अहिमन कैना : छत्तीसगढी लोक गाथा

रानी अहिमन राजा बीरसिंग की पत्‍नी है । एक दिन उसे तालाब में स्‍नान करने की इच्‍छा होती है इसके लिये वह अपनी सास से अनुमति मांगती है । उसकी सास कहती है कि घर में कुंआ बावली दोनो है तुम उसमें नहा लो तालाब मत जाओ तुम्‍हारा पति जानेगा तो तुम्‍हारी खाल निकलवा लेगा । अहिमन बात नहीं मानती और अपनी चौदह सेविकाओं के साथ तालाब स्‍नान के लिये मिट्टी के घडे लेकर निकल पडती है । तालाब में नहाने के बाद वह अपनी मटकी को खोजती है । उसकी मटकी को तालाब में आये एक व्‍यापारी अपने कब्‍जे में ले लेता है अहिमन के मटकी मांगने पर व्‍यापारी उसे पासा खेलने पर देने की बात कहता है ।


अहिमन कैना पासा के खेल में अपने सभी गहने हार जाती है और दुखी मन से कहती है कि अब जा रही हूं गहने नही देखने पर मेरे सास ससुर मुझे गाली देंगें । तब व्‍यापारी उसे उसका मायका व ससुराल के संबंध में पूछता है । अहिमन बताती है कि दुर्ग के राजा उसके भाई है और दुर्ग उसका ससुराल है । व्‍यापारी का दुर्ग राजा (महापरसाद) मित्र रहता है अत: वह उसे बहन मान सभी हारे गहनो के स्‍थान पर नये गहने, सोने का मटका व नई साडी देता है । अहिमन अपने सेविकाओं के साथ अपने घर पहुचती है । राजा बीरसिंग नई साडी को देखकर शंका में अति क्रोधित हो जाता है और तत्‍काल अहिमन को लेकर उसके मायके छोडने जाता है । गांव से बाहर होते ही राजा बीरसिंह क्रोध में उसका बाल पकड कर घोडे के पूंछ में बांध देता है और घोडा दौडा देता है । अहिमन कैना का शरीर निर्जीव सा हो जाता है पर क्रोधित राजा बीरसिंह उस निढाल शरीर को तलवार से दो तुकडे कर देता है और अपने घर आ जाता है ।


इधर व्‍यापारी के बैलों का खेप इस स्‍थान पर आकर रूक जाता है आगे नहीं बढता तब ब्‍यापारी को इस बात की जानकारी होती है तो वह अहिमन कैना के लाश के पास जाता है और भगवान से अपनी बहन की प्राणों की भीख मांगता है उसकी आर्तनाद एवं अहिमन कैना की पतिव्रत के जोर से भगवान शंकर का आसन डोलने लगता है । भगवान शंकर व पार्वती आते हैं और अहिमन कैना को जीवित कर देते हैं ।


अहिमन कैना अपने व्‍यापारी भाई के साथ अपने ससुराल में आती है और तम्‍बू लगाती है । व्‍यापारी के पास व्‍यापार हेतु धन धान्‍य का भंडार है, अहिमन कैना गेहूं पिसने के लिये गांव में हाथ चक्‍की खोजते अपने पति के घर में ही आती है उसके पति उसे नहीं पहचानते और उस पर आशक्‍त हो जाते हैं । राजा बीरसिंह व्‍यापारी से उसकी बहन का हाथ मागता है । व्‍यापारी राजा को अहिमन को सौंप कर आर्शिवाद देता है कि तुम अपनी ही पत्‍नी को नहीं पहचान पाये अब खावो पीओ और सुख से रहो ।


मूल छत्‍तीसगढी में वाचिक परम्‍परा में गाई जाने वाली इस गाथा में नारी के निष्‍छल पति प्रेम के साथ ही परदेशी के द्वारा सगे भाई जैसे व्‍यवहार का चित्रण मिलता है जो यह दर्शाता है कि छत्‍तीसगढ की परम्‍परागत नारियों में पति के प्रति प्रेम, निष्‍ठा व श्रद्धा का भाव पति द्धारा मृत्‍यु तुल्‍य कष्‍ट देने के बावजूद बरकरार रहता है ।

मूल छत्‍तीसगढी में इस गाथा को मेरे छत्‍तीसगढी ब्‍लाग 'गुरतुर गोठ' में आप पढ सकते हैं ।


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...