्यवसाय के बारे में आपत्ति जताई थी इसके बावजूद लोग पिल पड़े थे। आज 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे' का हाल आप सबके सामने है, कम्पनी नें भारत में लगभग 19 लाख सदस्य बनांए हैं और उनसे करोड़ो रूपये जमा करवाये हैं। मेरे मित्र नें भी लगभग दो लाख रूपये का चढ़ावा इस कम्पनी में चढ़ाया है, किन्तु उसे भरोसा है कि उसका पैसा उसे मिल जायेगा ... खुदा ख़ैर करे।
संजीव तिवारी
नेट में मैने जब स्पीक एशिया (Speak Asia) को खोजा तो उसका एक हिन्दी ब्लॉग स्पीक एशिया इंडिया आनलाईन मिला और भी बहुत सारे समान नाम वाले पोर्टल मिले। जिसमें से स्पीक एशिया के एक पोर्टल में इस प्रकार से लुभावने शब्दों का प्रयोग किया गया था ''आप आर्थिक स्वतंत्रता के लिए दिन रात मेहनत करते हैं लेकिन हासिल उतना नहीं हो पाता जितना आप उम्मीद करते हैं तो अब सिंगापुर की एक ओन लाईन सर्वे कंपनी आपको उम्मीद से बढ़ कर देने वाली है। जी हां यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत है। यह कहना है प्रिंट एण्ड इलेक्ट्रानिक नेटवर्क समूह का। हिंदी की यह पत्रिका देश की पहली ऐसी पत्रिका है जिसने आन लाईन मार्केटिंग के इस कायाकल्प की पूरी इत्मीनान से समीक्षा की है। पत्रिका के मुताबिक 90 का दशक जहां सूचना क्रांति का दशक रहा वहीं 2000 से 2010 तक का वक्त नेटवर्क मार्केटिंग के नाम रहा किंतु इस दौरान इन कंपनियों ने लोगों को सपने बेचने के सिवा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया। लोगों को लाखों करोड़ों के ख्वाब दिखाए गए और हाथ कुछ भी नहीं आया। किंतु अब स्पीक एशिया ओन लाईन के पदार्पण से दावा किया जा सकता है कि सर्वे व नेटवर्किंग के मिश्रण से यह कंपनी लोगों को कमाई का बेहतरीन विकल्प उपलब्ध करवा रही है।''
नेट में बिखरे स्पीक एशिया के अवशेषों के अनुसार यह कम्पनी मई 2010 से भारत में ऑनलाइन सर्वे का काम करनें का दम भर रही है। कम्पनी सदस्य बनाने के लिए रू. 11,000/- लेती है, फिर कम्पनी महीने में कुल 8 सर्वे कराती है और इसके बदले में हर सर्वे के लिए 500 रुपए सदस्यों को देती है। इस प्रकार से लगभग तीन महीनें में सदस्य द्वारा जमा किया गया रूपया वापस प्राप्त हो जाता है। आनलाईन सर्वे के नाम पर यह कुछ सामान्य प्रश्नों का उत्तर फार्म फारमेट में पूछती है और उसके बाद पैसे का भुगतान करती है। और ... लगभग मुफ्त में प्राप्त होने वाले पैसे के लोभ में लोग फंसते चले जाते हैं। इस सारे खेल में एजेंटों/बिचौलियों की भूमिका अहम होती है जो स्पीक एशिया जैसी कम्पनी से भी ज्यादा गुनहगार हैं जो अपने बीच के लोगों को सपना दिखा कर लूटते हैं।
मैं सालों से इन स्वप्न बेंचने वाली कम्पनियों में फंसते मध्यमवर्गीय परिवार को देख रहा हूँ जो शार्टकट से पैसा कमाने के लालच में इन कम्पनियों के चक्कर में आते हैं। स्पीक एशिया जैसी कम्पनी अपनी लुभावनी बातों से लोगों के मर्म में ललक जगाती है, उनकी आकांक्षाओं में पर लगाती है, और-और की भावना को बलवती करती है और सितारा होटलों में मीटिंग कराकर ग्राहकों को फांसती है। कल्पतरू ब्लॉग में स्पीक एशिया के संबंध में पहले भी चेतावनी दी गई, मोलतोल में भी कहा गया था, और अक्टूबर में मनीलाईफ़ पत्रिका ने इनके व्यवसाय के बारे में आपत्ति जताई थी इसके बावजूद लोग पिल पड़े थे। आज 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे' का हाल आप सबके सामने है, कम्पनी नें भारत में लगभग 19 लाख सदस्य बनांए हैं और उनसे करोड़ो रूपये जमा करवाये हैं। मेरे मित्र नें भी लगभग दो लाख रूपये का चढ़ावा इस कम्पनी में चढ़ाया है, किन्तु उसे भरोसा है कि उसका पैसा उसे मिल जायेगा ... खुदा ख़ैर करे।
संजीव तिवारी