" बने करे राम मोला अन्धरा बनाये " यह गीत छत्तीसगढ से ट्रेन से गुजरते हुए आपने भी सुना होगा

कल के मेरे पोस्ट पर शरद कोकाश भैया की टिप्पणी प्राप्त हुई कि रामेश्वर जी से सम्पर्क करो और उनकी कविता " बने करे राम मोला अन्धरा बनाय " की रचना की प्रष्ठ्भूमि सहित प्रस्तुत करो .. उनसे पूछना ज़ोरदार किस्सा सुनयेंगे । तो हम रामेश्वर वैष्णव जी की वही कविता आडियो सहित यहॉं प्रस्तुत कर रहे है -
भूमिका इस प्रकार है कि एक बार रामेश्वर वैष्णव जी रेल में रायपुर से बिलासपुर की ओर यात्रा कर रहे थे तो रेल में एक अंधा भिखारी उन्हे गीत गाते भीख मांगते हुए मिला. वह अंधा भिखारी रामेश्वर वैष्णव जी द्वारा लिखित 'कोन जनी काय पाप करे रेहेन' गीत गा रहा था; रामेश्वर वैष्णव जी को आश्चर्य हुआ और उन्होनें उस अंधे भिखारी को अपने पास बुलाकर बतलाया कि जिस गीत को तुम गा रहे हो उसे मैनें लिखा है यह मेरा साहित्तिक गीत है इसे गाकर तुम भीख मत मांगो भईया. पहले तो अंधे भिखारी को खुशी हुई कि तुम ही रामेश्वर वैष्णव हो. फिर भिखारी नें कहा कि इस गीत को गाते हुए बहुत दिन हो गए है और वैसे भी अब इस गीत से ज्यादा पैसे नहीं मिलते इसलिए आप मेरे लिए कोई दूसरा गीत लिख दीजिये.
अंधे भिखारी नें गीत में चार आवश्यक तत्वो को समावेश करने का भी अनुरोध किया. पहला - गीत में हास्य व्यंग्य होना चाहिए यानि हमारे देश का भिखारी भी हास्य व्यंग्य समझता है. दूसरा - देश दुनिया में जो हो रहा है उसे लिखें. तीसरा - गाना ऐसा लिखें कि सुनने वाला फटाक से पैसा निकाल कर मुझे धरा दें यानी करूणा होनी चाहिए. चौंथा - मेरा नाम बाबूलाल है उसे जोडियेगा. रामेश्वर वैष्णव जी छत्तीसगढी गीतों के लिए जाने माने नाम हैं ऐसे में उन्होनें उस भिखारी के अनुरोध को स्वीकार किया और गीत मुखरित हुई जिसे आप लोग भी सुने. हो सकता है कि छत्तीसगढ से ट्रेन से गुजरते हुए रायपुर से बिलासपुर की यात्रा के दौरान आपने भी इस अन्धे भिखारी को देखा होगा और यह गीत सुना होगा. यह गीत सरल छत्तीसगढी भाषा में है इसकी अनुवाद करने की आवश्यकता नहीं है, इसे आप सुने गीत आपको समझ में भी आयेगी और व्यवस्था पर चोट करती रामेश्वर वैष्णव जी की बानगी आपको गुदगुदायेगी.


संजीव तिवारी

रामेश्वर वैष्णव की अनुवादित हास्य कविता मूल आडियो सहित

रामेश्वर वैष्णव जी  छत्तीसगढ के जानेमाने गीत कवि है, इन्होने हिन्दी एव छत्तीसगढी मे कई लोकप्रिय गीत लिखे है. कवि सम्मेलनों मे मधुर स्वर मे वैष्णव जी के गीतो को सुनने में अपूर्व आनन्द आता है. वैष्णव जी का जन्म 1 फरवरी 1946 को खरसिया मे हुआ था. इन्होने अंग्रेजी मे एम.ए. किया है और डाक तार विभाग से सेवानिवृत है. इनकी प्रकाशित कृतियो मे पत्थर की बस्तिया, अस्पताल बीमार है, जंगल मे मंत्री, गिरगिट के रिश्तेदार, शहर का शेर, बाल्टी भर आंसू, खुशी की नदी, नोनी बेन्दरी, छत्तीसगढी महतारी महिमा, छत्तीसगढी गीत आदि है. 
मयारु भौजी, झन भूलो मा बाप ला, सच होवत सपना, गजब दिन भइ गे सहित कई छत्तीसगढी फिल्मो का इन्होने लेखन किया है. वैष्णव जी छत्तीसगढ के कई सांसकृतिक संस्थाओ से भी सम्बध है. इनकी छत्तीसगढी हास्य कविताओं के लगभग 20 कैसेट्स रिलीज हो चुके है . आज भी रामेश्वर वैष्णव जी निरंतर लेखन कर रहे है.  इन्हे मध्यप्रदेश लोकनाट्य पुरस्कार, मुस्तफ़ा हुसैन अवार्ड 2001, श्रेष्ठ गीतकार अवार्ड और अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके है. 
वैष्णव जी की एक छत्तीसगढी हास्य कविता का आडियो अनुवाद सहित हम यहा प्रस्तुत कर रहे है, मूल गीत गुरतुर गोठ में उपलब्‍ध है. भविष्य मे हम इनकी हिन्दी कविताओ को भी प्रस्तुत करेंगे -
पैरोडी - तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्‍या निभाओगे (अलताफ़ राजा)

बस मे मैं कब से खडा हूँ मुझे बैठने की जगह दे दो
ले दे के घुस पाया हूँ मुझे निकलने के लिये जगह दे दो
भीड मे मै दबा हूँ सास लेने के लिये तो जगह दो
मै तो सास लेने का प्रयाश कर रहा हूँ
तुम कितना धक्का दे रहो हो
मै भीड मे दबा हूँ सास लेने के लिये तो जगह दे दो
भेड बकरियो की तरह आदमियो को बस मे भर डाले हो
ये समधी जात भाई मेरी लडकी के लिये 
लडका भले तुम ना दो पर मुझे सीट तो दे दो 
बस मे खडा यह लडका मिर्च का भजिया खाया है, 
इसका पेट खराब है, इसका कोई भरोसा नही है, 
दौड कर जावो, जल्दी इसे दवा तो दे दो

रामेश्वर वैष्णव

बसंत में बिरह - छत्तीसगढी कविता आडियो हिन्दी भावानुवाद सहित

बसंत कुमार तिवारी की इस छत्तीसगढी कविता का हिन्दी भावानुवाद हम आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं -

मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया
पहले तू फुदक फुदक कर डंगाल डंगाल मे कूदती रही
और अमरैया मे जा के सभी को निमंत्रित कर आयी
आम के पेडों का चक्कर लगाकर तू सबको बुला लाई
और भंवरा के गुंजन के साथ गीत गुनगुनाने लगी
फिर भी मुझे तुमने नही पूछा कि मेरा क्या हाल है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया

कितना कष्ट दे रहा है मित्र से ना मिल पाने का दर्द
कैसे जी रहा हूँ मै बिना प्रेमिका के
मेरे पल पल युग जैसे बीत रहे है
ऑंखों मे दुख के ऑंसु सरोवर जैसे लबालब भरे है
जिन्दगी की खेती मे अकाल पड गया है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया

बासंती पुरवाही के साथ उसकी याद भी बह रही है
ऑंखों  मे उसकी सूरत झूल रही है
आखिर तू क्या जाने प्रेम का मरम
तू क्या जाने अपने प्रेमी का बिरह
ये प्रेम तो जीवन मे मौत का खेल है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया

मौर आये आम के पेडों को देख कर मेरा मन भरम जाता है
महमहाते बगिया मुझे डोली जैसे लगते है
उपर से तेरा कूकना मेरे हृदय को चीर देती है
अरी तितली अभी रुक जा तू भी मुझे ताना मत दे
मुझे इठलाते चिढाते हुए टेसू लाल हो गये है
मै तुम्हारी चाल को जान गया रे कोयलिया

भावानुवाद - संजीव तिवारी 

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...