कालम व प्रतिवेदनों में उलझता आम आदमी

पिछले पोस्‍ट में हमने दुर्ग में भूमि लेकर भवन बनवाने तक एक आम आदमी को होने वाली परेशानियों का जिक्र किया था। इसी क्रम में, जिले में इस माह से कलेक्‍टर दुर्ग के द्वारा भूमि माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए लागू एक नये नियम के संबंध में हम यहॉं चर्चा करना चाहते हैं। 

इस नये नियम के तहत् पंजीयन कार्यालय एवं तहसीलदार व पटवारियों को प्रेषित किए गए पत्रों के अनुसार भूमि क्रय-विक्रय के लिए विक्रय पंजीयन के पूर्व विक्रीत भूमि का पटवारी से 14 बिन्‍दु प्रतिवेदन प्राप्‍त करना होगा। जिसमें श्रीमान तहसीलदार महोदय का हस्‍ताक्षर होना आवश्‍यक कर दिया गया है। जिला पंजीयक के पास उपलब्‍ध पत्र के अनुसार निर्धारित 14 बिन्‍दु प्रपत्र के फोटो पहचान पत्र पर श्रीमान तहसीलदार का हस्‍ताक्षर निर्धारित है किन्‍तु विगत दिनों कई बार बदले जा रहे इस प्रपत्र से फोटो पहचान पत्र पर श्रीमन तहसीलदार का हस्‍ताक्षर हटा दिया गया है, कलेक्‍टर द्वारा जारी निर्धारित प्रपत्र में बदलाव की अभिस्‍वीकृति श्रीमान कलेक्‍टर से ली गई है या नहीं, इस बात की यथोचित जानकारी नहीं है किन्‍तु पटवारियों के द्वारा अपने तहसीलदार के द्वारा जारी मौखिक आदेशों का पालन किया जा रहा है। 

इस नियम के तहत् विक्रेता यदि अपनी भूमि विक्रय करना चाहता है तो क्रेता और विक्रेता दोनों पटवारी के समक्ष उपस्थित होकर अनुरोध करना होगा और पटवारी समय व सहोलियत के अनुसार विक्रीत स्‍थल का निरीक्षण करेगा। भूमि के भौतिक सत्‍यापन के बाद पंचनामें जैसी कार्यवाही कई पटवारी कर रहे हैं जिसमें क्रेता व विक्रेता से स्‍थल निरीक्षण प्रपत्र पर हस्‍ताक्षर के साथ भौतिक नाप जोख के समय उपस्थित दो व्‍यक्तियों से उसमें बतौर गवाह हस्‍ताक्षर भी कराए जा रहे हैं। 

आवासीय प्‍लाटों के लिए तो यह प्रक्रिया कम समय लेने वाली है किन्‍तु बड़े व्‍यावसायिक प्‍लाटों व कृषि रकबों के स्‍थल निरीक्षण में समय लग रहा है। पटवारियों के पास वैसे भी पहले से कार्य की अधिकता है ऐसे में स्‍थल निरीक्षण के उपरांत विक्रीत भूमि की सहीं चौहद्दी लिखने की अनिवार्यता के कारण 14 बिन्‍दु प्रपत्र मिलने में देरी हो रही है। पटवारियों के पास आवेदनों की कतारे लग रही है और पंजीयन कार्यालय के कर्मचारी खाली बैठे हैं। पटवारी कार्यालयों में लगी भीड़ को पूछने से अधिकाश लोग इस नये नियम से एकबारगी खफा नजर आ रहे हैं। इस संबंध में पटवारी का कहना है कि जिन बिक्रीशुदा भूमियों के भौतिक अस्तित्‍व में समस्‍या है, आवासीय प्‍लाटों का लेआउट प्‍लान नहीं है या ऐसे कृषि भूमि जिनका बटांकन नहीं हुआ है उनकी चौहद्दी 14 बिन्‍दु प्रपत्र में लिख पाना संभव नहीं है, इसी कारण ऐसे भूमि का 14 बिन्‍दु प्रतिवेदन बनाया नहीं जा रहा है। इसके साथ ही कृषि भूमि के विक्रेताओं की दलील है कि विक्रयशुदा जमीन उनके पिता या परपिता के द्वारा अर्जित भूमि है जो उन्‍हें वारिसान में प्राप्‍त हुआ है और वे उक्‍त भूमि में बरसों से काबिज है, राजस्‍व अभिलेखों में बटांकन यदि नहीं हुआ है तो इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। उक्‍त भूमि के राजस्‍व अभिलेखों पर विक्रेता ही नाम लिखा हुआ है एवं उक्‍त भूमि के कब्‍जे और स्‍वत्‍व पर किसी भी प्रकार का कोई विवाद नहीं है। विक्रता के भूमि स्‍वामी हक की भूमि के मूल खसरे के यदि विभिन्‍न तुकड़े हुए है तो उन्‍हें राजस्‍व अभिलेखों में दर्ज कराने एवं नक्‍शा दुरूस्‍त कराने का दायित्‍व राजस्‍व अधिकारियों का है। जिसके वावजूद पटवारी व तलसीलदार के द्वारा 14 बिन्‍दु व फोटा परिचय में हस्‍ताक्षर नहीं किया जाना आश्‍चर्यजनक है। 

आवासीय प्‍लाटों के भौतिक अस्तित्‍व की समस्‍या तो सिद्ध है, भू माफियाओं नें आवासीय प्‍लाटों के नाम पर लूट मचाई है, एक प्‍लाट को चार-पांच लोगों को बेंचा है, फर्जी लेआउट प्‍लान बना कर पहले प्‍लाट बेंचे फिर लेआउट में दर्शाये रोड़ रास्‍ते की जमीन को भी बेंच खाए हैं, और भी बहुत सारे अवैध कार्य किए गए है। मूलत: इसी कारण यह नया नियम अस्तित्‍व में आया है किन्‍तु आधा-एक एकड़ या इससे बड़े कृषि खसरों के विक्रय में ज्‍यादातर एसी परेशानी नहीं है। एक एकड़ या इससे बड़े कृषि खसरों के विक्रय में इस 14 बिन्‍दु की अनिवार्यता उतनी नहीं नजर आती। किसानों से हो रही चर्चा में जो बात सामने आ रही है वह सही है कि ज्‍यादातर शहरी कृषि खसरों के कई कई तुकड़े हो चुके हैं किन्‍तु नक्‍शें में उनका बटांकन नहीं हुआ है, नक्‍शें में बटांकन नहीं होने के कारण पटवारी को सहीं नक्‍शा बनाने एवं भूमि की चौहद्दी लिखने में परेशानी आ रही है। यद्धपि भूमि स्‍वामी स्‍थल निरीक्षण के समय अपनी भूमि को चिन्हित कर रहा है फिर भी पटवारी नक्‍शें में बड़े रकबे के खसरे में हुए तुकड़े में विक्रता की भूमि एकदम सही कहां पर दर्ज किया जाय यह समस्‍या है। इसके साथ ही यदि नक्‍शे में विक्रता के रकबे की भूमि को नाप कर पटवारी द्वारा दर्शा भी दिया गया तो राजस्‍व विधियों के तहत उसे विधिवत राजस्‍व निरीक्षक के द्वारा लाल स्‍याही से अभिप्रमाणित किया जाता है तभी वह प्रभावी हो पाता है। तो पटवारी के नाप जोख का कोई मतलब नहीं, 14 बिन्‍दु बिना भरे लटका रहेगा और किसान पटवारी कार्यालय के चक्‍कर काटते रहेगा। ऐसे में वह निश्चित रूप से इस नये नियम को प्रशासनिक तानाशाही कह कर प्रचारित करेगा, जिसका सहारा भू-माफिया लेंगें और इसे जन आन्‍दोंलन का नाम देंगें। 

सुननें में यह आया है कि क्रय-विक्रय में इस 14 बिन्‍दु प्रपत्र की अनिवार्यता को समाप्‍त करने के लिए एक प्रतिनिधि मंडल लगातार जिले के कलेक्‍टर से विमर्श कर रहा है, और प्रतिनिधि मंडल के लोगों को पूर्ण विश्‍वास है कि कल यह नियम रद्द हो जायेगा। किन्‍तु यह 'कल' कब आयेगा यह अभी भविष्‍य के गर्त में है। प्रतिनिधि मंडल किन मुद्दों में अपना विरोध जता रही है इस बात की जानकारी एक जनता के हैसियत से मुझे नहीं है, समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार व प्राप्‍त अन्‍य सूचनाओं के आधार पर इतना ज्ञात है कि इस प्रतिनिधि मंडल में कौन कौन लोग हैं। अपुष्‍ट सूचनाओं के तहत् इसमें दुर्ग के लैंडलार्ड गुप्‍ता-अग्रवाल परिवार के सदस्‍य हैं और स्‍थानीय तथाकथित नई राजनीतिक पार्टी से जुड़े कुछ नेता हैं। एक जनता के नजरिये से यदि मैं कहूं तो लैंडलार्ड गुप्‍ता अग्रवाल परिवार के सदस्‍यों के साथ इस प्रतिनिधि मंडल में राजनीति से जुडे के लोगों का होना बार बार खटक रहा है। 

मेरे विचार से पहली बात तो यह कि, जनता के मुद्दे राजनैतिक सोंच से कदापि हल नहीं किये जा सकते। दूसरी बात यह कि लोगों का यह भी कहना है कि इस प्रतिनिधि मंडल में ऐसे लोग भी हैं जो यहां भूमि के खरीदी-बिक्री व प्‍लाटिंग का कार्य बतौर व्‍यवसाय कर रहे हैं। जो भी भूमि के धंधे से सीधे तौर पर लाभ से जुड़ा व्‍यक्ति है वह इस मसले में निष्‍पक्ष रह ही नहीं सकता। इस बात का सबसे सटीक प्रमाण है कि प्रतिनिधि मंडल 14 कालम के अतिरिक्‍त उस प्रपत्र का भी विरोध कर रहा है जिसमें प्‍लाट काट कर बेंचने वाले भू-स्‍वामी से यह लिखवाया जाता है कि शेष रोड़-रास्‍ते की भूमि को मैं विक्रय नहीं करूंगा। प्रतिनिधि मंडल यदि किसानों को रिप्रेजेंट कर रही है तो उसे इस प्रपत्र के विरोध का कोई मतलब ही नहीं है, इस प्रपत्र का विरोध तो सिद्ध करता है कि हम प्‍लाट काट कर बेंचने वाले हैं। 

ऐसी स्थिति में 14 कालम का विरोध करने वाले किसानों से उनके विरोध का सही कारण जानना होगा, पिछले पंद्रह दिनों से दुर्ग तहसील के किसानों से मेरी लगातार हो रही चर्चा में मैंने जो मूल पाया है वह मात्र इतना ही है कि उनके खसरे को नक्‍शे में चढ़ाया नहीं गया है जिसे राजस्‍व की भाषा में बटांकन कहा जाता है। बटांकन नहीं होने के कारण पटवारी 14 बिन्‍दु कालम भर नहीं रहा है और किसान पैसे के लिये भटक रहा है। मेरे संपर्क में ग्राम पोटिया का एक किसान आया जिसके पिता अपोलों में भर्ती हैं उसे रूपयों की सक्‍त आवश्‍यकता है किन्‍तु बटांकन नहीं होने के कारण उसके भूमि का विक्रय पंजीयन नहीं हो पा रहा है, और उसके जमीन का क्रेता उसे बिना विक्रय पंजीयन और राशि नहीं दे रहा है। अब यदि समय पर पैसा नहीं मिलने के कारण उसके पिता की मृत्‍यु हो जाती है तो वह उन रकमों का क्‍या करेगा। दूसरे तरफ क्रेता की दलील है कि वह पहले भी विक्रेता को काफी रकम दे चुका है शेष राशि वह विक्रय पंजीयन के बाद ही देगा। अपने दलीलों पर क्रेता और विक्रेता दोनों सही है किन्‍तु बटाकंन नहीं होने के कारण 14 बिन्‍दु प्रपत्र बनने में हो रही देरी से एक किसान बेमौत मरता है तो उसकी जिम्‍मेदारी कौन लेगा।

यद्धपि मैं सीधे तौर पर भूमि क्रय-विक्रय के लाभों से जुड़ा हुआ नहीं हूं किन्‍तु दुर्ग सहित छत्‍तीसगढ़ के भू-संपदा संबंधी आर्थिक विकास का साक्षी रहा हूं। प्रदेश के रायपुर जिले में विक्रय पंजीयन के पूर्व 14 बिन्‍दु प्रतिवेदन की अनिवार्यता विगत तीन साल से अस्तित्‍व में है वहां अब यह व्‍यवहार में आ गया है और सरलता से क्रियान्वित हो रहा है। मुझे अपने जिले में 14 बिन्‍दु कालम की उपादेयता पर कोई संदेह नहीं है किन्‍तु उसके क्रियान्‍वयन में व्‍यवहारिक परेशानियों का भी ध्‍यान दिया जाना आवश्‍यक है, तभी जन हित में इसकी पूर्ण उपादेयता सिद्ध हो सकेगी। 

हम पाठकों की सुविधा के लिए 14 बिन्‍दु प्रतिवेदन अपलोड कर रहे हैं, जिसे आप यहॉं क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं।

संजीव तिवारी   

पचास साल बाद फहराया जय स्‍तंभ में तिरंगा

आजादी मिलने के उपरांत भारत के राज्‍य एवं जिला मुख्‍यालयों में स्‍वतंत्रता दिवस के प्रतीक चिन्‍ह के रूप में जय स्‍तंभ का निर्माण कराया गया था, जिसमें आजादी के बाद एवं संविधान लागू किये जाने के बाद लगातार स्‍वतंत्रता व गणतंत्र दिवस में तिरंगा झंडा फहराया जाता है। छत्‍तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्‍यालय में भी सन् 1947 में जय स्‍तंभ का निर्माण कराया गया जिसमें शुरूआती दौर में चार-पांच साल तक स्‍वतंत्रता दिवस में तिरंगा झंडा फहराया गया। इसके बाद दुर्ग जिला कार्यालय भवन व जिला न्‍यायालय का विस्‍तार किया और फिर धीरे-धीरे जय स्‍तंभ को भुला दिया गया।

दुर्ग जिला अधिवक्‍ता संघ नें इस वर्ष आजादी के प्रतीक के रूप में निर्मित इस जय स्‍तंभ की सुध ली। संघ के पदाधिकारियों द्वारा जिले के जिलाधीश श्रीमती रीना कंगाले जी से अनुरोध कर इस वर्ष जय स्‍तंभ में घ्‍वजा रोहण करने की अनुमति मांगी गई। जिलाधीश महोदया नें ना केवल अनुमति दी एवं आश्‍चर्य व्‍यक्‍त किया कि नगर व प्रशासन के लोग जय स्‍तंभ को भूल कैसे गये।

आज प्रात: जय स्‍तंभ पर लगभग पचास साल बाद दुर्ग जिला कार्यालय परिसर में स्थित जय स्‍तंभ पर जिला अधिवक्‍ता संघ, दुर्ग नें ध्‍वजा रोहण किया। समारोह में अधिवक्‍ता संघ के पदाधिकारी व अधिवक्‍ता गण के साथ ही जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश एवं अन्‍य न्‍यायाधीशगण उपस्थित थे। इस अवसर के कुछ चित्र -














कलेक्‍टरेट में ध्‍वजारोहण

स्‍वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं सहित ...

संजीव तिवारी

आम आदमी का स्‍वप्‍न : एक बंगला बने न्‍यारा

राजधानी बनने के बाद प्रदेश में भू-संपदा का अंधा-धुध व्‍यापार आरंभ हुआ था, इस व्‍यापार में व्‍यवसायियों, उद्योगपतियों से लेकर नेताओं और सरकारी कर्मचारियों के नंम्‍बर एक और दो के पैसों का निवेश आज तक अनवरत जारी है। किसानों की जमीन बिल्‍डर और भू-माफिया कम दर में खरीद कर शासन के नियमों को तक में रखते हुए शहरी क्षेत्रों के आस-पास की जमीनों में खरपतवार जैसे बहुमंजिला मकाने और कालोनियां विकसित करने में लगे हैं। भूमि के इस व्‍यापार के कारण अपने मकान का स्‍वप्‍न अब आम जनता की पहुंच से दूर हो रहा है। आम जनता के इस दर्द के पीछे भू-माफियाओं का का व्‍यावसायिक षड़यंत्र रहा है। शासन को जब तक भू-माफियाओं के इन कृत्‍यों का भान हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी और शहर के आस-पास की जमीनें किसानों के हाथ से छिन चुकी थी। खैर देर आये दुरूस्‍त आये के तर्ज पर शासन नें पिछले वर्ष से ही इसपर लगाम लगाने की मुहिम आरंभ भी की किन्‍तु भू-राजस्‍व, नगरीय प्रशास व नगर विकास के कानूनों के बीच से पेंच ढ़ूढते भू-माफिया अपने व्‍यापार में निरंतर लगे रहे।
भूमि क्रय करने के बाद प्रमाणीकरण-किसान किताब प्राप्‍त करने में 8 माह, भू-उपयोग प्रमाण पत्र प्राप्‍त करने में 3 माह, डावर्सन में 3 माह, नजूल अनापत्ति में 3 माह, नक्‍शा पास कराने में 3 माह कुल 20 माह यानी लगभग दो वर्ष इन प्रक्रियाओं में लगता है। उसके बाद आप गृह ऋण के लिए बैंकों के पास जाने की स्थिति में होते हैं। मजदूरों की समस्‍या, बढ़ते भवन निर्माण सामाग्री की कीमतों और देख-रेख के में लगातार उलझने के बाद अगले एक-दो वर्ष में कल्‍पनाओं का छत मयस्‍सर हो पाता है।
छत्‍तीसगढ़ जैसे विकासशील प्रदेश में आम आदमी जमीन खरीदकर उसमें भवन बना कर रहने आने तक के लम्‍बे और खर्चीले प्रक्रिया को महसूस कर अब बहुमंजिला भवनो में फ्लैट लेना जादा सुविधाजनक मानने लगा है इसी कारण सुविधाहीन क्षेत्रों में भी बहुमंजिला भवनो की बाढ़ आ रही है। इसके बावजूद अब भी अधिकतम लोगों का अपना छत अपनी जमीन के सोंच के कारण स्‍वयं जमीन लेकर उसमें अपनी कल्‍पनाओं का घर बनाया जा रहा है या बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अपनी कल्‍पनाओं के घर को आकार लेने में शासन के नीतियों के तहत् जो दिक्‍कतें आ रही हैं उसके संबंध में कुछ जानकारी के संबंध में हम यहॉं चर्चा करना चाहते हैं।

भूमि के विक्रय पंजीयन के उपरांत भूमि का प्रमाणीकरण कराना होता है। राजस्‍व अभिलेखों में विक्रेता का नाम काटकर क्रेता का नाम चढ़ाए जाने की यह प्रक्रिया पटवारी के माध्‍यम से तहसीलदार के द्वारा किया जाता है, यह प्रक्रिया, पंजीकरण तिथि से पंद्रह दिन बाद और अंतरण पर किसी भी प्रकार से शिकायत या समस्‍या नजर आने पर सालो समय लेता है। प्रमाणीकरण के बाद पटवारी उक्‍त भूमि का पुस्तिका (ऋण पुस्तिका) बनाकर देता है। पिछले साल से वर्तमान तक दुर्ग तहसील में किसान पुस्तिका की लगातार किल्‍लत बनी हुई है। किसान पुस्तिका सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है किन्‍तु पिछले सालों से बहुत कम मात्रा में किसान किताब तहसील में आये हैं इस कारण पटवारियों के द्वारा किसान पुस्तिका दिया नहीं जा रहा है। मुझे दुर्ग तहसील के पटवारी कार्यालयों की जानकारी है जिसमें लगभग छ: मा‍ह से लोग किसान पुस्तिका पुस्तिका के लिए भटक रहे हैं, उनका प्रमाणीकरण हो गया है किन्‍तु किसान पुस्तिका नहीं मिल पाया है। अभी किसान पुस्तिका बनने के लिये कम से कम तीन और अधिकतम आठ माह का इंतजार करना पड़ रहा है। मकान बनवाने के उद्देश्‍य से भूमि क्रय करने के बाद सर्वप्रथम उस भूमि का कृषि से आवासीय भू-परिर्वतन कराना होता है। यदि आप आवासीय भू-उपयोग वाली भूमि क्रय करते हैं तो इसकी आवश्‍यकता नहीं पड़ती किन्‍तु बढ़ती आबादी के कारण अब ज्‍यादातर शहर के बाहरी इलाकों में मिलने वाली भूमि कृषि उपयोग की ही बच गई है इसलिये उन्‍हें आवासीय परिर्वतन कराने की आवश्‍यकता पड़ती है।

पिछले कुछ वषों से प्रदेश के दुर्ग जिले में कृषि भूमि के आवासीय भू-पविर्तन (धारा 172 भूमि का व्‍यपवर्तन – छ.ग. भू-राजस्‍व संहिता, 1959) पर रोक लगा दिया गया था। व्‍यवहार में यह देखने को आया है कि भू-माफिया और अपंजीकृत कालोनाईजर्स किसानों से कृषि भूमि का बड़ा भू-भाग क्रय कर आम मुख्तियारनामा लेते हैं और छोटा छोटा तुकड़ा बेंचते हैं, क्रेता उन छोटे छोटे तुकड़ों का आवासीय भू-पविर्तन कराते हैं। इससे भू-माफिया को संपूर्ण भू-भाग के आवासीय भू-पविर्तन का शुल्‍क नहीं देना होता बल्कि नगर निवेश से क्षेत्र का अधिकृत विन्‍यास भी पास नहीं कराना पड़ता है। आवासीय भू-पविर्तन शुल्‍क के अतिरिक्‍त इससे भू-माफिया को कालोनाईजर्स अधिनियम के तहत् निम्‍न वर्ग के लिए, उद्यान व अन्‍य आवश्‍यक सुविधाओं के लिए निर्धारित भूमि छोड़ने की भी आवश्‍यकता नहीं पड़ती। कभी किसी प्रकार से शासकीय दबाव या कार्यवाही की संभावना बनती भी है तो भू-माफिया सारी मलाई खाकर, लुटे किसान के जुम्‍मे सारी जवाबदारी डाल कर अपना पल्‍ला झाड़ लेते हैं। भू-माफिया सुविधाओं को ताक में रखकर भूमि बेचते हैं, बाद में भूमि खरीदने वाला मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकारी कार्यालयों का चक्‍कर काटते फिरता है। जनता को यह आभास दिलाने के लिए कि ऐसे लोगों से भूमि ना क्रय करें सोंचकर ही आवासीय भू-परिवर्तन को रोक दिया गया था। पिछले वर्ष जनता की लगातार मांग के बाद दुर्ग जिले में कृषि भूमि के आवासीय भू-परिर्वतन का कार्य पुन: आरंभ किया गया किन्‍तु आवासीय भू-परिर्वतन के पूर्व प्रचलित प्रक्रिया में कुछ बदलाव लाये गये। नई प्रक्रिया के तहत् आवेदक को निर्धारित प्रारूप के आवेदन पत्र पर अपनी भूमि के संपूर्ण राजस्‍व अभिलेखों की नोटरी द्वारा अभिप्रमाणित तीन प्रतियों के साथ अनुविभागीय अधिकारी महोदय के कार्यालय में आवेदन प्रस्‍तुत करना है। अब हम आपको बताते हैं कि इसके लिये क्‍या क्‍या पापड़ बेलने पड़ेंगें और कहॉं कितना समय लगेगा।

राजस्‍व अभिलेखों के साथ ही नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा उक्‍त भूमि का भू-उपयोग प्रमाण-पत्र भी लगाना आवश्‍यक है। नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा भू-उपयोग प्रमाण-पत्र प्राप्‍त करना कितना मुश्किल काम है यह दुर्ग जिले में भटकते अनके लोग बता देंगें, इस प्रमाण-पत्र के लिए न्‍यूनतम शुल्‍क निर्धारित है किन्‍तु लोगों का कहना है कि इसके लिये ज्‍यादा रकम खर्च करने के बाद भी दो तीन महीने से कम नहीं लगता। दुर्ग नगर निवेश के संचालक महोदय अवैध प्‍लाटिंग एवं अपने विभागीय दायित्‍वों के प्रति संवेदनशील है एवं समय-समय पर मीडिया से भी लगातार रूबरू होते रहते हैं, उन्‍हें अपने कार्यालय में जनता को हो रहे कष्‍ट के प्रति ध्‍यान देना चाहिए।

दो-तीन महीने चप्‍पल घिसने के बाद आवेदक इस स्थिति में आता है कि अपना आवेदन अनुविभागीय अधिकारी के समक्ष प्रस्‍तुत कर सके। अनुविभागीय अधिकारी महोदय विचार करेंगें एवं उन्‍हें यदि प्रतीत होता है कि आवेदक के भूमि का आवासीय भू-परिर्वतन किया जा सकता है तो वे आवेदन स्‍वीकार करेंगें। आवेदन स्‍वीकार करने के उपरांत अनुविभागीय अधिकारी महोदय द्वारा उक्‍त आवेदन के संबंध में क्रमश: नगर निवेश विभाग, नगर पालिक निगम एवं व्‍यपर्वतन शाखा- भू-अभिलेख से अभिमत मांगा जाता है। इन तीनों विभागों से अभिमत प्राप्‍त होने के बाद अनुविभागीय अधिकारी महोदय किसी कृषि भूमि का आवासीय परिवर्तन करते हैं।

इस नये प्रक्रिया की व्‍यवहारिकता पर लोग रोज प्रश्‍नचिन्‍ह लगाते हैं। इन तीनों विभागों में से नगर निवेश विभाग प्रस्‍तावित भूमि के मास्‍टर प्‍लान (नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, 1973) के अनुसार भू-उपयोग (प्रयोजन) का उल्‍लेख करते हुए अपना प्रतिवेदन अनुविभागीय अधिकारी को प्रस्‍तुत करता है । नगर पालिक निगम के अभियंता भूमि का सर्वेक्षण कर नगर निवेश विभाग के भू-उपयोग का उल्‍लेख करते हुए अपना प्रतिवेदन प्रस्‍तुत करती है। व्‍यपर्वतन शाखा- भू-अभिलेख से राजस्‍व अधिकारी भूमि का मौका निरीक्षण करता है, चौहद्दी पंचनामा तैयार करता है और अपना लिखित अभिमत प्रकट करते हुए अनुविभागीय अधिकारी को अपना प्रतिवेदन प्रस्‍तुत करता है।

इन तीनों विभागों के प्रतिवेदनों में मात्र व्‍यपर्वतन शाखा- भू-अभिलेख के प्रतिवेदन का तथ्‍यात्‍मक अस्तित्‍व समझ में आता है बाकी के विभाग मात्र क्षेत्र के भू-उपयोग का उल्‍लेख कर अपना पल्‍ला झाड़ लेते हैं। इन तीनों विभागों से प्रतिवेदन मंगाए जाने के कारण जनता बारी बारी से इन तीनों विभागों का चक्‍कर काटता है जहां आज-कल के चलते प्रकरण महीनों चलता है अंत में जनता मजबूर होकर भ्रष्‍टाचार का साथ देता है तब जाकर उसका प्रतिवेदन अनुविभागीय अधिकारी के पास पहुचता है। इन प्रतिवेदनों के प्राप्‍त होने के बाद वहां प्रार्थी का बयान लिपिबद्ध किया जाता है और यदि भू-परिर्वतन किया जाना संभव हुआ तो प्रकरण पुन: व्‍यपर्वतन शाखा- भू-अभिलेख में प्रीमियम की गणना व चालान के द्वारा उसे पटाने हेतु जाता है, वहां से आवेदक शुल्‍क की राशि पता कर चालान के द्वारा राशि का भुगतान करता है फिर प्रकरण पुन: अनुविभागीय अधिकारी के पास आता है जहां अनुविभागीय अधिकारी भू-परिर्वतन प्रपत्र पर हस्‍ताक्षर कर प्रपत्र आवेदक को प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में न्‍यूनतम तीन महीने लगते हैं।

मकान बनाने का सपना देखने वालों के कष्‍ट का अंत यहां नहीं हो जाता बल्कि यह पहली सीढ़ी पार करने के समान होता है और आगे की लम्‍बी सीढि़यों के लिए वह अपने आप को तैयार करता है। अगली सीढ़ी के रूप में उसे भवन का नक्‍शा किसी पंजीकृत वास्‍तुकार से बनवाना होता है जो सेवा शुल्‍क के भुगतान के साथ जल्‍दी ही हो जाता है क्‍योंकि नगर में वास्‍तुकारों की संख्‍या अधिक होने के कारण चयन की सुविधा आवेदक के पास होती है। नक्‍शा बनने के बाद शहरी क्षेत्र में भवन बनाने के लिए नगर पालिक निगम में भवन निर्माण अनुज्ञा प्राप्‍त करने के पूर्व नजूल विभाग की अनापत्ति लेनी होती है। नजूल विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना उसी तरह की लम्‍बी और झुलाउ प्रक्रिया है जैसे भू-परिर्वतन के लिए विभागों से अभिमत प्राप्‍त करना। यद्धपि आपकी भूमि नजूल भूमि नहीं है फिर भी नजूल विभाग की अनापत्ति मांगा जाना अव्‍यावहारिक है। नजूल अनापत्ति के लिये सामान्‍यतया दो महीने लगते हैं।

इन सबके बाद नगर पालिक निगम से भवन निर्माण अनुज्ञा हेतु आवेदन और चप्‍पल घिसाई आरंभ होती है, यद्धपि अब निगम क्षेत्र के कुछ वास्‍तुशिल्‍पियों को 2000 वर्ग फिट तक के भूमि के भवन निर्माण की अनुज्ञा देनें का अधिकार सौंप दिया है इससे जनता को कुछ राहत मिलने की संभावना है। निगम से नक्‍शा पास कराने में कम से कम तीन से छ: माह तक लग सकते हैं।
यह पोस्‍ट वर्तमान में दुर्ग जिले में भूमि क्रय कर मकान बनवाने में अव्‍यावहारिक प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत् आ रही दिक्‍कतों के संबंध में क्रमिक जानकारी उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से, शासन तक इसकी जानकारी देने वाले मित्रों के लिए लिखी गई है।

इस प्रकार से प्रमाणीकरण-किसान किताब में आठ माह, भू-उपयोग प्रमाण पत्र प्राप्‍त करने में तीन माह, डावर्सन में तीन माह, नजूल अनापत्ति में तीन माह, नक्‍शा पास कराने में तीन माह कुल 20 माह यानी लगभग दो वर्ष इन प्रक्रियाओं में लगता है। उसके बाद आप गृह ऋण के लिए बैंकों के पास जाने की स्थिति में होते हैं। मजदूरों की समस्‍या, बढ़ते भवन निर्माण सामाग्री की कीमतों और देख-रेख के में लगातार उलझने के बाद अगले एक-दो वर्ष में कल्‍पनाओं का छत मयस्‍सर हो पाता है।
दुर्ग कलेक्‍टर आई ए एस  श्रीमती रीना बाबा साहेब कंगाले

जिले में उर्जावान कलेक्‍टर माननीया रीना बाबा साहेब कंगाले के प्रशासनिक प्रगति व जनता के हित के लिये उठाए गए कदमों के संबंध में प्रतिदिन समाचार पत्रों में समाचार प्रमुखता से छप रहे हैं। इससे लगता है कि महोदया जनता के दर्द को कम करना चाहती है। उन्‍हें प्रत्‍येक विभाग में इस प्रकार से प्रकरणों को जानबूझकर लटकाने और समय लगाने की बाबू टाईप सोंच में शीघ्र ही लगाम लगानी चाहिए और जनता को मकान जैसे अहम सुविधा प्राप्‍त करने में बेवजह देरी को रोककर उनके सपनो को साकार करने में सहयोग करना चाहिए। 
संजीव तिवारी 

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...